छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी नाकामी छुपाने के लिए अवैध छात्रों के बहाने वैध रूप से रह रहे आठ हज़ार छात्रों को प्रताड़ित कर रहा है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सभी छात्रावासों को पूरी तरह ख़ाली कराने के आदेश के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन और मार्च करने वाले दो हज़ार छात्रों पर पुलिस ने मुक़दमा दर्ज किया है. पुलिस के मुताबिक, शहर में धारा 144 लागू होने के बावजूद छात्रों ने जुलूस निकाला. इस बीच, गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतिम आदेश दिया है कि सभी छात्रावासों को पूरी तरह ख़ाली करवा कर नये ढंग से आबंटन किया जाए.
दरअसल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र लगभग एक महीने से आंदोलन कर रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रावासों से अवैध छात्रों को हटाने के लिए सभी छात्रावासों को पूरी तरह से ख़ाली कराने की योजना बना रहा है. इसके अलावा विश्वविद्यालय ने फीस बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव रखा है, जिसे अगले सत्र से लागू करना है. छात्र इन दोनों निर्णयों का विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी नाकामी छुपाने के लिए अवैध छात्रों के बहाने वैध छात्रों को भी परेशान कर रहा है. यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
मौजूदा सत्र में एक छात्र धर्मवीर सिंह को ताराचंद हॉस्टल में कमरा एलॉट तो हुआ लेकिन उन्हें क़ब्ज़ा नहीं मिला. उस कमरे में कोई दूसरा छात्र अवैध रूप से रह रहा था. जब वह कमरा विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें नहीं दिला पाया तो धर्मवीर सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाल दी. छात्र की याचिका पर हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आदेश दिया था कि सभी छात्रावासों में से अवैध छात्रों को बाहर करके वैध छात्रों को कमरे एलॉट किए जाएं.
इसके साथ ही कोर्ट ने जिला मैजिस्ट्रेट एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि छात्रावासों में अवैध रूप से रह रहे लोगों को बाहर निकालने में विश्वविद्यालय के अधिकारियों को पूरी तरह सहयोग उपलब्ध कराएं और इस निर्देश का अनुपालन करने में विफल रहने पर ये अधिकारी सहयोग नहीं कर पाने की वजहों का बताते हुए निजी हलफ़नामा दाख़िल करें.
लेकिन विश्वविद्यालय का कहना है कि वह सभी छात्रावासों को पूरी तरह ख़ाली करा कर फिर से आवंटन करेगा. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने परिसर में धारा 144 लगा दी और प्रशासन से कभी भी हॉस्टल ख़ाली कराने पर पुलिस बल मुहैया कराने कर आश्वासन दिया.
14 अप्रैल को छात्रों ने छात्रसंघ की अगुआई में पूरे दिन जमकर बवाल काटा और विश्वविद्यालय परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया गया. रात ग्यारह बजे छात्रों ने रजिस्ट्रार एनके शुक्ला के घर का घेराव किया. हालात इतने ख़राब हो गए कि फोर्स बुलानी पड़ी. तबसे छात्र लगातार क्रमिक अनशन पर हैं. कैंडल मार्च, विरोध मार्च और प्रदर्शन लगातार चल रहे हैं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा.
आमरण अनशन पर बैठे कुछ छात्रों ने 22 अप्रैल को छात्रावास ख़ाली कराने के निर्णय का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ख़ून से ख़त लिखा था.
विश्वविद्यालय के पास कुल मिलाकर 15 हॉस्टल हैं, जिनमें क़रीब आठ हज़ार छात्र-छात्राएं रह रहे हैं. इलाहाबाद विवि को 2005 में केंद्रीय विवि का दर्जा मिलने के बाद सिर्फ़ एक हॉस्टल बन सका है. सभी पंजीकृत छात्रों को हॉस्टल देने की व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है.
छात्रों का कहना है कि फिरहाल परीक्षाएं चल रही हैं. 18 मई तक सभी परीक्षाएं खत्म हो जाएंगी. इसके तुरंत बाद अगले कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षाएं हैं. यदि सभी छात्रावासों को वॉश आउट किया जाता है तो हम लोग कहां जाएंगे? वॉश आउट से सिविल सर्विसेज समेत तमाम परीक्षाएं बाधित होंगी. छात्रों का तर्क है कि विश्वविद्यालय समर चार्ज ले तो हम देने को तैयार हैं, लेकिन वैध छात्रों को हटाने की जगह सबसे छात्रावास ख़ाली कराने का निर्णय ग़लत है.
