जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि नए सीबीआई निदेशक की नियुक्त हो जाने के कारण वे इस मामले में कोई दखल नहीं देंगे. इसके अलावा पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतने के लिए दिशानिर्देश जारी करने से भी इनकार कर दिया.
नई दिल्ली: एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने पर सवाल उठाने वाली याचिका को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. यह याचिका एक गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने दाखिल की थी.
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा, ‘पूर्णकालिक सीबीआई निदेशक के नियुक्त हो जाने के कारण वे इस मामले में कोई दखल नहीं देंगे. इस दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता की इस मांग को भी खारिज कर दिया कि वह नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतने के लिए दिशानिर्देश जारी करे.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस मामले के आने से पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सहित तीन जजों ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था.
पहले ये मामला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ के पास गया था. लेकिन उन्होंने बीते 21 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान ये कहते हुए खुद को इस मामले से अलग कर लिया कि वह नए सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए 24 जनवरी 2019 को उच्च स्तरीय समिति की बैठक में भाग ले रहे हैं, इसलिए वे इस मामले में सुनवाई के लिए पीठ का हिस्सा नहीं हो सकते हैं.
इसके बाद इस मामले को जस्टिस एके सीकरी के पास भेजा गया लेकिन उन्होंने भी इसकी सुनवाई करने से मना कर दिया है. उन्होंने कहा था कि वह समिति की बैठक का हिस्सा थे जिसमें आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाया गया था और उसके बाद ही नागेश्वर राव को अंतरिम प्रमुख नियुक्त किया गया था.
इसके बाद यह मामला अगले वरिष्ठ जज जस्टिस एनवी रमना को सौंपा गया था लेकिन 31 जनवरी को जस्टिस रमना ने ये कहते हुए सुनवाई करने से मना कर दिया कि वे राव के बेटी की शादी में गए थे. इसके बाद 2 फरवरी को एक उच्च स्तरीय समिति ने ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई निदेशक नियुक्त कर दिया. वहीं इस मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंप दिया गया था.
इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज सह-याचिकाकर्ता हैं, जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सरकार पारदर्शिता का पालन नहीं कर रही है.
याचिका में कहा गया था कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं की गई थी, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई) के तहत अनिवार्य है.
10 जनवरी, 2019 के आदेश में कहा गया था कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने नागेश्वर राव को ‘पहले की व्यवस्था के अनुसार’ नियुक्त करने की मंजूरी दी है. हालांकि पहले की व्यवस्था यानी 23 अक्टूबर, 2018 के आदेश ने उन्हें अंतरिम सीबीआई निदेशक बनाया था और 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा मामले में इस आदेश को रद्द कर दिया था.
हालांकि, सरकार ने खारिज किए गए आदेश पर सीबीआई के नागेश्वर राव को एक बार फिर अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया.
याचिका में कहा गया है कि सरकार उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों के बिना सीबीआई निदेशक का प्रभार नहीं दे सकती. इसलिए, सरकार द्वारा उन्हें सीबीआई निदेशक का पदभार देने का आदेश गैरकानूनी है और डीएसपीई की धारा 4 ए के तहत नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ है.
याचिका में राव की नियुक्ति को रद्द करने की मांग के अलावा सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट तंत्र बनाने के लिए भी निर्देश देने की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया है कि दिसंबर 2018 में, सरकार ने सीबीआई निदेशक के नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी क्योंकि आलोक वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को समाप्त होने वाला था.
दिसंबर 2018 में, अंजलि भारद्वाज ने आरटीआई अधिनियम के तहत विभिन्न आवेदन दायर किए और नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी मांगी. हालांकि सरकार ने गोपनीयता बरकरार रखते हुए कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया.
याचिका में कहा गया, ‘नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में जानकारी रोकने के प्रयास में, सरकार ने इनमें से प्रत्येक आरटीआई आवेदनों का एक ही प्रकार से जवाब दिया.’
बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सीबीआई के पूर्व अंतरिम निदेशक एम. नागेश्वर राव को बिहार के मुजफ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले की जांच करने वाले अधिकारी एके शर्मा का तबादला करने के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था. अदालत ने उन्हें कोर्ट की कार्यवाई पूरी होने तक कोर्ट में एक कोने में बैठे रहने की सजा सुनाई थी. इसके अलावा उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था.