ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के सूखाग्रस्त किसानों के लिए सरकार ने सब्सिडी देने की घोषणा की है, लेकिन इसके लिए ऑनलाइन आवेदन ही किया जा सकता है. वहीं अधिकांश किसानों को पता ही नहीं ऐसी कोई योजना चलाई जा रही है.
बिहार में नवादा ज़िले के पकरीबरावां प्रखंड के मठगुलनी गांव निवासी रमेश भगत के पास दो एकड़ ज़मीन है, लेकिन वह खरीफ के सीज़न में 10 कट्ठे में ही इस बार धान लगा पाए. बाकी खेत परती (ख़ाली) छोड़ना पड़ा. लेकिन, खेत को परती कितने दिन तक छोड़ कर रखते, सो 150 रुपये प्रति घंटे (एक घंटे में एक कट्ठा खेत का पटवन हो पाता है) की दर से पटवन (पानी चलाना) कराकर डेढ़ एकड़ खेत में गेहूं बोने की तैयारी में लगे हुए हैं.
वह कहते हैं, ‘हमारे यहां महज़ दो से तीन फीसदी बारिश हुई है. इसमें क्या होगा. इलाके में बोरिंग भी कम हैं, इसलिए पटवन के लिए लाइन लगानी पड़ी. तीन दिन बाद मेरा नंबर आया, तो डेढ़ एकड़ में किसी तरह पटवन कर गेहूं बो रहा हूं.’
मठगुलनी गांव के ही अवधेश यादव के पास क़रीब 20 एकड़ खेत है, लेकिन वह सोच नहीं पा रहे हैं कि कितने खेत में बुआई कर पाएंगे, क्योंकि इस बार की खेती पूरी तरह पटवन के भरोसे है.
उन्होंने कहा, ‘अभी तो दो बीघा खेत में बोरिंग से पटवन कर मसूर बो रहे हैं. कुछ हिस्से में चना और गेहूं बोने की इच्छा है, लेकिन बोरिंग से पटवन के लिए बहुत जूझना पड़ता है, क्योंकि भूगर्भ का जलस्तर बहुत नीचे चला गया है. 10-10 फीट गड्ढा खोद कर उसमें पटवन के लिए मशीन लगाई जा रही है. पहले एक घंटे में दो कट्ठे में पटवन हो जाता था, लेकिन अभी 1 घंटे में एक कट्ठा भी नहीं हो पा रहा है. पानी का स्तर अगर और नीचे जाता है, तो पटवन बिल्कुल ही नहीं हो पाएगा. इसलिए यह समझ नहीं पा रहा हूं कि कैसे में खेती कर पाऊंगा.’
अवधेश यादव ने 16 बीघे में दो बार पटवन कर धान की खेती की थी. जिस वक्त उन्होंने धान बोया था, उस वक्त बारिश नहीं हो रही थी, इसके बावजूद उन्होंने इस उम्मीद में पटवन कर बुआई कर दी कि आने वाले समय में बारिश होगी, तो अच्छी फसल काटेंगे. लेकिन मौसम ने दगा दे दिया.
वह कहते हैं, ‘हमारे इलाके में ज़रा भी बारिश नहीं हुई. फसल बचाने के लिए 8 से 10 पटवन करना पड़ता. 16 बीघे में पटवन कर धान उगाना हमारे बूते की बात नहीं थी, इसलिए 10 बीघे में फैली धान की फसल छोड़ दी. छह बीघा धान को बचाने में लगे हुए हैं.’
अवधेश ने जो 10 बीघे में लगी धान की फसल छोड़ दी, उससे उन्हें हज़ारों रुपये का नुकसान हो गया. वह इसका आंकड़ा कुछ इस तरह पेश करते हैं, ‘एक बीघे में बुआई के लिए जुताई पर 1200 रुपये ख़र्च हो गए. यानी 10 बीघे में जुताई पर ख़र्च हो गए 12,000 रुपये. बुआई के लिए दो बार पटवन करना पड़ा. 10 बीघा में दो बार पटवन के लिए 140 लीटर डीज़ल लग गए. 5 किलो प्रति बीघा की दर से 10 बीघा खेत में 50 किलोग्राम बीज डालना पड़ा जिस पर क़रीब 13,000 रुपये ख़र्च हुए. इसके अलावा 600 किलोग्राम खाद डाला गया. इन ख़र्च के एवज में एक रुपये भी नहीं आया.’
नवादा को सूखाग्रस्त ज़िलों में शामिल किया गया है. पहले सरकार ने ज़िले के 4 प्रखंडों को ही सूखाग्रस्त घोषित किया था. बाद में पूरे ज़िले को सूखाग्रस्त क़रार दिया गया.
