आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे मोदी सरकार ने दबा दिया है. इससे पहले उसने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी जारी होने से रोक दिया था.
नई दिल्ली: माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनरी एजेंसी (मुद्रा) योजना के तहत पैदा हुए रोज़गार को लेकर श्रम ब्यूरो द्वारा किए गए सर्वे के आंकड़े को मोदी सरकार अगले दो महीने बाद ही जारी करेगी. इस तरह आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे सरकार ने दबा दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सूत्रों ने बताया, ‘मुद्रा योजना के तहत पैदा की गईं नौकरियों की संख्या से जुड़े आंकड़े चुनाव बाद सार्वजनिक किए जाएंगे क्योंकि विशेषज्ञ समिति ने पाया कि निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए ब्यूरो की ओर से इस्तेमाल की गई पद्धति में अनियमितताएं हैं.’
इससे पहले 22 फरवरी की इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया था कि बेरोज़गारी पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट को खारिज करने के बाद मोदी सरकार श्रम ब्यूरो के सर्वेक्षण के आंकड़ों को जारी करने की तैयारी कर रही है.
हालांकि पिछले शुक्रवार को हुई बैठक में समिति ने ब्यूरो से कहा कि वह रिपोर्ट की कुछ गड़बड़ियों को सुधारे. इसके लिए ब्यूरो ने दो महीने का समय मांगा. हालांकि, समिति के विचार को केंद्रीय श्रम मंत्रालय की मंजूरी मिलनी बाकी है.
सूत्रों का कहना है कि सोमवार से चुनावी आचार संहिता लागू होने के बाद अनौपचारिक तौर पर यही फैसला हुआ है कि इस रिपोर्ट को चुनाव के दौरान सार्वजनिक न किया जाए.
बता दें कि मोदी सरकार ने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है. इन दोनों ही रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नौकरियों में गिरावट आने की बात सामने आई थी.
नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी श्रम ब्यूरो की छठवीं सालाना रिपोर्ट में बताया गया था कि 2016-17 में बेरोज़गारी चार साल के सर्वोच्च स्तर 3.9 फीसदी पर थी जबकि एनएसएसओ की रिपोर्ट में कहा गया था कि बेरोज़गारी 2017-18 में 45 साल के सर्वोच्च स्तर 6.1 फीसदी पर थी.
नीति आयोग ने पिछले महीने श्रम ब्यूरो से कहा था कि वे सर्वे को पूरा करके अपने निष्कर्ष 27 फरवरी को पेश करें ताकि उन्हें आम चुनाव से पहले घोषित किया जा सके. इसने इस योजना के माध्यम से सीधे नौकरी करने वाले लोगों के साथ-साथ उससे पैदा हुई अतिरिक्त नौकरियों के लिए आंकड़े मांगे थे.
सूत्रों के अनुसार, ब्यूरो के सर्वेक्षण में 8 अप्रैल 2015 से 31 जनवरी 2019 के बीच इस योजना के तहत कर्ज लेने वाले लगभग 97 हजार मुद्रा लाभार्थियों को शामिल किया गया था. सर्वेक्षण के दौरान मुद्रा योजना के लाभार्थियों को 10.35 करोड़ की राशि मिली थी जो कि अब 15.56 करोड़ तक पहुंच गई है.
श्रम मंत्रालय के अधिकारी ब्यूरो के आंकड़ों पर चुप्पी साधे हुए हैं जबकि सूत्रों का कहना है कि इस सर्वेक्षण में जिस पद्धति का उपयोग किया गया उसमें 50 हजार रुपये से अधिक का कर्ज लेने वाले उद्यमियों को शामिल किया गया जिन्होंने कारोबार चलाने के लिए यह कर्ज लिया था.
ब्यूरो ने सर्वेक्षण में दो या तीन बार के लाभार्थियों के साथ-साथ 34.26 करोड़ जन धन खाता धारकों को भी शामिल किया है, जिन्हें मुद्रा लाभार्थियों के रूप में बैंकों द्वारा शामिल किया गया था. इसमें विशेष रूप से उन खातों को शामिल किया गया जिन्हें बैंक द्वारा 5,000 रुपये का ओवरड्राफ्ट प्रदान किया गया था.
पिछले साल अगस्त में वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने कहा था, लगभग 90 फीसदी कर्ज 50 हजार रुपये की निचली श्रेणी के तहत दिए गए हैं. 8 अगस्त 2018 को डीएफएस ने जिन 13.5 करोड़ कर्ज के बारे में जानकारी दी थी उनमें से 12.2 करोड़ कर्ज 50 हजार रुपये तक वाले ‘शिशु’ लोन थे. 1.4 करोड़ रुपये के कर्ज 50 हजार और पांच लाख रुपये (किशोर) तक के थे और 19.6 लाख रुपये तक के लोन पांच लाख रुपये (तरुण) तक के थे.