बीते 7 अप्रैल को विवि प्रशासन ने भारी पुलिस बल के साथ पंत छात्रावास ख़ाली करा लिया था, लेकिन छात्रों ने चेतावनी दी कि परीक्षा के समय ऐसा किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा. इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने परीक्षा होने तक यह अभियान रोक दिया है.
अब छात्रों की मांग है कि विश्वविद्यालय प्रशासन छापा मारकर अवैध छात्रों को छात्रावास से हटाए, लेकिन वैध छात्रों को डिस्टर्ब न करे. आंदोलन की अगुआई कर रहे छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह ने कहा, ‘प्रशासन ने प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर 144 के उल्लंघन के आरोप में 2000 छात्रों पर मुक़दमा कर दिया है. वीसी रतन लाल हांगलू विश्वविद्यालय को तानाशाही ढंग से चला रहे हैं.’
विक्रांत ने बताया, ‘वीसी ने हॉस्टल वॉश आउट का निर्णय लिया है. इलाहाबाद में यह सिस्टम नहीं है. हमारा कहना है कि आप रेड डालिए और अवैध लोगों को निकाल कर बाहर कीजिए. लेकिन इनका कहना है कि दोे महीने के लिए सारे हॉस्टल ख़ाली करेंगे. अब जो छात्र वैध रूप से रह रहे हैं वे बाहर क्यों जाएंगे?’
विश्वविद्यालय की नाकामियां गिनाते हुए विक्रांत कहते हैं, ‘अक्टूबर नवंबर में रेड पड़ती है और अवैध लोगों को हटाकर नये लोगों को पजेशन दे दी जाती है. इस बार इन्होंने रेड नहीं डाली. कोर्ट ने कहा था कि अवैध छात्रों को हटाया जाए, लेकिन विश्वविद्यालय ने कोर्ट से कहा है कि हम वॉश आउट करेंगे. हम इसका विरोध कर रहे हैं, हमने कोई हिंसा नहीं की. शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, फिर भी केस दर्ज कराया. वॉश आउट का निर्णय ग़लत और आम छात्रों को परेशान करने वाला है.’
छात्रसंघ अध्यक्ष रोहित कुमार मिश्रा ने बताया, ‘हम हॉस्टल वॉश आउट के निर्णय के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं. असली मसला ये है कि विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार और अराजकता के मसले पर हॉस्टल के ही छात्र एकजुट होकर विरोध करते हैं. अब ये चाहते हैं कि हम हॉस्टल को ही ख़त्म कर देंगे तो फिर जो चाहेंगे वो करेंगे.’
रोहित का कहना है, ‘एक छात्र ने अपील की थी. वह अपने कमरे के लिए लड़ रहा था. उसको कमरा देने के बजाय विश्वविद्यालय ने कह दिया कि पहले पांच हज़ार लोगों को सड़क पर लाओ. पहले उसको इंसाफ देना था, लेकिन वह करने की जगह इन्होंने न्यायालय की आड़ लेकर पहले सारे छात्रों को सड़क पर ला दिया. अब आज हाईकोर्ट ने निर्णय दे दिया है कि वॉश आउट हो. ठीक है, आप कीजिए. लेकिन अब विश्वविद्यालय में जितने भ्रष्टाचार हैं, उस पर हमें रिज़ल्ट चाहिए. यह विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का अड्डा है. 2005 में इलाहाबाद विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा मिला है. लेकिन आजतक एक हॉस्टल नहीं बना.’
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह ने बताया, ‘ये लोग कह रहे हैं कि अवैध छात्रों को हटाना है इसलिए वॉश आउट करेंगे. हमारा कहना है आपकी प्रशासनिक प्रक्रिया लचर थी. आपने कभी हॉस्टल में रेड नहीं डाली. यह आपके कारण हुआ. हम भी चाहते हैं कि अवैध रूप से रह रहे लोग बाहर जाएं. विवि के नियम के मुताबिक, जो बीए में दाख़िला लेता है वह सात साल तक रह सकता है. जो छात्र तीन महीने ही हॉस्टल में आया, उसे आप बाहर क्यों कर रहे हैं.’
ऋचा विवि के नियमों पर सवाल उठाती हुए कहती हैं, ‘विवि में सेमेस्टर सिस्टम है. सेमेस्टर चलता है 1 जुलाई से 30 दिसंबर तक और एक जनवरी से 30 जून तक. अब जिस छात्र की परीक्षा ख़त्म हो गई, तब भी उसका सेमेस्टर ख़त्म नहीं हुआ. आपने अपना सिस्टम अपडेट नहीं किया और छात्र को बाहर करने जा रहे हैं. विवि छात्रों से समर चार्ज भी लेता है, फिर भी वॉश आउट करना चाह रहा है. इस फ़ैसले में पूरी तरह से वीसी की तानाशाही है. अपनी कमी को छुपाने के लिए वे छात्रों को परेशान कर रहे हैं.’