मठगुलनी गांव के मुखिया मनोज चौरसिया ने बताया कि इस गांव में 2400 बीघा खेत हैं, लेकिन सूखे के कारण 5 प्रतिशत खेत में भी बुआई नहीं हो पाई है. उन्होंने कहा, ‘यहां लोगों को पीने के लिए पानी मुश्किल से मिल पाता है, पटवन के लिए पानी का इंतज़ाम कहां से हो पाएगा.’
इस बार बिहार में बारिश सामान्य से काफी कम हुई है. बिहार सरकार ने 24 ज़िलों के 275 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया है. अरवल, जहानाबाद, औरंगाबाद, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, मुंगेर, पटना, शेखपुरा, गोपालगंज, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, सहरसा, सारण, सीवान और वैशाली में सबसे कम बारिश हुई है.
सूखे ने इन प्रभावित क्षेत्रों के किसानों की कमर तोड़ दी है. बारिश औसत से बेहद कम होने से धान की फसल तो प्रभावित हुई ही है, साथ ही इसका असर खरीफ के बाद बोई जाने वाली फसलों पर भी असर पड़ रहा है.
वैशाली ज़िले के वैशाली प्रखंड अंतर्गत चकरामदास गांव के 85 वर्षीय किसान पुनीत साहनी अपने बथान (मवेशियों के रहने का हिस्सा) में रखे धान को देखते हैं, तो उनका कलेजा फटने लगता है. धान जितना धान उपजा है, उनमें से आधे में दाने की जगह खखरी है.
उन्होंने कहा, ‘दो-ढाई महीने में पांच बार पटवन दिया तब जाकर धान हुआ, लेकिन दाने की जगह खखरी ज़्यादा निकल रहा है.’
पुनीत साहनी की अपनी दो बीघा ज़मीन है. लेकिन, उन्होंने 10 कट्ठे में कोई भी फसल नहीं लगाने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा, ‘अगस्त-सितंबर में अगर बारिश हो जाती, तो गेहूं, मक्का आदि आसानी से उगा लेता. अब केवल 5 कट्ठे में किसी तरह पटवन कर आलू बो रहा हूं.’
उनका कहना है कि 10 साल पहले तक खेती फायदे का सौदा हुआ करता था. बाद के वर्षों में खाद से लेकर हर चीज के दाम में बेतहाशा इजाफा हुआ है, लेकिन उस अनुपात में अनाज का दाम नहीं बढ़ा. खेती अब फायदेमंद नहीं रही.
चकरामदास गांव के ही शंभू साहनी सपरिवार आठ कट्ठे में आलू बोने में लगे हुए हैं. उन्हें एक किलोमीटर दूर से पाइप के जरिए पानी लाकर पटवन करना पड़ा है.
उन्होंने कहा, ‘आठ कट्ठे में पानी पटाने में आठ घंटे लग गए और एक हज़ार रुपये ख़र्च हुए. इसके बाद 10-10 घंटों की तीन सिंचाई लगेगी. अगर इसमें मक्का भी लगा दिया, तो 6 से 7 पटवन की ज़रूरत पड़ेगी.’
राज्य सरकार ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसानों की मदद के लिए इनपुट सब्सिडी देने का ऐलान किया है. इसके तहत सूखे के चलते सिंचाई पर होने वाले अतिरिक्त ख़र्च के एवज में सरकार सब्सिडी देगी.
कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बारिश पर आधारित फसल क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर 6800 रुपये और सिंचाई पर आधारित क्षेत्रों के किसानों को 13,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सब्सिडी मिलेगी. इनपुट सब्सिडी के लिए 1450 करोड़ रुपये ख़र्च करने का प्रस्ताव विधानमंडल में पेश किया गया है.
इनपुट सब्सिडी अधिकतम दो हेक्टेयर के लिए ही मिलेगी. कृषि विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, तयशुदा अवधि तक 16,01743 किसानों ने सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है.
हालांकि, केवल आवेदन कर देने भर से किसानों को इनपुट सब्सिडी नहीं मिलने वाली. इसके लिए कुछ शर्तें हैं, जिन्हें पूरा करने की सूरत में ही सब्सिडी दी जाएगी.
कृषि विभाग के जॉइंट डायरेक्टर डॉक्टर ब्रजेश कुमार ने कहा, ‘अगर खेत में दरार हो या उपज में 33 प्रतिशत की कमी आ जाए या फिर फसल सूख गई हो तो ही किसानों को सब्सिडी मिलेगी.’
बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि किसानों की मदद के लिए खरीफ सीज़न की फसल के लिए यह इनपुट सब्सिडी दी जा रही है.
किसानों का कहना है कि सरकार जो इनपुट सब्सिडी देगी, उससे केवल सिंचाई पर हुए ख़र्च की ही वसूली हो पाएगी. किसानों के मुताबिक, सरकार केवल मन बहलाने के लिए इनपुट सब्सिडी का झुनझुना थमा रही है.
