आधार में दिया गया नाम-पता ठोस सबूत नहीं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड के संबंध में उसके सामने बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें किसी खास साल के साथ जनवरी की 1 तारीख को जन्मतिथि घोषित की गई होती है जबकि कुछ मामलों में तो केवल जन्म के साल की जानकारी दर्ज रहती है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड के संबंध में उसके सामने बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें किसी खास साल के साथ जनवरी की 1 तारीख को जन्मतिथि घोषित की गई होती है जबकि कुछ मामलों में तो केवल जन्म के साल की जानकारी दर्ज रहती है.

Aadhaar-PTI
(फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कहा है कि आधार कार्ड में दिए गए नाम, लिंग, पता और जन्मतिथि को इन तथ्यों का ठोस सबूत नहीं माना जा सकता है. साथ ही, आपराधिक मामलों की जांच में संदेह होने पर इनकी पड़ताल की जा सकती है.

जस्टिस अजय लाम्बा और जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने हाल में दिए गए एक फैसले में कहा कि साक्ष्य अधिनियम के तहत यह नहीं कहा जा सकता कि आधार कार्ड में दिए गए नाम, पता, लिंग और जन्मतिथि का विवरण उनके सही होने का ठोस सबूत हैं. इस विवरण पर अगर सवाल उठता है और खासतौर आपराधिक मामलों की जांच के दौरान, तो जरूरत पड़ने पर इनकी पड़ताल की जा सकती है.

अदालत ने बहराइच के सुजौली थाना में दर्ज एक मामले की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल ही में यह आदेश दिया था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह याचिका एक दंपत्ति ने दायर की थी. उन्होंने लड़की की मां के द्वारा लड़के और उसके परिवार के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को खारिज करने की मांग की थी. अदालत में इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने आधार कार्ड पेश किया था कि वे शादी करने की उम्र के हैं.

आधार कार्ड में दर्ज याचिकाकर्ताओं की जन्मतिथि पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अदालत ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) से जवाब मांगा था. इस मामले में आधार कार्ड में लड़के की जन्मतिथि 01.01.1997 और लड़की की जन्मतिथि 01.01.1999 अंकित थी. अदालत ने कहा कि इस मामले में उम्र की प्रासंगिकता मान ली गई क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने खुद को शादी की उम्र के लायक दिखाने के लिए आधार कार्ड में लिखी गई जन्मतिथि पर भरोसा किया है.

अदालत ने कहा कि आधार कार्ड के संबंध में उसके सामने बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें किसी खास साल के साथ जनवरी की 1 तारीख को जन्मतिथि घोषित की गई होती है जबकि कुछ मामलों में तो केवल जन्म के साल की जानकारी दर्ज रहती है. इसके बाद अदालत ने यूआईडीएआई को एक प्रतिवादी के रूप में पेश होने का आदेश देते हुए उससे पूछा कि क्या आधार कार्ड को जन्मतिथि या जन्म के साल के रूप में सुबूत के तौर पर माना जा सकता है या नहीं.

अपने हलफनामे में यूआईडीएआई ने कहा, ‘अगर किसी व्यक्ति के पास उसकी जन्मतिथि से संबंधित कोई वैध दस्तावेज नहीं होता है तो उसकी जन्मतिथि घोषित या अनुमानित जन्मतिथि आधार पर दर्ज कर दी जाती है. अनुमानित जन्मतिथि के मामले में व्यक्ति ऑपरेटर को मौखिक रूप से अपनी उम्र बता देता है. इसके बाद ईसीएमपी कर्मी उसके जन्म के साल की गणना कर लेता. इस तरह से जन्म की तारीख अपने आप उस खास साल में 1 जनवरी को दर्ज हो जाती है.’

उसने आगे कहा कि आधार अधिनियम में इस बात का जिक्र नहीं है कि आधार को जन्मतिथि के सुबूत के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है.

यूआईडीएआई के हलफनामे को संज्ञान में लेते हुए पीठ ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम के तहत यह नहीं कहा जा सकता कि आधार कार्ड में दिए गए नाम, पता, लिंग और जन्मतिथि का विवरण उनके सही होने का ठोस सबूत है. इस विवरण पर अगर सवाल उठता है और खास तौर पर आपराधिक मामलों की जांच के दौरान जरूरत पड़ने पर इनकी पड़ताल की जा सकती है.

अदालत ने कहा, ‘जन्मतिथि के संबंध में आवेदनकर्ता ने जानकारी दी है जिसे यूआईडीएआई ने प्रमाणित नहीं किया है. इसलिए जन्मतिथि के संबंध में आधार कार्ड को वैध सुबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है.’

इस मामले में ‘अस्थिकरण जांच’ (हड्डियों के माध्यम से इंसान की उम्र का पता लगाया जाना) के माध्यम से जांचकर्ताओं ने लड़की की उम्र 17 साल बताई है. जांच अधिकारी ने हड्डियों में आने वाले अंतर के आधार पर लड़की की उम्र को दो साल के संदेह का लाभ दिया है और बताया है कि घटना के दिन उसने उम्र की निर्धारित सीमा पार कर ली थी.

अदालत ने कहा कि अस्थिकरण जांच के माध्यम से की गई उम्र की पुष्टि के आधार पर वह इस शादी को मंजूरी प्रदान करता है. यह देखते हुए कि लड़की का न तो अपहरण हुआ था औj न ही उसे बंधक बनाया गया था. अंत में पीठ ने लड़के और उसके घरवालों पर दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया.

इसी महीने, कलकत्ता हाईकोर्ट ने आधार नामांकन के दौरान दी जाने वाली जानकारियों की पुष्टि न किए जाने पर सवाल उठाया था.

उसने कहा था, ‘आधार नामांकन प्रक्रिया के दौरान सत्यापन के बिना किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए एक प्रकार की जानकारी की अनुमति देना मनमाना है.’ जस्टिस प्रतीक प्रकाश बनर्जी ने कहा था, ‘आधार नामांकन प्रक्रिया के साथ कुछ तो समस्या है जिसमें किसी के पहचान से जुड़ी सूचना के साथ भी फर्जीवाड़ा किया जा सकता है और किसी को पता भी नहीं चलता है.’

पिछले साल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना था कि आधार कार्ड को किशोर न्याय (जेजे) नियमों के नियम 7 के उद्देश्य से आयु का प्रमाण माना जा सकता है. दिल्ली हाईकोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस रुख से असहमति जताई थी कि आधार कार्ड में जन्मतिथि के बजाय केवल जन्म का साल अंकित है इसलिए उसे नजरबंद व्यक्ति की जन्मतिथि के सुबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है.