उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री ने नोटिस में कहा कि अयोध्या विवाद मामला गुरुवार को संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा. पीठ में सीजेआई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर होंगे.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक रूप से संवदेनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को पांच सदस्यीय एक नई संविधान पीठ का गठन किया.
पीठ का पुनर्गठन इसलिए किया गया क्योंकि मूल पीठ के सदस्य जस्टिस यूयू ललित ने 10 जनवरी को मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
दरअसल इस मामले के एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कोर्ट में कहा था कि संविधान पीठ के जज जस्टिस यूयू ललित ने वकील रहते बाबरी मस्जिद से संबंधित एक अवमानना मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ओर से पैरवी की थी.
उन्होंने कहा था, ‘मैं सिर्फ आपकी संज्ञान में ये बात ला रहा हूं. हमें इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि वे इस मामले की सुनवाई करेंगे. ये पूरी तरह से आपके ऊपर निर्भर है.’
राजीव धवन द्वारा कोर्ट में ये जानकारी देने के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बताया था कि जस्टिस यूयू ललित न कहा है कि वे इस मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का हिस्सा नहीं होंगे. इस तरह यूयू ललित ने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया.
इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख तय की थी.
नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर को शामिल किया गया है.
जस्टिस एनवी रमण भी नई पीठ का हिस्सा नहीं हैं. वह 10 जनवरी को जिस पीठ ने मामले पर सुनवाई की थी, उसमें शामिल थे.
नई पीठ में जस्टिस भूषण और जस्टिस नजीर नए सदस्य हैं.
उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री ने विभिन्न पक्षों को भेजे गए नोटिस में कहा कि अयोध्या विवाद मामला गुरुवार 29 जनवरी 2019 को ‘प्रधान न्यायाधीश की अदालत में संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा. पीठ में सीजेआई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर होंगे.’
जस्टिस भूषण और जस्टिस नजीर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे, जिसने 27 सितंबर 2018 को 2:1 के बहुमत से शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई एक टिप्पणी को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास पुनर्विचार के लिये भेजने से मना कर दिया था.
शीर्ष अदालत ने 1994 के अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. यह मामला अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के दौरान उठा था. जस्टिस नजीर ने बहुमत के फैसले से अलग राय जताई थी.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर हैं. चार दीवानी मुकदमों पर सुनाए गए अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ जमीन को तीन पक्षों–सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
हाल ही में समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया था कि राम मंदिर मुद्दे पर एक कार्यकारी आदेश पारित करने का कोई भी निर्णय तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि न्यायिक प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है.
मोदी ने कहा था, ‘न्यायिक प्रक्रिया को समाप्त होने दें. न्यायिक प्रक्रिया समाप्त होने के बाद सरकार के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी जो भी होगी, हम सभी प्रयास करने के लिए तैयार हैं. हमने अपने भाजपा के घोषणा पत्र में कहा है कि इस मुद्दे का हल संविधान के दायरे में ढूंढ लिया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)