भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ ने 29 जनवरी को सुनवाई के लिए ये मामला उठाने का फैसला किया था.
नई दिल्ली: अयोध्या भूमि विवाद मामले की सुनवाई 29 जनवरी को होने वाली थी, हालांकि इस मामले की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के एक जज जस्टिस एसए बोबड़े की अनुपस्थिति की वजह से ये सुनवाई टाल दी गई है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ ने 29 जनवरी को सुनवाई के लिए ये मामला उठाने का फैसला किया था.
हालांकि, 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से जारी नोटिस में कहा गया है कि इस मामले की सुनवाई अब जस्टिस एसए बोबडे की अनुपस्थिति के कारण टाल दी गई है.
इससे पहले बीते 10 जनवरी को भी मामले की सुनवाई टाल दी गई थी जब जस्टिस यूयू ललित खुद को पीठ से अलग कर लिया था.
दरअसल इस मामले के एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कोर्ट में कहा कि संविधान पीठ के जज जस्टिस यूयू ललित ने वकील रहते बाबरी मस्जिद से संबंधित एक अवमानना मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ओर से पैरवी की थी.
इसके बाद, एक नई पीठ गठित की गई जिसमें जस्टिस अशोक भूषण और एस अब्दुल शामिल नज़ीर को शामिल किया गया. इन्होंने जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस यूयू ललित की जगह ली.
इससे पहले तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के अपने फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा ना मानने संबंधी टिप्पणी पर पुनर्विचार का मुद्दा पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था.
अयोध्या भूमि विवाद मामले की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा था.
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने तब कहा था कि दीवानी वाद पर साक्ष्यों के आधार पर फैसला किया जाएगा. पीठ ने यह भी कहा था कि इस मामले में पिछले फैसले की कोई प्रासंगिकता नहीं है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 14 अपीलें दायर हैं. हाईकोर्ट ने चार दीवानी मुकदमों पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों—सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
हाल ही में समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया था कि राम मंदिर मुद्दे पर एक कार्यकारी आदेश पारित करने का कोई भी निर्णय तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि न्यायिक प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है.
मोदी ने कहा था, ‘न्यायिक प्रक्रिया को समाप्त होने दें. न्यायिक प्रक्रिया समाप्त होने के बाद सरकार के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी जो भी होगी, हम सभी प्रयास करने के लिए तैयार हैं. हमने अपने भाजपा के घोषणा पत्र में कहा है कि इस मुद्दे का हल संविधान के दायरे में ढूंढ लिया जाएगा.