ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में वाराणसी के कचनार गांव में जुलाई 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली के लिए तकरीबन 10 एकड़ की ज़मीन का इस्तेमाल किया गया था. इस ज़मीन की फसल बर्बाद होने की वजह से प्रशासन ने स्थानीय किसानों को मुआवज़ा देने की बात कहीं थी.
‘मेरे खेत में लगी फसल को उजाड़कर प्रधानमंत्री मोदी की रैली के लिए उसमें दो हेलीपैड बनाए गए थे. हमसे कहा गया था कि आपकी खेती ख़राब हो रही है तो इसका आपको मुआवज़ा मिलेगा, अगर मुआवज़ा नहीं मिला तो आपके खेत में जितनी भी ईंटें लगाई जाएंगी वो सभी ईंटें आपकी हो जाएंगी.
वाराणसी के राजातालाब के पास कचनार गांव की किसान चमेला देवी ये कहते हुए रोने लगती हैं.
उन्होंने बताया, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी आए, उनकी रैली हुई, हज़ारों लोग इकट्ठा हुए. लंबे-लंबे भाषण दिए गए, फिर वे हेलीकॉप्टर पर बैठे और चले गए, उनके जाने के बाद कोई मुआवज़ा नहीं मिला और खेत में जितनी भी ईंटें लगी हुई थीं सब सरकार के आदमी उठा ले गए.’
चमेला देवी कहती हैं, ‘जब मेरे बेटे ने इसका (ईंट ले जाने का) विरोध किया तो उसको मारा पीटा गया. मेरे खेत में बचे रह गए तो सिर्फ़ ईंट और पत्थर के टुकड़े. हमारी खेती बर्बाद हुई, हमारा खेत बर्बाद हुआ और हम बर्बाद हो गए.’
14 जुलाई 2018 को वाराणसी के राजातालाब स्थित कचनार गांव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली का आयोजन किया गया था.
पीएम मोदी ने यहां से एक जनसभा को संबोधित किया था. जनसभा स्थल से पीएम मोदी ने 449.29 करोड़ रुपये की लागत की 20 परियोजनाओं का लोकार्पण एवं 487.66 करोड़ की लागत की परियोजनाओं का (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये) शिलान्यास किया था.
मोदी की इस रैली के लिए लगभग दस एकड़ ज़मीन का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें विशेष साजसज्जा के साथ मंच तैयार किया गया था. हज़ारों लोगों के बैठने का इंतज़ाम किया गया था, तीन हैलीपैड बनाए गए थे. अलग-अलग पार्किंग एरिया बनाए गए थे.
इस रैली के लिए कचनार गांव के क़रीब सात किसानों की ज़मीन का उपयोग किया था. इसमें गिरिजा की नौ बिसवा ज़मीन, खटाई लाल की दस बिसवा ज़मीन, मिटाई लाल की दस बिसवा ज़मीन और चमेला देवी की साढ़े तीन बीघा ज़मीन का उपयोग किया गया था, लेकिन इन्हें आज तक कोई मुआवज़ा नहीं मिला है.
मुआवज़े की आस लगाए क़रीब 65 साल के गिरिजा कहते हैं, ‘मेरी विभिन्न सब्ज़ियों की फसल तैयार हो गई थी. हमारे यहां नेनुआ और भिंडी की खेती हो रही थी. अधिकारी लोग मेरी पूरी फसल को ख़त्म कर दिए, वो बोले थे कि मुआवज़ा मिलेगा लेकिन हमें कुछ नहीं मिला और हमारी पूरी खेती भी ख़त्म हो गई.’
गिरिजा कहते हैं, ‘क्या ऐसे नेता होते हैं? प्रधानमंत्री ऐसे होते हैं, उन्हें तो हमारा भला करना चाहिए, लेकिन वो तो हमें…’ इतना कहते हुए गिरिजा रूआंसी हो जाती हैं और ख़ुद को संभालने की कोशिश करती हैं.
चमेला देवी कहती हैं, ‘हम इस ज़मीन के मालिक नहीं हैं. हम खेती करते हैं तो तीन हिस्सा मालिक का होता है और एक हिस्सा हमारा होता है. हम उसी में सब करते हैं, खेत की जुताई-बुआई से लेकर फसल तैयार होने तक का सब काम हमारी ज़िम्मेदारी होती है.’
उन्होंने बताया, ‘जब मोदी की रैली के लिए हमारी ज़मीन ली गई थी तो उस समय खेत में कुछ सब्ज़ियां लगाने की तैयारी कर रहे थे. खेत में जुताई-बुआई हो गई थी. खेत बिलकुल तैयार थी, एक दो दिन में फसल लगाने वाले थे लेकिन तब तक मोदी की रैली के लिए ज़मीन देनी पड़ी.’
चमेला देवी कहती हैं, ‘मोदी की रैली के लिए हमारे खेत में चार ट्रक बालू गिराया गया था. रैली के बाद हमारे खेत की हालत इतना ख़राब हो गई थी कि खेत को जुतवाने (खेती के लिए तैयार करने) में तीन गुना ज़्यादा पैसा देना पड़ा. जहां दो हज़ार में पूरे खेत की जुताई हो जाती थी वहां 12 हज़ार देना पड़ा. इन सबके बावजूद कई दिनों तक खेत से ईंट और पत्थर के टुकड़े को बीनकर निकालना पड़ा. फिर भी पहले की तरह फसल नहीं हो पाई.’
