इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019- 20 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया. रेपो दर वह दर होती है जिस पर रिज़र्व बैंक दूसरे कॉमर्शियल बैंकों को कर्ज देता है.
मुंबई: आम चुनाव शुरू होने से पहले अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को रेपो दर (रेपो रेट) को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया. रिजर्व बैंक ने लगातार दूसरी बार रेपो दर में कटौती की है.
इससे बैंकों के धन की लागत कम होगी और वह आगे अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे पाएंगे. आने वाले दिनों में इससे मकान, वाहन और दूसरे कर्ज सस्ते हो सकते हैं.
केंद्रीय बैंक ने हालांकि, मानसून की स्थिति को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए मौद्रिक नीति रूख को तटस्थ बनाये रखा है. इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019- 20 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की दूसरी बैठक में समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो दर में कटौती के पक्ष में अपना मत दिया जबकि दो ने इसे स्थिर बनाये रखने को कहा.
केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चली बैठक के बाद बृहस्पतिवार को रेपो दर को तुरंत प्रभाव से 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया. इससे पहले रिजर्व बैंक ने फरवरी 2019 में हुई समीक्षा में इसे 6.50 से घटाकर 6.25 प्रतिशत किया था. इससे पहले अप्रैल 2018 में रेपो दर छह प्रतिशत पर थी.
रेपो दर वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे वाणिज्यक बैंकों (कॉमर्शियल बैंक) को अल्पावधि के लिए नकदी या कर्ज उपलब्ध कराता है. इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर भी इसी अनुपात में घटकर 5.75 प्रतिशत और बैंकों के लिये सीमांत स्थायी सुविधा और बैंक दर को 6.25 प्रतिशत कर दिया.
चालू वित्त वर्ष की पहली द्वैमासिक मौद्रिक नीति के वक्तव्य में रिजर्व बैंक ने कहा है कि रेपो दर में की गई कटौती मध्यम अवधि के लक्ष्य के अनुरूप की गई है. इस लक्ष्य में मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के दायरे में रखने के साथ साथ आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना है.
मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा गया है कि उत्पादन फासला नकारात्मक बना हुआ है और घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौती बनी हुई है. खासतौर से वैश्विक मोर्चे पर यह चुनौतियां ज्यादा हैं. निजी निवेश को बढ़ावा देकर घरेलू आर्थिक वृद्धि को मजबूती देने की जरूरत है. निजी निवेश अभी भी धीमी गति पर बना हुआ है.
समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में वैकल्पिक कृषि समर्थन योजनाओं, कुछ राज्य सरकारों द्वारा की गई कृषि ऋण माफी घोषणाओं और फसलों के लिए ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्यान्नों की खरीदारी के साथ ही कम प्रत्यक्ष कर प्राप्ति से सकल राजकोषीय घाटे पर दबाव और बढ़ सकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खुदरा मुद्रास्फीति अपने हाल के निम्न स्तर ऊपर उठ सकती है. अनुकूल आधार प्रभाव समाप्त होने के बाद यह बढ़ सकती है हालांकि इसके चार प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे ही रहने की उम्मीद है.
समीक्षा रिपोर्ट में मुद्रास्फीति दायरे के समक्ष मौजूद जोखिम के बारे में भी बताया गया है. कच्चे तेल के ऊंचे दाम, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में उतार चढ़ाव और जल्द नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों के दाम में अचानक गिरावट आना तथा वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने में पीछे रह जाना जैसी चुनौतियां बरकरार हैं.
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक की मुख्य बातें
- अल्पावधि ब्याज दर (रेपो दर) 0.25 प्रतिशत घटाकर छह प्रतिशत की गई.
- यह रेपो दर में लगातार दूसरी बार की गई कटौती है.
- रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति पर रुख तटस्थ बनाये रखा.
- मौद्रिक नीति समिति के छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में कटौती का पक्ष लिया.
- वित्त वर्ष 2019-20 के लिये जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत किया गया.
- रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही के लिये खुदरा मुद्रास्फीति का पूर्वानूमान घटाकर 2.4 प्रतिशत किया.
- मौद्रिक नीति समिति ने माना कि उत्पादन फासला नकारात्मक बना हुआ है और घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौती बनी हुई है.
- अगली मौद्रिक नीति की घोषणा छह जून को होगी.