अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट पहुंची मोदी सरकार ने कहा- मूल मालिकों को मिले अविवादित ज़मीन

अयोध्या में विवादित स्थल के बारे में एक नई रिट याचिका में केंद्र सरकार ने कहा कि शीर्ष अदालत विवादित स्थल के आस-पास अधिग्रहित की गई अविवादित ज़मीन पर से यथास्थिति बरक़रार रखने का आदेश हटा ले, जिससे वह हिस्सा उसके मूल मालिकों को वापस किया जा सके.

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(फोटो: पीटीआई)

अयोध्या में विवादित स्थल के बारे में एक नई रिट याचिका में केंद्र सरकार ने कहा कि शीर्ष अदालत विवादित स्थल के आस-पास अधिग्रहित की गई अविवादित ज़मीन पर से यथास्थिति बरक़रार रखने का आदेश हटा ले, जिससे वह हिस्सा उसके मूल मालिकों को वापस किया जा सके.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अयोध्या विवाद मामले में केंद्र की मोदी सरकार मंगलवार को एक नई याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है.

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि विवादित जमीन के आस-पास जो अविवादित जमीन है उस पर से वह यथास्थिति हटा ले और जमीन का वह हिस्सा उसके मूल मालिक को वापस कर दे.

अपनी रिट याचिका में केंद्र सरकार ने कहा कि उसने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की 2.77 एकड़ विवादित जमीन के आस-पास 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. जबकि जमीन का विवाद सिर्फ 0.313 एक़ड़ का है. ऐसे में अविवादित जमीन को इसके मूल मालिकों को वापस किया जाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र ने कहा, रामजन्मभूमि न्यास (राम मंदिर बनाने की मांग करने वाला ट्रस्ट) ने 1991 में अधिग्रहित की गई अतिरिक्त जमीन को मूल मालिकों को वापस करने की मांग की थी. 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन के आस-पास की 67 एकड़ की जमीन के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.

एनडीटीवी के मुताबिक सरकारी सूत्रों का कहना है कि नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित 0.313 एकड़ भूमि के साथ ही 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध है. इसमें 40 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास की है. हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दिया जाए, साथ ही वापस करते समय यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे. उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए.

बता दें कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की 29 जनवरी को होने वाली सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को टाल दिया था क्योंकि पांच जजों की संविधान पीठ के एक सदस्य उपस्थित नहीं थे.

सोमवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या जमीन विवाद की सुनवाई धीमी रफ्तार से चलने के नाराजगी जाहिर की थी. उन्होंने अपील की कि व्यभिचार और सबरीमाला मंदिर से जुड़े मामलों की तरह इस मामले में तेजी से फैसला किया जाए.

पटना में पत्रकारों से बात करते हुए प्रसाद ने कहा कि यह देश के लोगों की इच्छा है कि अयोध्या में राम मंदिर बने. हमारे प्रधानमंत्री और हमारे पार्टी अध्यक्ष यह बात साफ कर चुके हैं कि यह काम संवैधानिक तरीके से पूरा किया जाएगा.

प्रसाद ने कहा कि वह कानून मंत्री के रूप में नहीं बल्कि एक नागरिक के तौर पर बोल रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हालांकि एक कानून मंत्री के तौर पर नहीं बल्कि एक नागरिक के तौर पर मैं यह कहना चाहूंगा कि यह मामला पिछले 70 सालों से लटका पड़ा है. जमीन विवाद पर फैसला करने में इलाहाबाद हाईकोर्ट को 60 साल लग गए. वहीं उसके खिलाफ दाखिल अपील सुप्रीम कोर्ट में 10 सालों से लटका हुआ है.’

मालूम हो कि प्रसाद इस मामले में हाईकोर्ट में एक याचिकाकर्ता के वकील थे.

इस बीच केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने यह साफ किया था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी. मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने संसद को बताया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट  के फैसले का इंतजार करेगी और उसी के अनुसार काम करेगी.