पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ्तार कर लिया था.
पुणे: पुणे की सत्र अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी को ग़ैरक़ानूनी बताते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है.
एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में पुणे पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद शनिवार को आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ्तार कर लिया. शनिवार तड़के 3:30 बजे महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने उन्हें मुंबई से गिरफ़्तार किया था.
अदालत ने उन्हें इतनी सुबह गिरफ़्तार किए जाने को लेकर भी पुणे पुलिस पर सवाल उठाए हैं.
उच्चतम न्यायालय ने बीती 14 जनवरी को इस मामले में आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ दर्ज पुणे पुलिस की प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने से इनकार कर दिया था. हालांकि तब अदालत ने गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी थी. यह अवधि 11 फरवरी को ख़त्म हो रही है.
शुक्रवार को ही पुणे की एक विशेष अदालत ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर तेलतुम्बड़े की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद पुणे पुलिस ने यह कार्रवाई की थी.
गिरफ़्तारी के बाद तेलतुम्बड़े के वकील रोहन नाहर ने द वायर को बताया था कि इस बारे में पुणे सिविल कोर्ट में पुलिस के खिलाफ अवमानना की अर्जी लगाई जाएगी. उन्होंने कहा, ‘तेलतुम्बड़े को गैर-कानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है. हम इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.’
पुलिस के अनुसार माओवादियों ने पुणे में 31 दिसम्बर 2017 को एल्गार-परिषद सम्मेलन का समर्थन किया था और यहां दिए गए भड़काऊ भाषण के बाद अगले दिन कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़क गई थी.
मालूम हो कि एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एलगार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.
बीते साल 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं.
इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने जून 2018 में एलगार परिषद के कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया था.