वैशाली स्मॉल फार्मर्स एसोसिएशन के यूके शर्मा कहते हैं, ‘सूखे के कारण किसानों को एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए सिंचाई पर करीब 14 हज़ार रुपये ख़र्च करना पड़ता है. सरकार की इनपुट सब्सिडी से सिंचाई का ख़र्च ही निकल पाएगा.’
इनपुट सब्सिडी उन किसानों को ही मिलेगी, जिन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया है. लेकिन, ऐसे बहुत से किसान हैं, जिन्हें मालूम ही नहीं है कि सरकार ने ऐसी कोई योजना शुरू की है. ऐसे किसान इस सहायता से भी वंचित रह जाएंगे.
वैशाली के चकरामदास गांव के किसान पुनीत साहनी से जब इनपुट सब्सिडी पर बात की गई, तो उन्होंने ऐसी किसी योजना के अस्तित्व में होने को लेकर अनभिज्ञता ज़ाहिर की. पुनीत जैसे सैकड़ों किसान हैं, जिन्हें सरकारी योजना की जानकारी नहीं.
वैसे, इनपुट सब्सिडी के अलावा राज्य फसल सहायता योजना और डीज़ल अनुदान योजना भी है. राज्य फसल सहायता योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जगह शुरू की गई है. इसके तहत प्राकृतिक आपदा की स्थिति में किसानों को मुआवज़ा दिया जाएगा.
खरीफ सीज़न के लिए 15 नवंबर तक पंजीयन कराना था. बिहार में करीब 1 करोड़ 61 लाख किसान (जिनके पास अपनी ज़मीन है) हैं. कृषि विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, निर्धारित अवधि तक महज 11 लाख 50 हज़ार 528 किसानों ने निबंधन के लिए आवेदन दिया, जो कुल किसानों की आबादी का बमुश्किल 10 प्रतिशत ही होगा. वहीं, डीज़ल अनुदान के लिए 19 लाख 38 हज़ार 207 किसानों ने निबंधन कराया है. ये आंकड़े भी बताते हैं कि किसानों की बड़ी आबादी तक इन योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है.
इनपुट सब्सिडी खरीफ फसल के लिए है, लेकिन सूखे का असर रबी की फसल पर भी साफ दिख रहा है. किसानों को गेहूं, आलू, सरसों आदि की खेती कई पटवन करवा कर करनी पड़ रही है, लेकिन रबी की फसल को लेकर सरकार की तरफ से अब तक किसी तरह की घोषणा नहीं हुई है.
विशेषज्ञों का कहना है कि सूखे का असर न केवल इनपुट ख़र्च बढ़ाता है बल्कि इसका प्रभाव उत्पादन पर भी पड़ता है, जिससे किसानों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ेगा.
बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर शिव प्रसाद सिन्हा कहते हैं, ‘बारिश नहीं होने से न केवल खरीफ की फसल बल्कि रबी के सीज़न की फसल पर भी गहरा असर पड़ेगा.’
उन्होंने कहा, ‘सुखाड़ के चलते फसल का उत्पादन 20 से 30 प्रतिशत तक कम हो जाएगा.’
इसके अलावा सर्दी के मौसम का भी फसल पर असर पड़ता है. सर्दी के सीज़न में जो फसलें होती हैं, उन्हें ज़्यादा ठंड चाहिए. ऐसा नहीं होने पर फसल ख़राब हो जाएगी.
चकरामदास गांव के किसान ने बताया कि अभी मौसम में ज़्यादा सर्दी नहीं आई है. अगर यही हालत रही, तो गेहूं, आलू और सरसों के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा.
उन्होंने कहा, ‘पहले हर हफ्ते कृषि समन्वयक किसानों तक पहुंचते थे. इसके साथ ही सरकार की तरफ कृषि विशेषज्ञ भी नियमित दौरा कर किसानों को खेती के टिप्स दिया करते थे, लेकिन अब हमें राम भरोसे छोड़ दिया है.’
किसानों का यह भी कहना है कि न तो राज्य की नीतीश सरकार और न ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें राहत दी.
मठगुलनी के किसान अवधेश यादव ने कहा, ‘भाजपा ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन हमें नहीं लगता है कि पांच सालों में हमारी कमाई दोगुनी हो गई है. बल्कि सबकुछ ऑनलाइन करके सहायता पाने की प्रक्रिया को और जटिल बना दिया गया है.’
पुनीत साहनी तो केंद्र सरकार पर उल्टे नोटबंदी कर किसानों को परेशान करने का आरोप लगाते हैं.
वह कहते हैं, ‘किसानों के लिए उन्होंने अच्छा तो कुछ किया नहीं, बल्कि नोटबंदी कर परेशान ज़रूर कर दिया. नोटबंदी होने से हमें बीज से लेकर खाद ख़रीदने में बहुत दिक्कत हुई. बैंकों से पैसा नहीं मिल रहा था, जिससे खेती-बाड़ी बुरी तरह प्रभावित हुई.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)