केरल, असम, तमिलनाडु और त्रिपुरा के 15 सांसदों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से आग्रह किया है कि आईजी कल्लूरी के बीते पांच सालों के कार्यकाल की जांच करवाकर उनके किए ग़लत कामों की सज़ा दी जाए.
नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) एसआरपी कल्लूरी के कार्यकाल के दौरान उनकी गतिविधियों की व्यापक जांच के लिए 15 सांसदों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक,सांसदों ने पत्र में क्षेत्र में शांति लाने के लिए एक उचित प्रक्रिया शुरू करने को भी कहा है.
कल्लूरी पर कांग्रेस मानवाधिकारों के उल्लंघन और ज्यादतियों का आरोप लगा चुकी है. वह फिलहाल एसीबी और ईओडब्ल्यू के महानिरीक्षक हैं और राज्य में हुए पीडीएस घोटाले जैसे महत्वपूर्ण मामले की जांच कर रही एसआईटी के प्रमुख हैं.
इस पत्र पर केरल, असम, तमिलनाडु और त्रिपुरा के सांसदों के हस्ताक्षर हैं. इस पत्र में सांसदों ने लिखा है, ‘यह स्थिति 21वीं सदी के पहले दशक में चरम पर पहुंच गया, विशेष रूप से सलवा जुडूम अभियान के जरिए. इस अभियान के दौरान आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़े, जहां सुरक्षाबलों और नक्सलियों ने आदिवासियों पर बेहिसाब अत्याचार किए.’
जिन सांसदों ने मुख्यमंत्री बघेल को पत्र लिखा है, उनमें सीपीएम से लोकसभा सांसद जितेंद्र चौधरी, मोहम्मद सलीम, पी. करुणाकरण, पीके बिजू, एमबी राजेश और मोहम्मद बदरुद्दोजा खान, पार्टी के राज्यसभा सांसद टीके रंगराजन, केके राजेश, झरना दास बैद्य और एलमाराम करीम, लोकसभा में निर्दलीय सांसद जॉयस जॉर्ज और नब कुमार सरानिया, लोकसभा में एआईयूडीएफ से सांसद राधेश्याम बिस्वास और राज्यसभा में डीएमके सांसद टीकेएस एलंगोवन और तिरुचि शिवा हैं.
उन्होंने पत्र में कहा, ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायतों और झूठे मामले दर्ज करने के आधार पर एसआरपी कल्लूरी का जिले से बाहर ट्रांसफर किया गया. हालांकि उनके द्वारा किए गए अत्याचार और अवैध कार्यों के लिए उन्हें कभी दंडित नहीं किया गया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम आपसे बीते पांच सालों में उनके कार्यकाल के दौरान उनकी गतिविधियों की जांच करने और उनके गलत कामों के लिए उन्हें सज़ा देने का आग्रह करते हैं. हम क्षेत्र में शांति और विकास लाने के लिए आपको मिले जनादेश की रोशनी में यह मामला आपके सामने उठा रहे हैं.’
सांसदों ने यह भी कहा कि 2008 में यूपीए द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने यह उल्लेख किया था कि बस्तर में पेसा अधिनियम, मनरेगा और वन अधिकार नियम (एफआरए) को लागू करना बहुत जरूरी है.
पत्र में कहा गया, ‘बड़ी परियोजनाओं के लिए और खनन कंपनियों को दी गई जमीनों के आवंटन पर दोबारा विचार करने, एफआरए के क्रियान्वयन के आकलन के लिए एक लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया शुरू करने, फर्जी मुठभेड़ों, आत्मसमर्पण और कथित बलात्कार की घटनाओं के लिए सुरक्षा अधिकारियों को दंडित करने, लोकतांत्रिक तरीकों के जरिए शांति प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है ताकि राज्य और नक्सलियों के बीच चल रही समस्या का कोई स्थायी समाधान निकल सके.’