चमेला देवी कहती हैं कि, ‘हमारे पास खेती के अलावा और कोई काम नहीं है. हम अपने तीनों बच्चों और बहुओं को लेकर दिनभर खेती करते हैं तब जाकर हम दो वक़्त की रोटी खा पाते हैं लेकिन मोदी की रैली ने हमें बर्बाद कर दिया. हमारे ऊपर क़र्ज़ हो गया. एक तो हमारी खेती नहीं हुई, दूसरी बात कोई मुआवज़ा नहीं मिला.’
क़रीब साठ साल की चमेला देवी कहती हैं, ‘हम लोग एक फसल लगाते हैं और एक फसल की तैयारी करते हैं. जुलाई में तो हमारी कोई फसल हुई नहीं और उसके बाद हमारे खेत की हालत इतनी ख़राब हो गई कि दस बिसवा ज़मीन में जहां 5-6 कुंतल गेहूं होती है वहां 2-3 कुंतल गेहूं भी मुश्किल से हो पाएगा.’
मुआवज़े का इंतज़ार कर रहे किसान कहते हैं कि अब बहुत दौड़ लिए. दौड़-दौड़कर हम थक गए हैं. हमारी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
मोदी की रैली के लिए ज़मीन देने वाले 50 वर्षीय खटाई पटेल का पूरा परिवार कृषि पर निर्भर है. परिवार के पास इसके अलावा आजीविका का दूसरा साधन नहीं है.
खटाई लाल बताते हैं, ‘जब हमें पता चला कि प्रधानमंत्री मोदी हमारे गांव में रैली करने वाले हैं तो हमें ख़ुशी हुई लेकिन ये ख़ुशी कुछ ही देर की थी. हमसे कहा गया कि रैली के लिए हमें अपने खेत की ज़मीन देनी होगी.’
खटाई लाल बताते हैं, ‘उस समय मेरे दस बिसवा के खेत में कद्दू और कोहड़ा की खेती हो रही थी. सीज़न की पहली फसल बस होने ही वाली थी कि सरकार के आदमी आए और पूरा खेत समतल मैदान कर दिए. मेरी आंखों के सामने करीब 50 हज़ार रुपये की मेरी खेती बर्बाद हो गई और हम कुछ नहीं कर सके.’
वे कहते हैं, ‘मेरे तीन बच्चे पढ़ाई कर रहे थे. बच्चों के एडमिशन से लेकर उनकी कॉपी-कलम तक का ख़र्च इसी खेती से निकलता था, लेकिन जब हमारी पूरी फसल बर्बाद हो गई, कोई मुआवज़ा भी नहीं मिला, हम क़र्ज़ में डूबने लगे तो मेरे बेटे सुनील को अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़नी पड़ी. आज मेरा बेटा पढ़ाई छोड़ मिठाई की एक दुकान पर काम करता है.’
एक अन्य किसान शोभनाथ कहते हैं, ‘जुलाई का महीना ऐसा मौसम होता है जब सब्ज़ियां कम होती हैं. इस समय सब्ज़ियां महंगी बिकती हैं. ऐसे वक़्त में हमारी फसल बर्बाद हो गई है.’
वे कहते हैं, ‘हम अपने खेत में मूली और बोड़ा की खेती किए थे. सब्ज़ियों के फूल लगे थे लेकिन सब्ज़ी तैयार नहीं हुई. उससे पहले ही खेत तहस-नहस हो गया. क़रीब 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा का नुकसान हो गया. तब और ज़्यादा बुरा लगता है जब मुआवज़े की बात हो और कुछ न मिले यानी कुछ भी न मिले.’
किसान मिठाईलाल कहते हैं, ‘हम रोज़ कितना दौड़ेंगे और कहां-कहां जाएं? अपना पेट भी तो पालना है. हम एसडीएम के ऑफिस के चक्कर लगा-लगाकर हार मान लिए हैं. अब तो हम उम्मीद भी छोड़ दिए हैं. पता नहीं कुछ मिलेगा भी या नहीं.’
रैली के ज़मीन देने वाले किसान मिठाई कहते हैं, ‘हम एसडीएम के ऑफिस के चक्कर लगा-लगाकर हार मान लिए हैं. अब तो हम उम्मीद भी छोड़ दिए हैं. पता नहीं कुछ मिलेगा भी या नहीं.’
किसान राजू पटेल कहते हैं, ‘हम एक तरह से बर्बाद हुए हैं, क़र्ज़ में डूबे हैं. क़रीब 40 हज़ार रुपये की फसल बर्बाद हो गई है. दूसरी बार की खेती इतनी ख़राब हुई है, गेहूं के इतने पतले-पतले दाने हुए हैं, उससे क्या होगा?
गांव के किसान और मुआवज़े के बारे में जब ग्राम प्रधान विजय पटेल से बात की गई तो उन्होंने बताया, ‘अधिकारियों को कई बार लिखित दिया गया, कई बार एसडीएम के दफ़्तर के चक्कर लगाए गए. धरना-प्रदर्शन हुए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.’
ग्राम प्रधान बताते हैं कि हमारे गांव के किसानों का बहुत नुकसान हुआ लेकिन उन्हें बेचारों को कोई मुआवज़ा नहीं मिला. अब तो लोकसभा चुनाव के चलते आचार संहिता भी लागू हो गई अब और कोई सुनवाई नहीं होगी.
इस संबंध में जब राजातालाब के एसडीएम जय प्रकाश से बात की गई तो उनका कहना है कि अभी मैं कुछ ही दिन पहले ही यहां आया हूं तो ये मामला मेरे संज्ञान में नहीं है.
मालूम हो कि पीएम मोदी की रैली के समय अंजनी कुमार सिंह राजातालाब के एसडीएम थे, अभी एक महीने पहले यहां के एसडीएम बदल दिए गए हैं, नए एसडीएम जय प्रकाश हैं.
(रिज़वाना स्वतंत्र पत्रकार हैं.)