एक शोधछात्र ने बताया, ‘यह सारा मसला दरअसल बेरोजगारी का है. शिक्षा रोज़गारपरक नहीं है. इलाहाबाद में शिक्षा, धर्म की तरह जीवन पद्धति बन गई है. बीए एमए करके कुछ लोग तैयारी करते हैं, कुछ छात्र कुछ नहीं करते. कुछ अंतत: फेल होकर कुछ नहीं करते. फिर वे जैसे तैसे किसी पाठ्यक्रम में एडमिशन लेकर विश्वविद्यालय में बने रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके पास करने को कुछ नहीं है. विवि प्रशासन बेहद संकुचित सोचता है और वैसे काम करता है. न वह अपने बच्चों को रोज़गार देने के बारे में सोच सकता है, न ही वह उन्हें आवास और अन्य सुविधाएं दे पा रहा है. हर साल बजट का ख़र्च न हो पाना और वापस लौट जाना इसका प्रमाण है.’
एक शोधछात्र अंकित ने कहा, ‘विश्वविद्यालय अपने ही नियमों का उल्लंघन कर रहा है. यहां वॉशआउट का सिस्टम ही नहीं है. यहां का छात्र जब तक विधिक रूप से छात्र है, तब तक हॉस्टल में रह सकता है. हॉस्टल में जो अवैध रूप से रह रहा है वह प्रशासन की शह पर रह रहा है. क्या वॉर्डन को सुपरिंटेंडेंट को नहीं मालूम है कि उसके हॉस्टल में कौन रह रहा है? वे उन्हीं के पांव छूने वाले लोग हैं जो उन्हें तमाम मौक़ों पर बचाते हैं. बाक़ी तो सब वैध छात्र हैं. उसने ख़ुद रेड नहीं डाली, जब मामला कोर्ट में गया तो इन्होंने इस बहाने वॉश आउट प्लान कर लिया. विवि हर छात्र से समर चार्ज लेता है. यह सोचना चाहिए कि जो छात्र फीस जमा कर चुके हैं वे कहां जाएंगे?’
विश्वविद्यालय के नियमों पर सवाल उठाते हुए अंकित का कहना है, ‘विवि का अपना कोई नियम नहीं है. हॉस्टल में रहने वाला कोई छात्र वैध है या अवैध, उसका कोई नियम नहीं है. जो बीए प्रथम में फेल हो गया, वह वैध है या अवैध? जो बीए पास कर चुका है, एमए में एडमिशन लेने जा रहा है, वह वैध है या अवैध? जो एमए दूसरे वर्ष में फेल हो गया या बैक पेपर देने जा रहा है, वह वैध है या अवैध? पहले विवि प्रशासन को अपने नियम क़ानून ठीक करने चाहिए और विवि में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता पर काम करना चाहिए. यदि 1990 या 92 से कोई छात्र हॉस्टल में बना हुआ है तो उसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या ऐसे लोग बिना प्रशासन की जानकारी के रह रहे हैं?’
छात्रों पर मुक़दमा दर्ज होने की बात की पुष्टि करते हुए विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एनके शुक्ला ने बताया, ‘हाईकोर्ट ने मना किया था कि छात्र कोई भी आंदोलन नहीं करेंगे ताकि कोई अव्यवस्था न हो. लेकिन शहर में काफी जगहों पर छात्र सड़क पर उतरे और प्रदर्शन किया. एफआईआर हमारी तरफ से नहीं हुई है, पुलिस प्रशासन ने करवाई है. यह हमारी तरफ से नहीं है.’
रजिस्ट्रार ने कहा, ‘यह निर्णय एक छात्र की ही याचिका पर आया है. आज न्यायालय ने अंतिम निर्णय दिया है. शायद कोर्ट ने कहा है कि 25 मई तक सारे छात्र हॉस्टल ख़ाली कर दें. यदि नहीं करते तो प्रशासन ख़ाली करवाए. अब हम देखेंगे कि निर्णय क्या आया है. अब न्यायालय का आदेश आया है तो हम कुछ नहीं कर सकते. कोर्ट का आदेश देखने के बाद हम कह पाएंगे कि क्या हो. समर हॉस्टल की व्यवस्था की जा सकती है. अभी हम लोगों ने कहा है कि 18 मई तक विश्वविद्यालय की सारी परीक्षाएं ख़त्म हो जाएंगी, हम उसके बाद ही हॉस्टल ख़ाली कराएंगे.’