उत्तर प्रदेश सरकार सहित राम मंदिर निर्माण का समर्थन करने वाले सभी पक्षों ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मध्यस्थता को सौंपने के फै़सले का विरोध करते हुए कहा कि अदालत ही मामले का समाधान करे.
नई दिल्ली: अयोध्या-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसके बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
Supreme Court reserves order on the issue of referring Ram Janmabhoomi-Babri Masjid title dispute case to court appointed and monitored mediation for “permanent solution”. pic.twitter.com/JoC907Mgcm
— ANI (@ANI) March 6, 2019
इससे पहले पीठ ने कहा था कि अगर मध्यस्थता की एक फीसदी भी संभावना हो तो राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस भूमि विवाद के समाधान के लिए इसे एक अवसर दिया जाना चाहिए.
लाइव लॉ के अनुसार, हिंदू पक्ष ने मामले को मध्यस्थता को सौंपने का विरोध किया. उन्होंने अदालत में कहा कि यह मामला संपत्ति विवाद का नहीं है बल्कि आस्था और विश्वास का है.
रामलला विराजमान की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा, यह विश्वास है कि इस स्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ था. हम कहीं और मस्जिद बनवाने के लिए चंदा जुटाने के लिए तैयार हैं.
अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी मध्यस्थता की खिलाफ़त की. उन्होंने कहा कि अगर मध्यस्थता का आदेश दिया जाता है तो नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के तहत सार्वजनिक नोटिस जारी कर आम जनता को भी उसमें शामिल करने की मंजूरी मिलनी चाहिए.
वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष ने मध्यस्थता में शामिल होने की इच्छा जाहिर की. सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत मध्यस्थता का आदेश देने के लिए सभी पक्षों का राजी होना जरूरी नहीं है.
इस जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अदालत मामले की गंभीरता और राजनीति पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को लेकर सचेत थी. उसका प्रयास रिश्तों को सुधारने का है.
हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने मध्यस्थता की प्रक्रिया से असहमति जताई. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि जो विवाद केवल पक्षों के बीच में नहीं है उसमें मध्यस्थता समझौता आखिर किस तरह से दो धर्म के लोगों को एक-दूसरे जोड़ पाएगा. हालांकि इसी दौरान उन्होंने मध्यस्थता की आवश्यकता जताई.
एनडीटीवी के अनुसार, राजीव धवन ने कहा कि यह कोर्ट के ऊपर है कि मध्यस्थ कौन हो? मध्यस्थता बंद कमरे में हो.
इस पर जस्टिस बोबड़े बोले ने कहा कि यह गोपनीय होना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. मीडिया में इसकी टिप्पणियां नहीं होनी चाहिएं. प्रक्रिया की रिपोर्टिंग ना हो. अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे अवमानना घोषित किया जाए.
जस्टिस बोबड़े ने कहा जो पहले हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं. विवाद में अब क्या है हम इस उस पर बात कर रहे हैं. कोई उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मन्दिर, मस्जिद और इतिहास को बदल नहीं कर सकता. बाबर था या नहीं, वो राजा था या नहीं ये सब इतिहास की बात है.
जस्टिस बोबड़े ने आगे कहा कि मध्यस्थता का फैसला ही सभी पक्षों को एक सूत्र में बांध सकता है.
सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने अयोध्या-बाबरी जमीन विवाद मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, ‘सभी पक्ष मध्यस्थ या मध्यस्थता समिति का नाम सुझाएं, हम जल्द ही आदेश पारित करेंगे.’
Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: CJI Ranjan Gogoi says, "Parties to suggest name for mediator or panel for mediators. We intend to pass the order soon." https://t.co/RwLu1ndGMU
— ANI (@ANI) March 6, 2019
इससे पहले 26 फरवरी को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में पांच मार्च को आदेश दिया जाएगा.
पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री से कहा था कि सभी पक्षकारों को छह सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियां उपलब्ध कराएं. पीठ ने कहा था कि इस मामले पर अब आठ सप्ताह बाद सुनवाई की जाएगी.
बता दें कि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अपील दायर की गई हैं. उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था.