चुनाव आयोग द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी फिल्म की रिलीज़ पर रोक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे फिल्म देखकर इस पर रिपोर्ट देने को कहा था. रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि फिल्म पूरी तरह से एक-आयामी है, जो एक व्यक्ति की बेहद तारीफ करते हुए उसे संत का दर्जा दे देती है. आचार संहिता के दौरान इसका प्रदर्शन चुनावी संतुलन को एक ओर झुका देगा.
नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने 19 मई को चुनाव समाप्त होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक की रिलीज का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह बायोपिक, एक हैजिओग्राफी [Hagiography किसी संत आदि के सम्मान/भक्ति में लिखना] की तरह है, जिसमें एक व्यक्ति विशेष का अनावश्यक गुणगान किया गया है.
साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान इसकी सार्वजनिक स्क्रीनिंग होना चुनावी संतुलन को एक ओर झुका देगा. चुनाव आयोग ने अभिनेता विवेक ओबेरॉय अभिनीत फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ पर सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को 20 पृष्ठों की अपनी एक रिपोर्ट सौंपी है.
आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि ‘बायोपिक’ में एक ऐसा राजनीतिक माहौल तैयार किया गया है, जिसमें एक व्यक्ति की महिमा का गुणगान किया गया है और चुनाव आचार संहिता लागू रहने के दौरान इसकी सार्वजनिक स्क्रीनिंग एक खास राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाएगी.
चुनाव आयोग ने कहा है कि ऐसे कई दृश्य हैं जिसमें एक बड़ी विपक्षी पार्टी को चित्रित किया गया है और उसे खराब तरीके से दिखाया गया है. उसके नेताओं को इस तरह से चित्रित किया गया है कि उनकी पहचान दर्शकों को साफ तौर पर जाहिर होगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बायोपिक एक जीवनी से कहीं अधिक आगे और एक हैजिओग्राफी की तरह है. फिल्म पूरी तरह से एक ही दिशा में झुकी हुई है, जो एक व्यक्ति को कुछ विशेष चिह्नों, नारों और दृश्यों के इस्तेमाल के जरिए बहुत ऊंचा दर्जा प्रदान करता है.
शीर्ष अदालत ने 15 अप्रैल की सुनवाई में चुनाव आयोग को अपने पहले के आदेश पर फिर से विचार करने और बायोपिक देखने के बाद उसकी रिलीज पर देश भर में प्रतिबंध लगाने पर एक फैसला करने का निर्देश दिया था.
अदालत ने आयोग से यह रिपोर्ट फिल्म के निर्माताओं के साथ भी यह रिपोर्ट साझा करने को कहा था. चुनाव आयोग ने रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पीएम नरेंद्र मोदी फिल्म की पब्लिक स्क्रीनिंग की इजाजत चुनाव के आखिरी दिन 19 मई तक नहीं देनी चाहिए.’
आयोग ने कहा है कि फिल्म में नरेंद्र मोदी के किरदार की बड़ाई बेहद स्पष्ट है. यह किसी बायोपिक से कहीं ज़्यादा है. 135 मिनट की इस फिल्म में ऐसा राजनीतिक माहौल तैयार किया गया है, जो एक व्यक्ति को ‘कल्ट’ [Cult] का दर्जा दे देता है. फिल्म पूरी तरह से एक-आयामी है, जो एक व्यक्ति की बेहद तारीफ करते हुए उसे संत का दर्जा दे देती है.
मालूम हो कि चुनाव आयोग द्वारा फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने के फैसले के खिलाफ फिल्म के निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. फिल्म के निर्माताओं की ओर से उनके वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में दलील दी थी कि आयोग ने बिना फिल्म देखे इस पर रोक लगाने का फैसला किया है.
इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह फिल्म को देखकर फैसला करें कि क्या इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए या नहीं. बता दें कि यह फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर बनी है. लोकसभा चुनाव के दौरान फिल्म की रिलीज को लेकर विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था.
फिल्म पहले पांच अप्रैल और बाद में 11 अप्रैल को रिलीज होने थी लेकिन विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग में शिकायत के बाद चुनाव ख़त्म होने तक फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)