रफाल सौदा 2013 की मानक रक्षा ख़रीद प्रक्रिया (डीपीपी) के तहत किया गया था जिसमें भ्रष्टाचार को लेकर जुर्माने संबंधी सख़्त प्रावधान किए गए थे. ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रत्येक रक्षा ख़रीद में लागू होने वाले इन प्रावधानों को मोदी सरकार द्वारा सितंबर 2016 में इस सौदे से हटा दिया गया.
नई दिल्ली: भारत और फ्रांस के बीच में हुए 7.87 बिलियन यूरो के रफाल सौदे में भारत सरकार द्वारा बहुत बड़ी और अप्रत्याशित छूटें दी गई हैं.
द हिंदू अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार अंतर सरकारी समझौता (इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट- आईजीए) पर दस्तखत किए जाने से कुछ दिन पहले ही भ्रष्टाचार-रोधी जुर्माने और एस्क्रो खातों से लेन-देन किए जाने से जुड़े महत्वपूर्ण प्रावधानों को हटा दिया गया था.
एस्क्रो खातों का मतलब किसी ऐसे अनुबंध से होता है जिसमें किसी बॉन्ड या दस्तावेज को किसी तीसरे पक्ष के पास रखा जाता है और वह केवल तभी प्रभावी होता है जब निर्दिष्ट शर्त पूरी हो गई हो.
इस अख़बार द्वारा सरकारी दस्तावेजों के हवाले से किए गए खुलासे के अनुसार, यह सौदा 2013 के मानक रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) के तहत किया गया था. इसके तहत भ्रष्टाचार होने, अनुचित प्रभाव, एजेंट/एजेंसी से जुड़े कमीशन आदि को लेकर जुर्माना संबंधी प्रावधान किए गए थे. लेकिन बाद में इन प्रावधानों को हटा लिया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने उस प्रावधान को भी हटा दिया जिसके तहत उसे दासो एविएशन और एमबीडीए फ्रांस, दोनों कंपनियों के खातों में पहुंच का अधिकार था.
दरअसल 2013 में बनाए गए डीपीपी के तहत एक मानक प्रक्रिया अपनाई गई थी जिसे प्रत्येक रक्षा ख़रीद पर लागू किया जाना था और कोई भी डील हो लेकिन इसके नियमों में छूट नहीं दी जा सकती.
रिपोर्ट बताती है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुआई वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने सितंबर, 2016 में समझौते, सप्लाई प्रोटोकॉल, ऑफसेट समझौते और ऑफसेट शेड्यूल में आठ बदलावों का समर्थन कर इन्हें मंजूर किया था.
रिपोर्ट के मुताबिक यह सब 24 अगस्त, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में समझौते और इससे जुड़े दस्तावेजों को मंजूरी देने के बाद हुआ.
इन आठों बदलावों में सबसे महत्वपूर्ण बात सब पैरा (सी) में थी जो कि डीसीआईडीएस (पीपीएंडएफडी) के वाइस एडमिरल अजीत कुमार (डीएसी के तत्कालीन सदस्य सचिव) के द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक नोट में थी.
सब पैरा (सी) के अनुसार, मानक रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) के तहत भ्रष्टाचार होने, अनुचित प्रभाव, एजेंट/एजेंसी से जुड़े कमीशन आदि को लेकर जुर्माने और सप्लाई प्रोटोकॉल में कंपनी के खातों तक पहुंच संबंधी प्रावधान शामिल नहीं हैं.
यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इन प्रावधानों को सप्लाई प्रोटोकॉल से भारत सरकार ने हटाया है. दरअसल, आईजीए का समझौता भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच था लेकिन सप्लाई प्रोटोकॉल को दो निजी कंपनियों दासो और एमबीडीए द्वारा लागू किया जाना था.
भारत और फ्रांस के बीच 23 सितंबर, 2016 को दिल्ली में आईजीए के जिन नियमों के तहत हस्ताक्षर किए गए थे उसके अनुसार, दासो भारतीय वायुसेना को रफाल विमान पैकेज का आपूर्तिकर्ता (मैन्युफैक्चरर) था जबकि एमबीडीए फ्रांस हथियारों के पैकेज का मैन्युफैक्चरर था.
भारत की तरफ से बातचीत करने वाली टीम के तीन सदस्यों ने इस बात को लेकर अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई थी जिसमें लागत मामलों पर सलाहकार एमपी सिंह, वित्तीय प्रबंधक (एयर) एआर सुले और संयुक्त सचिव और खरीद प्रबंधक (एयर) राजीव वर्मा शामिल थे.
दो कंपनियों के साथ सीधे सौदा करने पर सख्त विरोध जताते हुए एक नोट में उन्होंने लिखा था, ‘इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह सौदा सरकार-सरकार के बीच में हुआ है जबकि आईजीए सीधे तौर पर फ्रांसीसी औद्योगिक मैन्युफैक्चरर के साथ सौदा कर रहा है इसलिए हम यह सलाह नहीं देंगे कि वित्तीय मामलों से जुड़ी आधारभूत आवश्यकताओं से समझौता किया जाए.’
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने फ्रांस से स्वायत्त या बैंक गारंटी भी नहीं ली और फ्रांसीसी प्रधानमंत्री से केवल एक ‘लेटर ऑफ कंफर्ट’ से मान गई जिसका कोई कानूनी मूल्य नहीं होता है. वहीं फ्रांसीसी सरकार द्वारा संचालित एस्क्रो अकाउंट की सिफारिश रक्षा सचिवालय के वित्तीय सलाहकार सुधांशु मोहंती ने 14 जनवरी, 2016 को की थी.
नोट-263 में उन्होंने कहा, ‘काश मेरे पास पूरी फाइल को देखने का पर्याप्त समय होता तो मैं कई मुद्दे उठा पाता. हालांकि इस बात को देखते हुए रक्षा मंत्री को तत्काल फाइल भेजनी है, मैं वित्तीय नजरिए से कुछ बातें ध्यान में लाना चाहता हूं.’
मोहंती ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही वह यह थी कि आईजीए पर हस्ताक्षर किए जाने जैसे मामलों में संप्रभु या बैंक गारंटी के अभाव में पैसों को जारी करने के संबंध में फ्रांस सरकार को शामिल किया जाना बहुत ही आवश्यक है.
संभवतया इसे एस्क्रो अकाउंट के माध्यम से किया जाना चाहिए जिसमें भारत सरकार द्वारा जारी किए जाने वाला धन फ्रांस सरकार के अंतर्गत रहेंगे. इस तरह फ्रांसीसी सरकार खरीद के संबंध में नैतिक और मूल रूप से जिम्मेदार रहेगी.