सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत और भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद आरटीआई के तहत सार्वजनिक प्राधिकार है या नहीं, इस सवाल पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत और भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद आरटीआई के तहत सार्वजनिक प्राधिकार है या नहीं, इस सवाल पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा दायर तीन अपीलों पर अपना फैसला सुरक्षित रखा जिसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत और भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत सार्वजनिक प्राधिकार है और आरटीआई के तहत आवेदकों को सूचना देने के लिए जवाबदेह है.
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ तीन अपीलों की सुनवाई कर रही थी.
ये अपीलें सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और शीर्ष अदालत के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के साल 2009 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें कहा गया है कि सीजेआई का पद सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है.
पीठ में जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं.
न्यायालय ने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति अपारदर्शी व्यवस्था के पक्ष में नहीं है. कोई भी व्यक्ति अंधेरे में नहीं रहना चाहता, ना ही किसी को अंधेरे में रखना चाहता है. सवाल एक रेखा खींचने का है. पारदर्शिता के नाम पर आप संस्था को नष्ट नहीं कर सकते हैं.’
इस पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आरटीआई कानून के तहत न्यायपालिका के सूचना देने को लेकर अनिच्छुक होने को दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाला बताते हुए कहा, ‘क्या न्यायाधीश अलग ब्रह्मांड के निवासी हैं?’
उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय राज्य (शासन) के अन्य अंगों के कामकाज में हमेशा ही पारदर्शिता के लिए खड़ा होता है लेकिन जब उसके खुद के मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत होती है तो उसके कदम ठिठक जाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘लोगों को यह जानने का हक है कि सार्वजनिक प्राधिकार क्या कर रहे हैं.’ पीठ ने कहा कि लोग न्यायाधीश बनना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें नकारात्मक प्रचार का डर है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने बुधवार को अदालत के सामने कहा था कि आरटीआई कानून के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति या पदोन्नति के संबंध में कॉलेजियम की चर्चा जैसी उच्च गोपनीय सूचनाओं को सार्वजनिक करना न्यायपालिका के ‘कामकाज के लिए नुकसानदेह’ होगा.
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा था कि आरटीआई के तहत जजों के नियुक्ति की जानकारी का खुलासा करने से कोलेजियम की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी.
वेणुगोपाल ने कहा, ‘किसी विशेष कैंडिडेट को जज के रूप में नियुक्त करने/सिफारिश न करने के लिए फाइल नोटिंग और कारणों का खुलासा जनहित के खिलाफ होगा. ऐसी जानकारी पूरी तरह से गोपनीय होनी चाहिए, अन्यथा कॉलेजियम के न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं.’
वहीं, प्रशांत भूषण ने इन तर्कों का विरोध किया और कहा कि भारत की जनता को जजों की नियुक्ति और सुप्रीम कोर्ट से संबंधित जानकारियां प्राप्त करने का हक है.
भूषण ने कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्रता, न कि देश के लोगों से.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)