जज तनाव और दबाव में फ़ैसले लिख रहे हैं: जस्टिस एके सीकरी

डिजिटल युग में प्रेस की आज़ादी पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि आज मामले की सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग चर्चा शुरू कर देते हैं कि क्या फ़ैसला होना चाहिए, इसका प्रभाव जजों पर पड़ता है.

New Delhi: Supreme Court of India, Justice A K Sikri addresses the National Seminar for Homeless & Other Unreached Persons with Mental Illnesses (PMIs), in New Delhi, Saturday, Jan. 5, 2019. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI1_5_2019_000021B)
New Delhi: Supreme Court of India, Justice A K Sikri addresses the National Seminar for Homeless & Other Unreached Persons with Mental Illnesses (PMIs), in New Delhi, Saturday, Jan. 5, 2019. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI1_5_2019_000021B)

डिजिटल युग में प्रेस की आज़ादी पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि आज न्यायिक प्रक्रिया दबाव में है. मामले की सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग चर्चा शुरू कर देते हैं कि क्या फ़ैसला होना चाहिए, इसका प्रभाव जजों पर पड़ता है.

New Delhi: Supreme Court of India, Justice A K Sikri addresses the National Seminar for Homeless & Other Unreached Persons with Mental Illnesses (PMIs), in New Delhi, Saturday, Jan. 5, 2019. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI1_5_2019_000021B)
जस्टिस एके सीकरी (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी का कहना है कि आज के युग में न्यायिक प्रक्रिया दबाव में है, जज तनाव और दबाव में फैसले लिख रहे हैं. किसी मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग बहस करने लग जाते हैं कि इसका फैसला क्या आना चाहिए. इसका जजों पर प्रभाव पड़ता है.

सीकरी ने ‘लॉएशिया’ के सम्मेलन में ‘डिजिटल युग में प्रेस की स्वतंत्रता’ विषय पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता नागरिक और मानवाधिकार की रूप-रेखा और कसौटी को बदल रही है और मीडिया ट्रायल का मौजूदा रुझान इसकी मिसाल है.

उन्होंने कहा, ‘मीडिया ट्रायल पहले भी होते थे लेकिन आज जो हो रहा है वह यह कि जैसे की कोई मुद्दा बुलंद किया जाता है, एक याचिका दायर कर दी जाती है. याचिका पर सुनवाई शुरू होने से पहले ही लोग यह चर्चा शुरू कर देते हैं कि इसका फैसला क्या होना चाहिए. मेरा तजुर्बा है कि जज कैसे किसी मामले का फैसला करता है, इसका इस पर प्रभाव पड़ता है.’

सीकरी ने कहा, ‘यह सुप्रीम कोर्ट में ज्यादा नहीं है क्योंकि जब तक वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं वे काफी परिपक्व हो जाते हैं और वे जानते हैं कि मीडिया में चाहे जो भी हो रहा है उन्हें कानून के आधार पर फैसला कैसे करना है. आज न्यायिक प्रक्रिया दबाव में है.’

उन्होंने कहा, ‘कुछ साल पहले यह धारणा थी कि चाहे सुप्रीम कोर्ट हो, हाईकोर्ट हों या कोई निचली अदालत, एक बार अदालत ने फैसला सुना दिया तो आपको फैसले की आलोचना करने का पूरा अधिकार है. अब जो न्यायाधीश फैसला सुनाते हैं, उनको भी बदनाम किया जाता है.’

जस्टिस सीकरी ने कहा कि सोशल मीडिया पहरेदार बन गया है. यह मानवाधिकार के लिए भी चुनौती बन गया है, क्योंकि इसके जरिये व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से निगरानी किए जाने का खतरा है. अगर यह व्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता को प्रभावित करता है, तब यह खतरनाक हथियार बन जाता है.

उन्होंने कहा कि अब दौर पेड न्यूज और फर्जी खबर का है. कहानी बनाई जाती है, उसे डिजिटल माध्यम पर प्रसारित कर देता है. कुछ घंटो में वह खबर वायरल होकर करोड़ों लोगों तक पहुंच जाती है. यह चिंताजनक स्थिति है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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