नमामि गंगे के तहत श्मशान घाट बनाने में ख़र्च पर बतौर मंत्री उमा भारती ने उठाए थे सवाल

द वायर एक्सक्लूसिव: उमा भारती द्वारा इस दिशा में चिंता जाहिर करने के बावजूद मोदी सरकार ने घाट एवं श्मशान घाट से संबंधित योजनाओं के लिए 966 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है. ये राशि शुरुआत में आवंटित की गई धनराशि से दोगुनी से भी ज़्यादा है.

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द वायर एक्सक्लूसिव: उमा भारती द्वारा इस दिशा में चिंता ज़ाहिर करने के बावजूद मोदी सरकार ने घाट एवं श्मशान घाट से संबंधित योजनाओं के लिए 966 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है. ये राशि शुरुआत में आवंटित की गई धनराशि से दोगुनी से भी ज़्यादा है.

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वाराणसी के गंगा तट पर एक श्मशान घाट. (फोटो: कबीर अग्रवाल/द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की पूर्व मंत्री उमा भारती ने नमामि गंगे योजना के तहत घाट और श्मशान घाट बनाने के लिए ख़र्च की गई भारी धनराशि पर निराशा जताई थी. इसके बावजूद मोदी सरकार ने गंगा सफाई के तहत इन कामों के लिए काफी धनराशि आवंटित की है.

द वायर  द्वारा प्राप्त की गई गंगा नदी संबंधी अधिकार प्राप्त कार्यबल (एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा) के मिनट्स ऑफ मीटिंग से इसका खुलासा हुआ है. गंगा सफाई की दिशा में हो रहे कार्यों को देखने के लिए मंत्रालय स्तर पर एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा सबसे बड़ी समिति या निर्णायक बॉडी है.

केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने ख़ास तौर पर झारखंड में अपने निरीक्षण के दौराम श्मशान घाटों के निर्माण पर ख़र्च की गई अत्यधिक धनराशि को लेकर निराशा जताई थी.

तीन अगस्त 2017 को हुई एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा की दूसरी मीटिंग के मिनट्स में लिखा है, ‘जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री (उमा भारती) ने कहा कि वो झारखंड में अपने निरीक्षण के दौरान बेहर निराश हुईं क्योंकि श्मशान घाटों के निर्माण में भारी भरकम राशि ख़र्च की गई है जबकि स्थानीय लोगों के पास दवाएं ख़रीदने के लिए पैसे नहीं हैं.’

ख़ास बात ये है कि इस मीटिंग के दौरान ये बात भी सामने आई थी कि नमामि गंगे परियोजना के तहत घाट और श्मशान घाट बनाने के लिए 400 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया था लेकिन 1150 करोड़ रुपये से ज़्यादा के प्रोजेक्ट की स्वीकृति दे दी गई थी.

मिनट्स ऑफ मीटिंग के मुताबिक, ‘कई सारी परियोजनाओं के लिए वन विभाग, सिंचाई विभाग, स्थानीय संस्थाओं आदि द्वारा कई कारणों से एनओसी जारी नहीं की गई थी. अगर किसी तरीके से घाट और श्मशान घाटों के निर्माण के राशि को कम किया जाता है, लेकिन फिर भी ये 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा ही रहेगा.’


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हालांकि उमा भारती द्वारा इस दिशा में चिंता ज़ाहिर करने के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार ने घाट एवं श्मशान घाट से संबंधित योजनाओं के लिए 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा की धनराशि आवंटित की है.

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय में राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने 27 दिसंबर 2018 को एक सवाल के जवाब में लोकसभा में बताया कि घाट और श्मशान घाट से जुड़ी योजनाओं के लिए करीब 966 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.

इनमें से पुराने घाट और श्मशान घाट के 24 प्रोजेक्ट के लिए 204.39 करोड़ रुपये, नए घाट और श्मशान घाट की 35 परियोजनाओं के लिए 717.39 करोड़ रुपये और घाट सफाई से जुड़ी तीन परियोजनाओं के लिए 43.87 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.

हालांकि केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस मामले में कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया. उन्होंने द वायर से बातचीत में कहा, ‘चूंकि अब मैं जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय में मंत्री नहीं हूं, इसलिए इस मामले में टिप्पणी करना मेरे लिए उचित नहीं है.’

उमा भारती के अलावा गंगा संरक्षण की दिशा में काम रहे कई कार्यकर्ताओं ने भी इसे लेकर चिंता ज़ाहिर की है. जलपुरुष के नाम से मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार गंगा ने नाम पर हज़ारों करोड़ रुपये सिर्फ़ ठेकेदारों को बांट रही है. इससे नदी कभी नहीं साफ नहीं होगी.

