कैराना उत्तर प्रदेश की उन तीन सीटों में शामिल है, जहां 2018 के उपचुनाव में भाजपा हार गई थी. भाजपा ने इस सीट से इस बार गुर्जर नेता हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का टिकट काटकर प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है. वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग बता रहे हैं प्रदीप चौधरी को उनकी ही पार्टी से ख़तरा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में दूध की जली भाजपा अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रही है. ठीक आख़िरी वक़्त पर उसने ऐसे उम्मीदवार का टिकट काट दिया जिसके इस बार जीतने की पूरी संभावनाएं थीं.
17 लाख वोटरों वाले कैराना लोकसभा उपचुनाव में कोई 45 हज़ार मतों से हारीं मृगांका सिंह फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी थीं.
ऐन वक़्त पर उनकी जगह गंगोह के विधायक प्रदीप चौधरी को भाजपा ने टिकट थमा दिया. मृगांका को संपूर्ण विपक्ष द्वारा समर्थित अजित सिंह की रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने उपचुनाव में हराकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां बटोरी थीं.
गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना लोकसभा उपचुनाव में भी मिली पराजय ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की धरती हिला दी थी. तब प्रचारित किया गया था कि कैराना में 2019 के राष्ट्रीय चुनावों का सेमीफाइनल हो रहा है.
भाजपा के गुर्जर नेता हुकुम सिंह के निधन से ख़ाली हुई कैराना सीट के लिए पिछले साल मई में हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी को यह मानकर टिकट दिया था कि सहानुभूति का फैक्टर मृगांका के पक्ष में काम करेगा पर वैसा नहीं हुआ.
रालोद नेता अजित सिंह के बेटे जयंत ने तबस्सुम के लिए जाटों के घर-घर जाकर प्रचार किया और मृगांका हार गईं. कैराना में अब चर्चा है कि सहानुभूति के जिस फैक्टर ने उपचुनाव में मृगांका के पक्ष में काम नहीं किया वही अब उनका टिकट काटे जाने के विरोध में काम कर सकता है और भाजपा को एक बार फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कैराना-शामली क्षेत्र के उनके समर्थकों में नाराज़गी है. प्रदीप चौधरी को टिकट की घोषणा के बाद मृगांका के फार्म हाउस पर उनके समर्थकों की बड़ी पंचायत हुई जिसमें उनसे कहा गया कि वे निर्दलीय के रूप में भाजपा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ें पर उन्होंने अपने आपको पार्टी की एक अनुशासित कार्यकर्ता बताते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया.
कैराना में चर्चा है कि मृगांका अब घर बैठ जाएंगी और फिर से अपने को गोसेवा के काम में लगा देंगीं. टिकट घोषित होने से पहले कैराना में उनके फार्म हाउस पर बातचीत में यह पूछने पर कि अगर उनका टिकट कट गया या वे फिर से हार गईं तो क्या करेंगीं, उन्होंने कहा था कि हो सकता है राजनीति छोड़ दें और पूरा समय गोसेवा और पोते-पोतियों की देखभाल में लगाने लगें.
मृगांका ने यह भी बताया था कि उन्होंने अपने क्षेत्र के काफी हिस्से में घर-घर जाकर संपर्क कर लिया है. जिन हिंदू परिवारों ने अखिलेश के राज में क़ानून-व्यवस्था की ख़राब स्थिति के चलते मुस्लिम-बहुल कैराना से पलायन किया था उनमें से अधिकांश लौट आए हैं.
कैराना के बाज़ार का चक्कर लगाने के बाद लगने भी लगता है कि मृगांका जो कह रही हैं वह सही भी है.
मुस्लिम और दलित-बहुल कैराना लोकसभा क्षेत्र में दो लाख से अधिक जाट भी हैं. तबस्सुम हसन चूंकि इस बार रालोद के बजाय सपा की उम्मीदवार हैं, पिछली बार की तरह जाट वोट उन्हें नहीं मिलने वाला है.
इसी जाट वोट को भाजपा की तरफ़ जाने से रोकने के लिए, कांग्रेस ने जाट नेता हरेंद्र मलिक को मैदान में उतार दिया है. मलिक ने शामली में हुई बातचीत में दावा किया कि इस बार भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से है, तबस्सुम से नहीं.
भौगोलिक रूप से सहारनपुर ज़िले में पड़ने वाली कैराना लोकसभा क्षेत्र की दो विधानसभा सीटों गंगोह और नकुड़ के कुछ मुस्लिम वोट भी इमरान मसूद के प्रभाव के कारण मलिक के पक्ष में जा सकते हैं.
तबस्सुम 2009 में बसपा के टिकट पर लोकसभा के लिए चुनी गई थीं पर 2014 की मोदी-लहर में हुकुम सिंह से हार गई थीं.
इस बार रालोद और कांग्रेस तबस्सुम के साथ नहीं हैं. कैराना के 17 लाख के करीब मतदाताओं में पांच लाख मुस्लिम और ढाई लाख दलित हैं.
इनके अलावा जाट, कश्यप, गुर्जर, सैनी, ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत बड़ी संख्या में हैं और अधिकांश भाजपा समर्थक हैं. कैराना का उपचुनाव अगर राष्ट्रीय चुनावों का सेमीफाइनल बताया गया था तो इस बार का नतीजा उत्तर प्रदेश के लिए कई नए राजनीतिक समीकरण बनाने वाला है.
भाजपा पिछली बार इसलिए हारी थी क्योंकि रालोद के अलावा सपा, बसपा, कांग्रेस सभी ने विपक्षी उम्मीदवार तबस्सुम का समर्थन किया था. इस बार तबस्सुम के साथ केवल सपा और बसपा है और उसमें भी मुस्लिम वोट बंट सकता है. पर इस बार कैराना में फिर से नया इतिहास यह बन सकता है कि भाजपा उम्मीदवार, भाजपा के कारण ही हार जाए.
कैराना एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां बटोर सकता है. भाजपा के टिकट को लेकर जो ड्रामा हुआ है उसका असर पश्चिमी यूपी की बाकी सीटों पर भी कुछ तो पड़ेगा ही.
और अंत में यह भी कि कैराना के नतीजों पर पुलवामा का भी असर होने की भाजपा को उम्मीद है. कारण यह है कि क्षेत्र से पुलवामा में दो शहादतें हुई है और हजारों की भीड़ शहीदों को श्रद्धांजलि देने एकत्रित हुई थी.
कैराना में यह चर्चा भी सुनने को मिली कि एक शहीद के परिवार ने बाद में सबूतों की मांग कर ली थी जिसे बाद में सांत्वना-चर्चा के लिए मुख्यमंत्री ने लखनऊ बुलवा लिया था.
(दैनिक भास्कर से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)