कांग्रेस सांसद शशि थरूर की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को समझे जाने की ज़रूरत है कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, बशर्ते की पत्नी की उम्र 18 साल से कम न हो.
नई दिल्लीः लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्र की मोदी सरकार की ओर से कहा गया है कि मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए वह अभी किसी भी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है.
सरकार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर द्वारा लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में यह बयान दिया. थरूर ने ट्वीट कर सरकार के इस जवाब को साझा किया.
थरूर ट्वीट कर कहते हैं, ‘लोकसभा में मेरे सवाल के जवाब में सरकार कहती है कि वे मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रहे. विवाहित महिलाओं को उनके शरीर पर हक देने से इनकार करने के सरकार के इस रूढ़िवादी रुख से निराशा हुई. भाजपा के लिए पत्नियां उनके पतियों की सिर्फ संपत्ति हैं.’
थरूर ने मंगलवार को लोकसभा में मैरिटल रेप पर सरकार से पूछा था कि क्या सरकार को पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग पत्नी के साथ मैरिटल रेप को अपराध करार दिया है. अदालत ने कहा था कि विधानमंडलों को मैरिटल रेप पर कानूनी अपवाद के बारे में जरूर फैसला लेना चाहिए, इस कानून के बेवकूफाना होने के बावजूद भी अदालत इस पर कोई फैसला नहीं ले सकती.
थरूर ने सवाल उठाया कि यदि ऐसा है तो क्या सरकार भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश कर सकती है.
In response to my question in the Lok Sabha, the Govt says that they are not considering a proposal to criminalize marital rape. Disappointing to note this regressive stand in denying married women autonomy over their body. For BJP, wives are just the property of their husbands! pic.twitter.com/Yj2yPwAkvW
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) February 5, 2019
इसके जवाब में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 अक्टूबर 2017 के अपने आदेश में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 की अपवाद 2 को समझे जाने की जरूरत है कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, बशर्ते की पत्नी की उम्र 18 साल से कम नहीं हो.
केंद्र सरकार ने कहा कि उसके पास इस तरह का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है. आपराधिक मामलों में संशोधन एक सतत प्रक्रिया है और इस पर राज्यों सहित विभिन्न पक्षों की सलाह के बाद ही फैसला लिया जाता है.