जब मकान मालिक ने किराया न देने पर पूर्व प्रधानमंत्री का सामान बाहर फिंकवा दिया था

चुनावी बातें: देश की राजनीति में एक समय ऐसा भी था जब सादगी हमारे नेताओं के बीच एक स्थापित परंपरा हुआ करती थी.

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पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा (फोटो साभार: alchetron.com)

चुनावी बातें: देश की राजनीति में एक समय ऐसा भी था जब सादगी हमारे नेताओं के बीच एक स्थापित परंपरा हुआ करती थी.

पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा (फोटो साभार: alchetron.com)
पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा (फोटो साभार: alchetron.com)

गत लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने सासंदों व सत्ताधीशों की विलासितापूर्ण जीवनशैली के खिलाफ सादगी को भी मुद्दा बनाया था. लेकिन इस बार इस मुद्दे का कुछ अता पता ही नहीं है. कभी यह सादगी हमारे सांसदों के बीच एक स्थापित परंपरा हुआ करती थी.

गुलजारीलाल नंदा, जिन्होंने देश की संकट की घड़ी में कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री पद का कार्यभार भी संभाला, जीवन भर किराये के साधारण से मकान में रहे. एक बार किराया नहीं दे पाये तो मकान के मालिक ने उनका सामान बाहर फिंकवा दिया था.

बैंक में भी वे अपने पीछे दो हजार चार सौ चौहत्तर रुपये ही छोड़ गए थे. उन्हीं जैसे कांग्रेस के एक उच्चविचार के सादगीपसंद नेता थे- रफी अहमद किदवई. देश की आजादी से अपने निधन तक वे केंद्र में मंत्री रहे. लेकिन उनके न रहने पर उनकी पत्नी और बच्चों को उत्तर प्रदेश में बाराबंकी के टूटे-फूटे पैतृक घर में वापस लौट जाना पड़ा.

पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री आबिद अली साइकिल से ही संसद आते-जाते थे और एक समय उनके पास कपड़ों का दूसरा जोड़ा भी नहीं था. रात में लुंगी पहनकर कपड़े धोते और सुखाकर उसे ही अगले दिन पहनकर संसद जाते थे.

नौ बार सांसद रहे कम्युनिस्ट नेता इंद्रजीत गुप्त ने कभी अपने लिए कोई बंगला आवंटित नहीं कराया. उनकी अपनी गाड़ी भी नहीं थी. जहां भी जाते, ऑटो रिक्शे में बैठकर अथवा पैदल जाते.

उन्हीं की तरह हीरेन मुखर्जी भी नौ बार सांसद रहे. वे सारा वेतन और भत्ता पार्टी कोष में दे देते और 200 रुपये में महीने भर गुजारा करते थे. सांसद एचवी कामथ की कुल संपत्ति थी-एक झोले में दो जोड़ी कुर्ता पायजामा. हालांकि वे पूर्व आईसीएस भी थे.

समाजवादी सांसद भूपेंद्र नारायण मंडल यात्राओं के वक्त अपना सामान खुद अपने कंधे पर उठाते थे और चुनाव क्षेत्र में बैलगाड़ी से दौरे करते थे.

एक साथ लड़ी सांसदी व विधायकी

चुनाव लोकसभा के हों या विधानसभा के, कई नेता दो-दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव दो-दो सीटों से चुनाव लड़े थे.

नरेंद्र मोदी गुजरात की बड़ोदरा व उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट से, तो मुलायम उत्तर प्रदेश की ही मैनपुरी व आजमगढ़ सीटों से. इस बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ऐसे नेताओं की सूची में अपना नाम लिखा लिया है. वे उत्तर प्रदेश की अपनी परंपरागत अमेठी सीट के साथ केरल की वायनाड सीट से मैदान में हैं.

लेकिन क्या आप किसी ऐसे नेता को भी जानते हैं, जो दो ऐसी सीटों से एक साथ चुनाव लड़े, जिनमें एक लोकसभा की हो और दूसरी विधानसभा की?

उत्तर प्रदेश में हरदोई के दिग्गज नेता परमाई लाल ने 1989 में हरदोई लोकसभा और अहिरौरी विधानसभा क्षेत्र से एक साथ जोर आजमाया. मतदाता व किस्मत दोनों उनके साथ थे.

सो, वे दोनों सीटें जीत गए. समस्या हुई कि कौन-सी सीट रखें और कौन-सी छोड़ दें, यानी विधानसभा में जायें या लोकसभा में? इष्ट मित्रों से मशवरा करके उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी और विधायक बनकर ही संतुष्ट हो लिए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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