कृषि को लेकर नीतियां बहुत हैं लेकिन किसानों की आय बढ़ाने पर ज़ोर नहीं: संसदीय समिति

वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने कहा कि सरकार टिकाऊ खेती के लिए पहल तो कर रही है लेकिन उसमें किसान केंद्र में नहीं है. स्थायी व्यवसाय के रूप में कृषि तभी बच सकती है जब किसानों को खुद को बचाए रखने का मौका दिया जाएगा.

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The Prime Minister, Shri Narendra Modi being presented a "Plough" as symbol of farming at the launching ceremony of DD Kisan Channel, in New Delhi on May 26, 2015. The Union Minister for Agriculture, Shri Radha Mohan Singh is also seen.

वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने कहा कि सरकार टिकाऊ खेती के लिए पहल तो कर रही है लेकिन उसमें किसान केंद्र में नहीं है. स्थायी व्यवसाय के रूप में कृषि तभी बच सकती है जब किसानों को खुद को बचाए रखने का मौका दिया जाएगा.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi being presented a "Plough" as symbol of farming at the launching ceremony of DD Kisan Channel, in New Delhi on May 26, 2015. The Union Minister for Agriculture, Shri Radha Mohan Singh is also seen.
कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो: पीआईबी)

नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार बार-बार  यह दावा करती रही है कि उसकी प्राथमिकता किसानों की आय दोगुनी कर देने का है, लेकिन वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति का कहना है कि कृषि को लेकर केंद्र सरकार द्वारा कई सारी योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इनका जोर किसानों की आय बढ़ाने पर नहीं है.

संसद की प्राक्कलन समिति ने कहा, ‘यद्यपि ‘टिकाऊ कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन’ दस्तावेज़ में कृषि के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख है लेकिन इसमें किसानों को आय सुरक्षा देने का महत्वपूर्ण तत्व गायब है. फसल बीमा योजना और सरकार द्वारा लागू की गई न्यूनतम समर्थन योजना किसानों के लिए खेती को फायदे का व्यवसाय बनाने में सक्षम नहीं है.’

समिति ने ये भी कहा कि सरकार टिकाऊ खेती के लिए पहल तो कर रही है लेकिन उसमें किसान केंद्र में नहीं है. स्थायी व्यवसाय के रूप में कृषि तभी बच सकती है जब किसानों को खुद को बचाए रखने का मौका दिया जाएगा.

समिति ने सुझाव दिया है कि इन तत्वों को सरकार द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए और समिति को इस संबंध में उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाए.

बता दें कि मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति ने ‘जलवायु परिवर्तन पर नेशनल एक्शन प्लान का प्रदर्शन’ पर 30वीं रिपोर्ट तैयार की है. ‘जलवायु परिवर्तन पर नेशनल एक्शन प्लान’ (एनएपीसीसी) के तहत कुल आठ राष्ट्रीय मिशन आते हैं जिसमें कृषि भी शामिल है.

समिति ने ये रिपोर्ट तैयार करने के दौरान सरकार द्वारा चलाई जा रही कृषि से संबंधित योजनाओं के आंकड़े और उनके लागू करने की स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी थी.

समिति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी पृथ्वी प्रभावित है और इसकी वजह से कृषि पर काफी बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

समिति ने यह भी नोट किया है कि मिशन का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा और भूमि, जल, जैव विविधता और आनुवांशिकी जैसे संसाधनों की सुरक्षा को बढ़ाना है ताकि भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन का सामना करने लायक बनाया जा सके.

कृषि मिशन प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जल उपयोग दक्षता, बागवानी, फसल क्षेत्र, बीज, कीट, रोग और खर पतवार प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, कृषि मशीनीकरण, संरक्षण, कृषि-आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, सुरक्षा जाल, ऋण, सूचनाओं की पहुंच, अनुसंधान और विकास, क्षमता निर्माण और पशुधन और मछली पालन पर केंद्रित है.

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समिति ने कहा कि रासायनिक खेती का जलवायु परिवर्तन में काफी योगदान है. ऐसी खेती की वजह से मृदा, पानी और किसानों की स्थिति खराब हो रही है.

भारत सबसे कम कीटनाशक प्रयोग करने वाले देशों में से एक है. यहां पर 0.6 किग्रा/हेक्टेयर के हिसाब से कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, लेकिन ज्यादातर कीटनाशकों का प्रयोग बिना किसी सावधानी प्रक्रिया के होता है जिसकी वजह से शरीर, मृदा, पानी और हवा में बुरा प्रभाव पड़ता है.

कृषि मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब के आधार पर समिति ने नोट किया कि इस समय भारत में 18.70 लाख हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती होती है.

संसदीय समिति ने इस बात को लेकर चिंता जताई है कि भारत की ज्यादातर भूमि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है और सरकार ने पानी संरक्षण की दिशा में कोई खास काम नहीं किया है.

