रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा ने ट्विटर पर कश्मीरी युवक को जीप पर बांधने को भी सही ठहराया. चोपड़ा सैन्य बल न्यायाधिकरण के सदस्य हैं, जहां कोर्ट मार्शल की अपील की सुनवाई भी होती है. उनका इस तरह के ट्वीट करना उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है.
नई दिल्ली : सोशल मीडिया अपनी सोच ज़ाहिर करने का माध्यम है पर अगर आप किसी संवैधानिक या महत्वपूर्ण पद पर हैं, तब अपने विचार और उनकी अभिव्यक्ति को साझा करते समय सचेत रहने की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है. शायद रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा अपनी इसी ज़िम्मेदारी को समझ नहीं सके. एयर मार्शल अनिल चोपड़ा आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल की लखनऊ बेंच के सदस्य हैं. भारतीय सेना के इस ट्रिब्यूनल में सेना के अधिकारियों या जवानों द्वारा किए गए अपराधों की अपील की सुनवाई होती है.
12 अप्रैल को सोशल मीडिया पर मतदान के दौरान कश्मीरी प्रदर्शनकारियों के सुरक्षा बलों के जवानों को परेशान करने का वीडियो सामने आया, तब वायु सेना के बड़े अफसर रहे अनिल चोपड़ा ने ट्विटर पर 100 पत्थरबाज़ों को गोली मार देने की बात कही.
कश्मीर में अशांति के मसले पर सोशल मीडिया पर अक्सर पत्थर फेंकने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने की बात होती है, पर ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी सेवारत जज या न्यायिक अधिकारी ने कोई ऐसा एक्शन लेने की बात कही हो, जिसकी वैधता पर संदेह हो और शायद जिसका नतीजा किसी रोज़ उनके सामने उन्हीं की अदालत में सामने आए.
सेना के इस ट्रिब्यूनल में न केवल सेना के आतंरिक विवाद प्राथमिक रूप से सुने जाते हैं बल्कि कोर्ट मार्शल की अपील की सुनवाई भी यहीं होती है. देश भर में इस ट्रिब्यूनल की कई बेंचें हैं. एयर मार्शल अनिल चोपड़ा वर्तमान में लखनऊ में कार्यरत हैं.
इस ट्वीट की कड़ी आलोचना या शायद अपने बयान के क़ानूनी नतीजों की सोचकर चोपड़ा ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.
हालांकि वे यहीं नहीं रुके. इसके दो दिन बाद जब सेना के एक अधिकारी द्वारा पत्थरबाज़ों से बचने या शायद आम जनता को धमकाने के मकसद से कश्मीरी युवक फ़ारूक़ अहमद डार को जीप पर बांधकर घुमाने को लेकर सेना की आलोचना हो रही थी तब चोपड़ा ने इस ग़ैर-क़ानूनी और ग़लत हरकत को ‘इनोवेटिव आईडिया’ कहकर सराहा. उन्होंने यह भी कहा कि वे भारत सरकार के इस तरीके के लिए ज़िम्मेदार मेजर का समर्थन करने के फैसले का भी स्वागत करते हैं.
Great and mature decision by the gov't on young Major's innovative idea in the Valley . https://t.co/mWVZCPirPr
— Aviator Chopsyturvey (@Chopsyturvey) April 17, 2017
उनके ट्विटर प्रोफाइल पर नज़र डालें तो दिखता है कि उनकी राजनीतिक विचारधारा केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर झुकी हुई है. हालांकि देश के सभी नागरिकों की तरह जज और ट्रिब्यूनल के सदस्य किसी भी राजनीतिक विचारधारा को मानने के लिए स्वतंत्र हैं पर इस तरह से उन विचारों को सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर करना कुछ असामान्य है.
ऐसे समय में जब कश्मीर में अब तक का सबसे कम मतदान प्रतिशत देखा गया है, तब समझना ज़रूरी हो जाता है कि चोपड़ा के लोगों को मार देने की बात करने जैसे ट्वीट भारत सरकार और कश्मीर के लोगों के बीच की खाई को और गहरा करेंगे.
कई विश्लेषकों ने कहा कि हालिया उपचुनावों में वोटिंग प्रतिशत इतनी बड़ी गिरावट यह साफ दिखाती है कि भारत सरकार को घाटी में पूरी स्थिति सेना के हवाले कर देने की बजाय लोगों का भरोसा जीतने के लिए काम करने की ज़रूरत है.
हालिया सालों में घाटी में सुरक्षा बलों की ज़्यादती के सैंकड़ों छोटे-बड़े मामले दर्ज हुए हैं. ऐसे ही मामलों को अक्सर विरोध प्रदर्शनों की वजह माना जाता है.
सुरक्षा बल हमेशा से यही कहते रहे हैं कि उनके पास ऐसे मसलों से निपटने के पर्याप्त साधन हैं, साथ ही वे लगातार नियमित क्रिमिनल कोर्ट में ट्रायल से बचते रहे हैं. पर चोपड़ा के पूर्वाग्रह भरे ट्वीट आंतरिक रूप से कश्मीर में सैन्य अत्याचार से सेना द्वारा निपटने की सीमा दिखाते हैं.
इससे पहले पथरीबल नरसंहार मामले में सीबीआई द्वारा बताए गए सेना के अफसरों और जवानों पर मुकदमा चलाने में सेना की विफलता ने कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए थे.
भारतीय क़ानून को छोड़ भी दें तो जिनेवा कन्वेंशन (जिसमें भारत ने भी दस्तख़त किए हैं) सहित कई अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल हैं, जो इस तरह किसी व्यक्ति को बांधकर ढाल की तरह इस्तेमाल करने को ग़ैर-क़ानूनी बताते हैं.
फिर भी चोपड़ा ने न सिर्फ इसका बचाव किया बल्कि जिन्होंने सेना द्वारा इस तरह मानवाधिकारों के हनन की आलोचना की, उनका मज़ाक भी बनाया.
CPM Wants Army Punished For Tying Kashmiri Youth In Front Of Its Cavalcade. Losing relevance by the day https://t.co/OFtRjZrVqq
— Aviator Chopsyturvey (@Chopsyturvey) April 17, 2017
उनके हिसाब से शांति पाने के लिए हिंसा की ज़रूरत होती है.
Former public prosecutor Imtiyaz Ahmad Khan shot dead in Shopian district of Jammu and Kashmir: ANI Time to come down heavily in Valley
— Aviator Chopsyturvey (@Chopsyturvey) April 17, 2017
द वायर के यह पूछने पर कि क्या वे सही में मानते हैं कि कश्मीर में इस तरह किसी व्यक्ति को ढाल की तरह इस्तेमाल करना क़ानूनी है, उन्होंने जवाब दिया, ‘मैंने अपनी राय साझा की थी. यह मामला अब ख़त्म हो चुका है. क्या सही है, क्या ग़लत है यह फैसला देश पर छोड़ देते हैं.’
द वायर के कई प्रयासों के बाद भी इस मसले पर बात करने के लिए आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस वीरेंद्र सिंह से संपर्क नहीं हो सका.