इन दिनों सरकार के ख़िलाफ़ महज़ विचार रखना भी राजद्रोह क़रार दिया जा सकता है: अरुणा रॉय

जयपुर साहित्य उत्सव में शामिल हुईं आरटीआई कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि एक सूचना कार्यकर्ता के लिए हालात चिंताजनक हैं क्योंकि किसी तरह की सूचना मांगने को राजद्रोह क़रार दिया जा सकता है.

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अरुणा रॉय (फोटो साभार: फेसबुक/Azim Premji University)

जयपुर साहित्य उत्सव में शामिल हुईं आरटीआई कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि एक सूचना कार्यकर्ता के लिए हालात चिंताजनक हैं क्योंकि किसी तरह की सूचना मांगने को राजद्रोह क़रार दिया जा सकता है.

अरुणा रॉय (फोटो साभार: फेसबुक/Azim Premji University)
अरुणा रॉय (फोटो साभार: फेसबुक/Azim Premji University)

जयपुर: आरटीआई कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने जयपुर साहित्य उत्सव के दूसरे दिन ‘जानने का अधिकार’ सत्र में चेतावनी दी कि देश में बहस और असहमति का दायरा सिकुड़ता जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार के ख़िलाफ़ महज कोई विचार रखना भी इन दिनों राजद्रोह क़रार दिया जा सकता है.

जयपुर के डिग्गी पैलेस में चल रहे आयोजन के दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवा की पूर्व अधिकारी अरुणा ने कहा, ‘जब आप बातचीत की गुंजाइश ख़त्म कर देते हैं और जब आप कहते हैं कि कुछ ख़ास तरह का विचार ख़ुद में राजद्रोह जैसा है, तब आप एक बहुत ही ख़तरनाक स्थिति में होते हैं.’

भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में पुणे पुलिस द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किए जाने का ज़िक्र करते हुए उन्होंने दलील दी कि एक सूचना कार्यकर्ता के लिए हालात चिंताजनक हैं क्योंकि किसी तरह की सूचना मांगने को राजद्रोह क़रार दिया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘ठीक इसी तरह, भूमि के मालिकाना हक़ के बारे में जानकारी देने वाले मेरे स्थानीय राजस्व अधिकारी से यदि आप पूछेंगे तो वह आपसे कहेंगे कि हम सभी सरकार विरोधी हैं क्योंकि हम उनसे सूचना मांग रहे हैं.’

अरुणा रॉय ने मज़दूर किसान शक्ति संगठन के साथ मिलकर ‘द आरटीआई स्टोरीज़’ नाम की किताब हाल ही में लिखी है. 1975 में भारतीय प्रशासनिक सेवा छोड़कर उन्होंने मज़दूर किसान शक्ति संगठन का गठन किया था.

गौरतलब है कि अरुणा भारत में सूचना का अधिकार आंदोलन की नेता रही हैं. इस मुहिम ने 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम का मार्ग प्रशस्त किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)