समिति ने कहा, ‘भारत में दुनिया की 15 प्रतिशत आबादी है, लेकिन दुनिया के जल संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा भारत में है. आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि भारत की केवल 35 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है. इसका मतलब यह है कि 65 प्रतिशत खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है.’

समिति ने आगे कहा, ‘4,525 बड़े और छोटे बांधों के निर्माण के बाद भी, देश केवल प्रति व्यक्ति के हिसाब से 213 घन मीटर ही पानी का भंडारण तैयार कर पाया है. वहीं रूस में ये आंकड़ा 6,103 घन मीटर प्रति व्यक्ति, ऑस्ट्रेलिया में 4,733 घन मीटर प्रति व्यक्ति, अमेरिका में 1,964 घन मीटर प्रति व्यक्ति, और चीन में 1,111 घन मीटर प्रति व्यक्ति में प्रति व्यक्ति है.’

समिति ने कहा कि अमेरिका और चीन के मुकाबले भारत उत्पादन के लिए दोगुना पानी का इस्तेमाल करता है.

उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण कृषि के लिए बिजली सब्सिडी दिया जाना है जिसकी वजह से जल स्तर में गिरावट हो रहा है. इसके अलावा एक और वजह यह है कि गन्ने, गेहूं और चावल जैसी ज्यादा पानी लेने वाली फसलों को मूल्य समर्थन दिया जाता है.

इसकी वजह से ये फसलें भूजल और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से उन क्षेत्रों में भी उगाई जा रही हैं जहां इन फसलों के लिए भौगोलिक परिस्थितियां उचित नहीं हैं. जैसा कि महाराष्ट्र के सूखे क्षेत्रों में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है, जो बहुत ज्यादा पानी सोखता है.

संसदीय समिति ने कहा कि नए हाईब्रिड बीज अधिक पैदावार देते हैं लेकिन उन्हें अधिक पानी की भी आवश्यकता होती है. परिणामस्वरूप, परंपरागत कृषि प्रणाली और प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया है क्योंकि इसके लिए किसानों को कोई सरकारी सहायता या आय सहायता नहीं दी जाती है.

प्राक्कलन समिति ने कहा, ‘समिति इस बात से चिंतित है कि भूजल के भारी उपयोग से कई राज्यों में भूजल स्तर में गिरावट आ रही है और देश जल संकट वाला राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है. इसलिए सरकार को कुशल सिंचाई विधियों जैसे कि ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए उचित नीतिगत उपाय तैयार करना चाहिए.’

समिति ने कहा कि अगर किसान को बचाए रखना है तो उनके लिए बेहतर बीज, कृषि के बेहतरीन प्रयोगों और आपदा की स्थिति में सरकार द्वारा सहयोग दिया जाना चाहिए. संसदीय समिति ने भारतीय प्रणाली के जरिए बीज तैयार की व्यवस्था को बढ़ाने के लिए कहा है.

समिति ने कहा कि है बड़ी कंपनियों द्वारा महंगे बीज बेचने की वजह से खेती की लागत बढ़ रही है. उन्होंने कहा, ‘भारत में बीज के रूप में उत्पाद के एक हिस्से को बचाने की संस्कृति थी, लेकिन धीरे धीरे इस पारंपरिक प्रणाली को बीज के बड़े बाजार ने संभाल लिया है, जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने बीज उच्च कीमतों पर बेच रही हैं जिससे कृषि की लागत बढ़ रही है’

समिति ने ये भी कहा कि कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे बीज न सिर्फ स्थानीय परिस्थितियों के लिहाज से अनुपयुक्त होते हैं बल्कि ऐसे बीज पानी भी ज्यादा लेते हैं और किसी आपदा के समय फसल खराब होने की संभावना ज्यादा होती है.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल होने के अलावा हमारी पारंपरिक प्रणाली का उपयोग बीज की खरीद और पानी की बचत पर खर्च होने वाली राशि को कम करके पूरी कृषि में लागत को कम कर सकता है.

समिति ने जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को भी बढ़ावा देने के लिए कहा है. इससे पानी की बचत, पर्यावरण की रक्षा, भूमि की उर्वरता में वृद्धि और इस प्रणाली के तहत उत्पादन की लागत शून्य हो जाती है और उत्पाद गैर-जहरीले होते हैं.

महाराष्ट्र के एक किसान सुभाष पालेकर ने इस तकनीक की खोज की है. कृषि मंत्रालय ने समिति के बताया है कि आंध्र प्रदेश के 163,000 से ज्यादा के किसानों की 150,000 एकड़ से ज्यादा की भूमि पर जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को टेस्ट किया गया है.

समिति ने कहा है कि सरकार इस तकनीक को लागू करने की स्थिति और इसके तहत बनाए गए मॉडल के बारे में सभी जरूरी जानकारी दे.