श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में केवल 1.12 करोड़ रोज़गार ही पैदा किए जा सके.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सरकारी एजेंसी श्रम ब्यूरो को निर्देश दिया गया है कि वो उस डेटा की दोबारा से जांच करे जिसके मुताबिक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में 1.12 करोड़ नौकरियां पैदा करने का आंकलन किया गया है.
2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान सालाना दो करोड़ रोजगार उपलब्ध कराने का वादा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रोजगार पर सवालों को लेकर घिरने लगे थे तब उन्होंने मुद्रा योजना के तहत ही रोजगार के आंकड़ों का हवाला दिया था.
द टेलीग्राफ के अनुसार, इस साल 1 फरवरी तक मुद्रा योजना के तहत 7.59 लाख करोड़ रुपये की राशि खर्च कर कुल 15.73 करोड़ कर्ज़ दिया गया.
हालांकि इतनी बड़ी संख्या में रकम खर्च करने के बावजूद केवल 1.12 करोड़ अतिरिक्त रोजगार ही पैदा हो सके.
इस पर विशेषज्ञों को संदेह है कि बहुत सारे कामगारों ने कर्ज तो ले लिया लेकिन उससे रोजगार के अवसर पैदा नहीं हुए.
बता दें कि माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा) एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है जो लघु उद्योगों की मदद के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से कर्ज के रूप में आर्थिक मदद मुहैया कराती है.
यह कर्ज नए या पहले से चल रहे आय संबंधित गतिविधियों की मदद के लिए होता है.
इस योजना के तहत 10 लाख रुपये तक की रकम कर्ज के रूप में ली जा सकती है लेकिन बहुत सारे लाभांवितों ने एक बार में 50 हजार रुपये ही लिए.
बता दें कि मोदी सरकार इस योजना को रोजगार की संभावनाएं पैदा करने के साधन के रूप में प्रचारित करती रहती है.
हाल में एक निजी टीवी चैनल के इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने मुद्रा योजना का जिक्र करते हुए कहा था कि पहली बार कम से कम चार करोड़ लोगों ने कर्ज लिया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जताई थी कि कर्ज लेने वाले इन लोगों ने निश्चित तौर पर रोजगार पैदा किए होंगे और किसी को रोजगार दिया होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर चार करोड़ लोगों को नया कर्ज देने की बात सही है तो पुनर्सत्यापित आंकड़े भी उसकी पुष्टि करते हैं तो इसका मतलब है कि कर्ज लेने वालों में से कुछ लोग पहले से ही कहीं काम कर रहे थे.
हालांकि आदर्श रूप में देखें तो किसी भी हालात में 16 करोड़ लोगों को कर्ज देने से अतिरिक्त रोजगार पैदा होने का आंकड़ा 1.12 करोड़ से तो अधिक ही आना चाहिए था.
अगर सरकार आधिकारिक आंकड़े जारी करती तो इस मामले को लेकर स्थिति और साफ हो जाती.
मुद्रा योजना के माध्यम से 1.12 करोड़ रोजगार पैदा होने का शुरूआती आंकड़ा चंडीगढ़ स्थित सरकारी एजेंसी श्रम ब्यूरो ने दिया था. उसने यह आंकड़ा देशभर में 96 हजार लोगों का सैंपल लेकर सर्वेक्षण करने से इकट्ठा किया था.
नौ महीने तक चलने वाले इस सर्वेक्षण के जनवरी में खत्म होने के बाद पिछले हफ्ते श्रम एवं रोजगार के मुख्य सलाहकार बीएन नंदा की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने श्रम ब्यूरो से आंकड़ों को पुनर्सत्यापित करने का जिम्मा सौंपा. हालांकि समिति ने पुनर्सत्यापन के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है.
बता दें कि इससे पहले खबर आई थी कि माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनरी एजेंसी (मुद्रा) योजना के तहत पैदा हुए रोज़गार को लेकर श्रम ब्यूरो द्वारा किए गए सर्वे के आंकड़े को मोदी सरकार दो महीने बाद ही जारी करेगी.
इस तरह आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट हो गई थी जिसे सरकार ने दबा दिया.
इससे पहले मोदी सरकार ने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है. इन दोनों ही रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नौकरियों में गिरावट आने की बात सामने आई थी.