मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने के बाद राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने नेपाल की प्रचंड सरकार से समर्थन वापस ले लिया है.
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के निलंबन के साथ नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया है. मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया.
मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने को लेकर सरकार को समर्थन दे रही राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने गठबंधन तोड़ने का फैसला लिया है.
आरपीपी की केंद्रीय कार्यकारी समिति की बैठक में अध्यक्ष कमल थापा ने कहा, महाभियोग प्रस्ताव अपरिपक्व और गैरज़िम्मेदारी भरा क़दम था. यह प्रस्ताव गलत इरादों के साथ लाया गया इसलिए इसके विरोध में पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले रही है.
गठबंधन सरकार में आरपीपी चौथा बड़ा दल है. 593 सदस्यों वाली संसद में इसके 37 सदस्य शामिल हैं.
हालांकि सरकार अभी संकट में नहीं आई है लेकिन अगर मधेस जन अधिकार फोरम ने भी समर्थन वापस ले लिया तो सरकार अल्पमत में आ सकती है.
आरपीपी की ओर से कहा गया है कि महाभियोग प्रस्ताव चुनावी माहौल, कानून व्यवस्था और देश की स्थिति पर एक नकारात्मक असर पैदा करेगा.
आरपीपी ने निर्णय लिया है कि वह सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल नेपाली कांग्रेस और सीपीएन (माओवादी केंद्र) से महाभियोग प्रस्ताव तुरंत वापस लेने को कहेगी ताकि देश में अस्थिरता और संकट को रोका जा सके.
थापा ने कहा, हालांकि पार्टी स्थानीय चुनाव और संविधान संशोधन में समर्थन देगी.
महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने के बाद 64 वर्षीय कार्की को अपने आप ही पद से निलंबित कर दिया गया है. दरअसल नेपाल के कानून के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव लाने के साथ ही न्यायाधीश को निलंबित कर दिया जाता है.
सत्तारूढ़ नेपाल कांग्रेस और सीपीएन (माओवादी-केंद्र) के कुल 249 सांसदों ने इस महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं. प्रस्ताव में कार्की पर प्रशासकों के काम में ‘हस्तक्षेप’ करने और ‘पक्षपातपूर्ण’ फैसला देने का आरोप लगाया गया है.
इसके साथ ही उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री विमलेंद्र निधि ने भी इस्तीफा दे दिया है. निधि के एक करीबी सहायक ने संवाददाताओं को बताया कि प्रस्ताव को लेकर उनकी कुछ गंभीर आपत्तियां थीं.
निधि नेपाली कांग्रेस का नेतृत्व करते हैं जो प्रधानमंत्री प्रचंड की अगुवायी वाले सत्तारूढ़ गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है.
उधर, प्रधान न्यायाधीश के ख़िलाफ़ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने के बाद नेपाल सेना सक्रिय हो गई. सेना ने एक बयान में कहा है कि ‘जिस तरह के घटनाक्रम सामने आ रहे हैं’, उसके चलते सेना सतर्कता बरतेगी.
सेना की मीडिया शाखा ने एक बयान में कहा कि शीर्ष अधिकारियों ने जिस तरह के घटनाक्रम सामने आ रहे हैं उन्हें देखते हुए सुरक्षा के लिए चुनौतियों के मद्देनज़र चौकसी बरतने का निर्णय लिया है. बयान में कहा गया है कि अधिकारियों ने नेपाल में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा भी की.
बता दें कि सरकार पर संकट ऐसे समय गहराया है जब संविधान संशोधन बिल पास कराने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन दो तिहाई बहुमत पाने के लिए संघर्ष कर रही है.
नेपाल में इस समय राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिल रही है. वहां 14 मई को स्थानीय स्तर के चुनाव होने हैं. कुछ मधेसी दलों ने संविधान में संशोधन होने तक चुनावों का विरोध किया है. वे संसद में और प्रतिनिधित्व और प्रांतीय सीमाओं का फिर से सीमांकन करने की मांग कर रहे हैं.