एक आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि मुख्य सतर्कता आयुक्त/सतर्कता आयुक्तों के ख़िलाफ़ मिलीं आपत्तियों और शिकायतों से निपटने के लिए दिशानिर्देश तय करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. हाल ही में सीवीसी केवी चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कहा है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के खिलाफ शिकायतों की निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है. उनके खिलाफ किसी शिकायत पर तभी कार्रवाई की जा सकती है जब दिशानिर्दश तय हो जाएंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने यह जानकारी 9 जनवरी को एक आरटीआई जवाब में दी. यह जानकारी भारतीय वन सेवा अधिकारी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव चतुर्वेदी ने मांगी थी. चतुर्वेदी ने सीवीसी केवी चौधरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा था.
डीओपीटी ने अपने जवाब में कहा, ‘मुख्य सतर्कता आयुक्त/सतर्कता आयुक्तों के खिलाफ आपत्तियों/शिकायतों के निस्तारण के लिए डीओपीटी ने दिशानिर्देश तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.’
साल 2003 से ही सीवीसी अधिनियम है और इस संबंध में 15 सालों तक दिशानिर्देश तय नहीं किए गए. इसका मतलब है कि ऐसी कोई प्रणाली नहीं है जहां सीवीसी या सीवीसी के निर्णयों को चुनौती दी जा सके.
14 जनवरी को राष्ट्रपति को लिखे अपने हालिया पत्र में चतुर्वेदी ने कहा था कि सीवीसी के खिलाफ शिकायतों का निस्तारण करने के संबंध में दिशानिर्देश तय करने की प्रक्रिया आखिर कब तक चलेगी. डीओपीटी के जवाब में अक्टूबर 2018 और जनवरी 2019 में एक ही स्थिति बरकरार है.
उन्होंने कहा था कि सीवीसी को मिली यह छूट न केवल सीवीसी अधिनियम 2003 के प्रावधानों के खिलाफ है बल्कि देश के सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक संस्थान के कामकाज के संबंध में कानून के शासन औऱ जवाबदेही के मौलिक सिद्धांतों के भी खिलाफ है, जो कि करदाताओं की मेहनत की कमाई पर चल रहा है.
चतुर्वेदी द्वारा सीवीसी पर लगाए गए आरोपों में इस बात की ओर भी इशारा है कि सीवीसी ने भ्रष्टाचार के उन आरोपों की जांच के लिए एम्स में मुख्य सतर्कता आयुक्त नियुक्त नहीं किया जिन्हें उजागर करने की कोशिश करने का दावा चतुर्वेदी करते हैं.
15 जुलाई, 2017 को चतुर्वेदी ने सीवीसी की कार्यप्रणाली के खिलाफ शिकायत की थी. इसके बाद उन्होंने अगस्त 2017 और जनवरी 2018 को राष्ट्रपति को इस संबंध में पत्र लिखा था, जिसे उन्होंने उसे आगे की कार्यवाही के लिए डीओपीटी को भेज दिया था.
हाल में सीवीसी तब चर्चा में आए जब उन्होंने पिछले साल 23 अक्टूबर की आधी रात को पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा औऱ विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर कार्रवाई की थी.
सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार ने वर्मा का ट्रांसफर फायर सर्विस, सिविल डिफेंस एंड होम गार्ड्स के महानिदेशक के तौर पर किया था जिसे स्वीकार करने से वर्मा ने मना कर दिया था.
सीवीसी की जांच रिपोर्ट तब और विवादास्पद बन गई थी जब जांच की निगरानी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जज ने सीवीसी के जांच नतीजों से खुद को अलग कर लिया था और कहा था कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं हैं. वहीं सीवीसी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि वर्मा के खिलाफ आरोपों में कुछ दम है.
सीवीसी के खिलाफ वर्मा ने गंभीर आरोप लगाया था कि सीबीआई दफ्तर पर आधी रात के छापे से करीब 15 दिन पहले उन्होंने आरोपी अधिकारी अस्थाना के लिए मध्यस्थता करने की कोशिश की थी.
वर्मा ने कहा था, सीवीसी ने उनके घर आकर अस्थाना के खिलाफ उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को वापस लेने को कहा था.’