सिंह ने कहा, ‘गंगा को दिल की बीमारी है लेकिन दांत का डॉक्टर उसका इलाज कर रहा है. सरकार ने बांधों का निर्माण करके नदी के प्रवाह को रोक लिया है. इससे नदी मर रही है. नदी का प्रवाह बनाए रखने से नदी जीवित होगी, न कि रिवरफ्रंट और श्मशान घाट बनाने से. नमामि गंगे परियोजना के ज़रिये सरकार पैसे कमाने और पैसे बांटने का काम कर रही है. इससे गंगा को कोई लाभ नहीं होगा.’

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तीन सितंबर 2017 को उमा भारती को गंगा मंत्रालय के मंत्री पद से हटा दिया गया था. (फोटो साभार: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय)

एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा की पहली बैठक उमा भारती की अध्यक्षता में आठ फरवरी 2017 और दूसरी बैठक तीन अगस्त 2017 को हुई थी.

इसके अलावा इस समिति की आज तक कोई बैठक नहीं हुई है. दूसरी बैठक होने के एक महीने बाद तीन सितंबर 2017 में उमा भारती को गंगा मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री के पद से हटा दिया गया था.

बता दें कि भारत सरकार ने गंगा नदी के संरक्षण के लिए मई 2015 में नमामि गंगे कार्यक्रम को मंज़ूरी दी थी. इसमें गंगा नदी की सफाई के लिए नगरों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट, औद्योगिक प्रदूषण का उपचार, नदी के सतह की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवरफ्रंट विकास, घाटों और श्मशान घाट का निर्माण, पेड़ लगाना और जैव विविधता संरक्षण जैसी योजनाएं शामिल हैं.


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अब तक इस कार्यक्रम के तहत 24,672 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 254 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है. इसमें से 30 नवंबर 2018 तक 19,772 करोड़ रुपये की लागत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की 131 परियोजनाओं (105 गंगा पर और 26 सहायक नदियों पर) को मंज़ूरी दी गई थी, जिसमें से अभी तक 31 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं.

घाटों के निर्माण में अत्यधिक धन ख़र्च करने के अलावा उमा भारती ने गंगा में प्रदूषण फैलाने वाली उद्योगों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई करने की बात कही थी. भारती ने मीटिंग में कहा था कि कोई भी औद्योगिक इकाई नदी में प्रदूषण नहीं छोड़ सकती है और अगर कोई ऐसा करता है तो उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए.

उमा भारती ने मीटिंग में कहा था, ‘कोई भी औद्योगिक इकाई रोज़गार देने की आड़ में नदी में प्रदूषण नहीं बहा सकती है क्योंकि इसकी कीमत लाखों लोगों को चुकानी पड़ती है, जो इसकी वजह से बीमार पड़ते हैं.’

इसके अलावा मीटिंग में ये बात भी सामने आई थी कि कई राज्यों में गंगा के किनारे वनीकरण करने के लिए राज्यों को उपयुक्त धन मुहैया नहीं कराया गया है. नमामि गंगे के तहत वनीकरण के लिए कुल 16 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है जिसके लिए 236.56 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.

नमामि गंगे के तहत आवंटित की गई धनराशि ख़र्च न करने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा के मिनट्स ऑफ मीटिंग से पता चला है कि वित्त मंत्रालय से आए प्रतिनिधि ने चिंता ज़ाहिर की थी कि ख़र्च की दर संतोषजनक नहीं है और इसमें सुधार की आवश्यकता है.


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इससे पहले द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए बनी सर्वोच्च कमेटी राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) की आज तक एक भी बैठक नहीं हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समिति के अध्यक्ष हैं. नियम के मुताबिक इसकी साल में कम से कम एक बैठक होनी चाहिए.

इसके अलावा एम्पावर्ड टास्क फोर्स ऑन रिवर गंगा की अभी तक सिर्फ़ दो बैठकें हुई हैं. नियम के मुताबिक हर तीन महीने में इसकी एक बैठक होनी चाहिए, यानी की एक साल में कम से कम इसकी चार बैठकें होनी चाहिए.

बता दें कि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति समेत कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने गंगा सफाई और उसकी अविरलता को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुकी है. इसके बाद भी गंगा पर बनी समितियों की बैठक न करना नरेंद्र मोदी सरकार के गंगा सफाई के दावे पर सवालिया निशान खड़ा करता है.