जमैका के सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले के ज़रिये आधार जैसी योजना को ख़ारिज किया

जमैका की सरकार ने 2017 में राष्ट्रीय पहचान प्रणाली विकसित की थी. इसका उद्देश्य जमैका के नागरिकों की बायोमेट्रिक जानकारी इकट्ठा करनी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

जमैका की सरकार ने 2017 में राष्ट्रीय पहचान प्रणाली विकसित की थी. इसका उद्देश्य जमैका के नागरिकों की बायोमेट्रिक जानकारी इकट्ठा करनी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

जस्टिस डीवी चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

जमैका की सुप्रीम कोर्ट ने भारत के आधार जैसे ही ‘राष्ट्रीय पहचान और पंजीकरण अधिनियम’ को गैर कानूनी करार देते हुए इसे खारिज कर दिया. खास बात ये है कि जमैका की कोर्ट ने इस फैसले में आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए डिसेंट (विरोध में दिया गया निर्णय) फैसले को उल्लेख किया है.

मालूम हो कि 26 सितंबर 2018 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट के कुछ प्रावधानों को खारिज करते हुए इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया था. इस मामले पर फैसला देने वाली पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने विरोध में फैसला लिखा और आधार को असंवैधानिक करार दिया था.

जमैका की सरकार ने राष्ट्रीय पहचान प्रणाली (एनआईडीएस) विकसित की थी. इसका उद्देश्य जमैका के नागरिकों के व्यक्तिगत पहचान की जानकारी इकट्ठा करना था. एनआईडीएस को 2017 में पास किया गया था, हालांकि अभी तक इसे लागू नहीं किया गया था.

लाइव लॉ के मुताबिक, जमैका में विपक्षी दल पीपुल्स नेशनल पार्टी के महासचिव और सांसद जूलियन जे रॉबिन्सन ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

मुख्य न्यायाधीश ब्रायन सैक्स, जस्टिस डेविड बैट्स और जस्टिस लिसा पामर हैमिल्टन ने इस मामले की सुनवाई की और अपने अलग-अलग फैसलों में आधार जैसी इस बायोमेट्रिक योजना को असंवैधानक करार दिया.

मुख्य न्यायाधीश ने माना कि बायोग्राफिकल और बायोमेट्रिक डेटा को अनिवार्य रुप से जमा करना जमैका चार्टर के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन है. वहीं एक अलग लेकिन समान फैसले में जस्टिस बैट्स ने कहा कि इस योजना के जरिए ‘भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया सर्विलांस स्टेट (निगरानी राज्य)’ बनने का खतरा है.

जस्टिस पामर हैमिल्टन ने संक्षिप्त सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा बिना किसी रोक-टोक या बेलगाम पहुंच सही नहीं है और ये असंवैधानिक है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन न हो, सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होगी.

मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस बैट्स दोनों ने ही अपने फैसले में काफी ज्यादा हिस्सा भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया आधार निर्णय का उल्लेख किया है.