भारतीय सेना की वार्षिक प्रेस वार्ता में जनरल बिपिन रावत ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को सेना में लागू नहीं किया जा सकता है.
नई दिल्ली: सेना प्रमुख बिपिन रावत का कहना है कि समलैंगिक संबंध पर सुप्रीम कोर्ट के दिए हुए आदेश को सेना में लागू नहीं कर सकते. सेना की वार्षिक प्रेस वार्ता में रावत ने स्पष्ट किया कि वे सेना में समलैंगिक संबंधों का प्रचलन कायम नहीं होने देंगे और इस तरह के संबंध सेना में प्रतिबंधित है.
रावत ने प्रेस वार्ता के दौरान यह साफ़ तौर पर कहा कि सेना भारतीय क़ानून के ऊपर नहीं है, फिर भी वे इस तरह के संबंधों की इजाज़त सेना के भीतर नहीं दे सकते.
रावत ने कहा, ‘हम सेना में इसकी अनुमति नहीं देंगे.’
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ज्ञात हो कि पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके तहत बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध अपराध था.
खास बात यह है कि यह फैसला एकमत से दिया गया था. 158 साल पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट ने समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया था.
गौरतलब है कि समलैंगिकता को अपराध रहने देने की दलील देने वालों में सुरेश कुमार कौशल (जिनकी अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 की वैधता को बहाल किया था) ने तर्क रखा था कि अगर धारा 377 के तहत दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा तो इससे देश की सुरक्षा को ख़तरा हो जाएगा.
यह भी कहा गया था कि जो जवान परिवार से दूर रहते हैं, वे अन्य जवानों के साथ सेक्सुअल गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, इससे भारत में पुरुष वेश्यावृति को बढ़ावा मिलेगा.
वहीं अडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में पूछे जाने पर आर्मी प्रमुख ने कहा कि आर्मी रूढ़िवादी है. रावत ने कहा, ‘हम इसे सेना में लागू करने की इजाज़त नहीं दे सकते हैं.’ पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटिश राज के एंटी-अडल्टरी कानून को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह असंवैधानिक है.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)