मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने अपने आदेश में कहा कि आम आदमी सरकारी दफ़्तरों में और सरकारी कर्मचारियों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली से पूरी तरह से हताश है.
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय का कहना है कि भ्रष्टाचार कैंसर की तरह फैल रहा है. अदालत ने सोमवार को तमिलनाडु के सतर्कता अधिकारियों से उन कार्यालयों में समय-समय पर छापे मारने को कहा जहां आरोप है कि कानूनी उत्तराधिकारी प्रमाणपत्र जैसे हर दस्तावेज को जारी करने के लिए रिश्वत मांगी जाती है.
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकारी कार्यालयों में और सरकारी कर्मचारियों द्वारा भ्रष्ट क्रियाकलापों से आम लोग पूरी तरह से हताश हैं. उन्होंने कहा कि अदालतों सहित सभी उच्च अधिकारियों को वर्तमान स्थिति पर संज्ञान लेना चाहिए और सही ढंग से इन मामलों से निपटना चाहिए.
उन्होंने एक विशेष तहसीलदार की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं. उन्होंने आदेश जारी होने में देरी के आधार पर कथित भ्रष्टाचार के लिए अपने निलंबन को चुनौती दी थी.
जस्टिस सुब्रमण्यम ने अपने आदेश में कहा, ‘हमारे महान देश में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह फैल रहा है. आम आदमी सरकारी दफ्तरों में और सरकारी कर्मचारियों द्वारा भ्रष्ट क्रियाकलापों के संबंध में पूरी तरह से हताश है.’
उन्होंने कहा, ‘एक कानूनी दस्तावेज हासिल करने के लिए भी आम आदमी को कुछ सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देनी होती है.’
यह याचिका एक विशेष तहसीलदार (भूमि अधिग्रहण) ने डाली थी. भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम के तहत साल 2016 में दर्ज किए गए एक मामले में कई महीनों बाद उसे निलंबित किया गया था.
जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा, इस मामले को जिलाधिकारी के संज्ञान में नहीं लाया गया था और सूचना मिलने के तत्काल बाद ही उन्होंने निलंबन का आदेश जारी कर दिया था. इसलिए निलंबन में हुई देरी के लिए प्रशासन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘निलंबन एक अंतरिम व्यवस्था है ताकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच के लिए एक लोक अधिकारी को उसकी आधिकारी ड्यूटी करने से रोका जा सके. इसलिए इसे किसी आरोप, कुछ दस्तावेजों या किसी शिकायत के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है.’
जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा कि दोषी अधिकारी को अपना पक्ष रखने का मौका देकर केवल जांच के बाद ही मामले पर कोई फैसला लिया जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)