बैंकों, अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है पूंजी भंडार कम करना: रिज़र्व बैंक

रिज़र्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि इस बात को मानने की आवश्यकता है कि घरेलू बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज को लेकर उचित प्रावधान और उपयुक्त पूंजी स्तर अनुपात की कमी बनी हुई है.

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Mumbai: A security person walks past the RBI Headquarters in Mumbai, Monday, November 19, 2018, ahead of a crucial board meeting of the Reserve Bank of India. (PTI Photo/Shashank Parade) (PTI11_19_2018_000067B)
Mumbai: A security person walks past the RBI Headquarters in Mumbai, Monday, November 19, 2018, ahead of a crucial board meeting of the Reserve Bank of India. (PTI Photo/Shashank Parade) (PTI11_19_2018_000067B)

रिज़र्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि इस बात को मानने की आवश्यकता है कि घरेलू बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज को लेकर उचित प्रावधान और उपयुक्त पूंजी स्तर अनुपात की कमी बनी हुई है.

Mumbai: A security person walks past the RBI Headquarters in Mumbai, Monday, November 19, 2018, ahead of a crucial board meeting of the Reserve Bank of India. (PTI Photo/Shashank Parade) (PTI11_19_2018_000067B)
(फोटो: पीटीआई)

मुंबई: रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऊंचे फंसे कर्ज (एनपीए) और उसे कवर करने के लिए अपर्याप्त प्रावधान होने के साथ पूंजी संबंधी जरूरतों अथवा जोखिम पूंजी नियमों में किसी भी तरह की रियायत दिया जाना बैंकों के साथ ही समूची अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है. रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है.

बासेल- तीन नियमों में विभिन्न प्रकार के कर्ज के लिए जोखिम प्रावधान की सिफारिश की गई है. ये सिफारिशें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी गई क्युम्युलेटिव डिफॉल्ट रेट (सीडीआर) और रिकवरी दर के आधार पर की गई हैं. लेकिन भारत में ये दरें अंतरराष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी ऊंची हैं. रिजर्व बैंक की ‘बैंकिंग क्षेत्र में रुझान एवं प्रगति’ नामक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि इस लिहाज से बासेल के जोखिम प्रबंधन नियमों को ही लागू करना हमारे बैंकों की ऋण संपत्तियों के वास्तविक जोखिम को कम करके आंक सकता है. इसमें कहा गया है कि फंसे कर्ज के समक्ष जरूरी प्रावधान का मौजूदा स्तर हो सकता है कि संभावित नुकसान को पूरा करने के लिए काफी नहीं हो. ऐसे में संभावित नुकसान को खपाने के लिए पूंजी की पर्याप्तता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है.

रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि इस बात को मानने की आवश्यकता है कि घरेलू बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज के समक्ष उचित प्रावधान और उसके समक्ष उपयुक्त पूंजी स्तर अनुपात की कमी बनी हुई है. हालांकि, दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) और फंसी संपत्तियों के समाधान के लिए रिजर्व बैंक की संशोधित रूपरेखा से इस स्थिति में कुछ सुधार आया है.

रिपोर्ट में इस बात पर भी गौर किया गया है कि कुछ बैंकरों की तरफ से नियामकीय पूंजी आवश्यकताओं को कम करने पर जोर दिया गया है. वित्त मंत्रालय का एक वर्ग भी इस पर जोर दे रहा है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच यह तनाव का मुद्दा रहा है. इसके चलते ही इसी महीने उर्जित पटेल ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया था.