लोकपाल के क्रियान्वयन को लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं: उच्चतम न्यायालय

संसद ने वर्ष 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह वर्ष 2014 में लागू हो गया था. इसके बावजूद अब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी है.

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New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI2_23_2016_000104A)

संसद ने वर्ष 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह वर्ष 2014 में लागू हो गया था. इसके बावजूद अब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी है.

New Delhi: Parliament during the first day of budget session in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI2_23_2016_000104A)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वर्ष 2013 का लोकपाल और लोकायुक्त कानून व्यवहारिक है और इसका क्रियान्वयन लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं है. इस कानून के अनुसार, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष लोकपाल चयन पैनल का हिस्सा होंगे. इस समय लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है.

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने शीर्ष अदालत के एक पूर्व फैसले का संदर्भ देते हुए कहा, हमारा कहना है कि यह व्यवहारिक है और इसे लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं है.

देश में लोकपाल की नियुक्ति की मांग करने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने 28 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

इससे पहले एनजीओ कॉमन कॉज़ के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था कि हालांकि संसद ने वर्ष 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह वर्ष 2014 में लागू हो गया था, तब भी सरकार जान-बूझकर लोकपाल नियुक्त नहीं कर रही.

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि मौजूदा स्थिति में लोकपाल को नियुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि लोकपाल कानून में नेता प्रतिपक्ष की परिभाषा से जुड़े संशोधन संसद में लंबित पड़े हैं.

न्यायालय ने पिछले साल 23 नवंबर को लोकपाल की नियुक्ति में देरी को लेकर केंद्र की खिंचाई की थी और कहा था कि वह इस कानून को मृत नहीं होने देगा.

लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास सिर्फ 45 सदस्य हैं और यह संख्या कुल सीट संख्या 545 के 10 प्रतिशत की अनिवार्यता से कम है. इससे मौजूदा लोकपाल कानून में संशोधन की ज़रूरत को बल मिला है.

एनजीओ कॉमन कॉज़ की याचिका में अनुरोध किया गया था कि केंद्र को लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून, 2013 के तहत संशोधित नियमों के अनुरूप लोकपाल का अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए.

एनजीओ ने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में यह अनुरोध भी किया था कि केंद्र को यह निर्देश दिया जाए कि लोकपाल का अध्यक्ष और लोकपाल के सदस्य चुनने की प्रक्रिया कानून में वर्णित प्रक्रिया के अनुरूप पारदर्शी होनी चाहिए.

इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि इस सत्र में नियुक्ति संभव नहीं है.

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि लोकसभा में विपक्ष का नेता न होने के कारण यह संभव नहीं है क्योंकि लोकपाल की पांच सदस्यीय समिति में विपक्ष का नेता भी शामिल होता है.

बता दें कि लोकपाल विधेयक में तकरीबन 20 संशोधन होने बाकी हैं जो कि संसद में लंबित हैं. विधेयक में 2014 में संशोधन प्रस्ताव लाया गया था और विधेयक को साल 2013 में मंजूरी मिली थी. लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट 2013 के मुताबिक, समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश या नामित सुप्रीम कोर्ट के जज और एक नामचीन हस्ती के होने का प्रावधान है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)