भीमा-कोरेगांवः सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी पर रोक 22 फरवरी तक बढ़ी

एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने तेलतुम्बड़े को 14 और 18 फरवरी को जांच अधिकारियों के सामने पेश होने का आदेश दिया.

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)

एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने तेलतुम्बड़े को 14 और 18 फरवरी को जांच अधिकारियों के सामने पेश होने का आदेश दिया.

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)
सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सोमवार को शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई की तारीख 22 फरवरी तक रोक लगा दी है. इससे पहले अदालत ने तेलतुम्बड़े की अग्रिम जमानत संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें 12 फरवरी तक गिरफ्तारी से राहत दी थी.

आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी से जुड़े इस मामले में उच्च न्यायालय ने कहा, ‘एक लाख रुपये तक के बॉन्ड पर तेलतुम्बड़े को जमानत पर रिहा किया जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, तेलतुम्बड़े को जांच अधिकारियों के सामने 14 और 18 फरवरी को पेश होने का भी आदेश दिया गया है.

इससे पहले एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में पुणे पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद बीते दो फरवरी को आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ्तार कर लिया था. पुणे पुलिस की इस कार्रवाई को अवैध बताते हुए पुणे सत्र अदालत ने बीते दो फरवरी को ही आनंद तेलतुम्बड़े को रिहा करने का आदेश दिया था.

उच्चतम न्यायालय ने बीती 14 जनवरी को इस मामले में आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ दर्ज पुणे पुलिस की प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने से इनकार कर दिया था. हालांकि तब अदालत ने गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी थी.

इसके बाद एक फरवरी को पुणे की एक विशेष अदालत ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर तेलतुम्बड़े की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद पुणे पुलिस ने कार्रवाई की थी.

जेल में बंद नौ अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों के साथ तेलतुम्बड़े पर कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने और पिछले साल 1 जनवरी को कोरेगांव-भीमा में पहुंचने वाले दलितों को हिंसा के लिए भड़काने का आरोप है.

पिछले महीने द वायर से बात करते हुए तेलतुम्बड़े ने कहा था, ‘पहले दिन से ही वे (पुलिस) मनगढ़ंत कहानियां बनाकर पेश कर रहे हैं. इन कहानियों में रत्तीभर भी सच्चाई नहीं है और उन्हें कभी साबित नहीं किया जा सकता है.

कोरेगांव-भीमा मामले में आरोपी बनाए गए उनके साथ 14 लोगों के लिए तेलतुम्बड़े ने कहा था, ‘कोई भी देख सकता है कि किस तरह से पुलिस मेरे और अन्य कार्यकर्ताओं के पीछे पड़ी हुई है. हमारे खिलाफ कई राज्यों की पुलिस कार्रवाई शुरू कर दी गई है. हमारे घरों पर छापे मारे गए और पूरे देश में उन्माद को हवा दी गई. और यह सब मेरे या किसी के भी खिलाफ एक भी सबूत लाए बिना किया गया.’

मालूम हो कि एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.

बीते साल 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने जून 2018 में एल्गार परिषद के कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया था.

बता दें कि हाल ही में, तेलतुम्बड़े के समर्थन में अमेरिका और यूरोप के 600 से अधिक शिक्षाविदों ने एक संयुक्त बयान जारी किया था, जिसमें भारत और महाराष्ट्र सरकार से तेलतुम्बड़े के खिलाफ कानूनी कार्रवाइयों को तुरंत बंद करने का आग्रह किया गया.

प्रिंस्टन, हार्वर्ड, कोलंबिया, येल, स्टैनफोर्ड, बर्कले, यूसीएलए, शिकागो, पेन, कॉर्नेल, एमआईटी, ऑक्सफोर्ड और लंदन स्कूल ऑफ कॉमर्स सहित उत्तरी अमेरिका, यूरोप के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों ने आनंद तेलतुम्बड़े के समर्थन में एक बयान पर हस्ताक्षर किए.

अमेरिका और यूरोप के अग्रणी शिक्षाविदों ने इस बयान पर हस्ताक्षर करते हुए कानून का दुरुपयोग कर तेलतुम्बड़े को प्रताड़ित करने पर आपत्ति जताई.

संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में येल की एलिजाबेथ वुड्स, हार्वर्ड के कॉर्नेल वेस्ट और डोरिस समर, यूसीएलए के रॉबिन केली और एरिक शेफर्ड, एमआईटी से मरिगांका सूर और सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क से सिंडी कैट्ज शामिल हैं.