भाषण अंश: लखनऊ में 05 दिसंबर 1992 को भाजपा नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि वहां (अयोध्या) नुकीले पत्थर निकले हैं. उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता तो जमीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा. यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा. कम से कम वेदी तो बनेगी.मैं नहीं जानता कल वहां क्या होगा. मेरी अयोध्या जाने की इच्छा है, लेकिन मुझे कहा गया है कि तुम दिल्ली रहो.
लखनऊ में दिए गए अटल बिहारी बाजपेयी के भाषण का अंश ….
सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला लिया है उसका अर्थ मैं बताता हूं. वो कारसेवा रोकना नहीं है. सचमुच में सुप्रीम कोर्ट ने हमें अधिकार दिया है कि हम कारसेवा करें. रोकने का तो सवाल ही नहीं है.
कल कारसेवा करके अयोध्या में सर्वोच्च न्यायालय के किसी निर्णय की अवहेलना नहीं होगी. कारसेवा करके सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान किया जाएगा. ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक अदालत में वकीलों की बेंच फैसला नहीं करती आपको निर्माण का काम बंद रखना पड़ेगा.
मगर सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि आप भजन कर सकते हैं, कीर्तन कर सकते हैं. अब भजन एक व्यक्ति नहीं करता. भजन होता है तो सामूहिक होता है और कीर्तन के लिए तो और भी लोगों की आवश्यकता होती है. भजन और कीर्तन खड़े-खड़े तो नहीं हो सकता. कब तक खड़े रहेंगे?
वहां नुकीले पत्थर निकले हैं. उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता तो जमीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा. यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा. कम से कम वेदी तो बनेगी.मैं नहीं जानता कल वहां क्या होगा. मेरी अयोध्या जाने की इच्छा है, लेकिन मुझे कहा गया है कि तुम दिल्ली रहो.
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