सुप्रीम कोर्ट ने इलाज में लापरवाही बरतने के एक मामले में फैसला दिया है कि पीड़ित पक्ष को 15 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए.
नई दिल्ली: पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे कानून को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मरीज केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाए.
शीर्ष अदालत की पीठ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने मध्य प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) के एक आदेश को पलट दिया था जिसमें मरीज के साथ लापरवाही बरतने के कारण डॉक्टर और अस्पताल के निदेशक को दोषी ठहराया गया था.
इस मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हेमंत गुप्ता भी शामिल थे.
लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, डेंगू बुखार से पीड़ित मधु मांगलिक नाम की एक महिला को भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अस्पताल में उनकी मुत्यु के बाद, उनके पति ने 48 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए एससीडीआरसी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई.
पति का कहना था कि अस्पताल में इलाज करने वाले डॉक्टरों की लापरवाही के कारण उनकी पत्नी की असमय मृत्यु हुई है. एससीडीआरसी ने माना की इलाज में लापरवाही बरती गई है और पीड़ित को छह लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया.
हालांकि इस फैसले के खिलाफ डॉक्टर ने एनसीडीआरसी में याचिका दायर किया और एनसीडीआरसी ने एससीडीआरसी के फैसले को पलट दिया.
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा, ‘इलाज करने वाले डॉक्टर चिकित्सा दिशानिर्देशों के अनुसार इलाज प्रदान करने में विफल रहे थे और इस तरह भारतीय न्यायालयों द्वारा अपनाए गए उचित देखभाल के मानक को पूरा करने में विफल रहे.’
हालांकि कोर्ट ने अस्पताल के निदेशक को बरी कर दिया. पीठ ने कहा, ‘अस्पताल के निदेशक के खिलाफ लापरवाही दर्ज करने का कोई आधार नहीं है. अस्पताल के निदेशक इलाज करने वाले डॉक्टर नहीं थे.’
क्षतिपूर्ति के संबंध में, पीठ ने कहा कि एक गैर-कामकाजी पत्नी द्वारा परिवार के कल्याण के लिए दिया गया योगदान एक आर्थिक योगदान के बराबर होता है. कोर्ट ने इसके बाद इस मामले में पीड़ित को 15 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया.