विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित दस शहरों में से सात शहर भारत से हैं. देश का हर शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य के लिए तय वायु प्रदूषण के सुरक्षित मानदंड से बाहर है. विश्व का हर दसवां अस्थमा का मरीज भारत से है, अगर अब भी नहीं जागे तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है.
अंकुर दिल्ली के ब्रजपुरी इलाके में रहने वाला कक्षा तीसरी का बच्चा है, जो दो सप्ताह से स्कूल नहीं गया. घर के दरवाजे पर बैठा रहता है और दूसरे बच्चों को जाते हुए देखता है. उसे सांस की कोई परेशानी है, जो हर साल ठंड के समय बढ़ जाती है. उसे अक्सर ही डॉक्टर के पास जाना पड़ता है.
इसी तरह विहान अपने माता-पिता के साथ पिछले वर्ष ही अमेरिका से दिल्ली आया है. वहां सब ठीक था, पर यहां आते ही, उसे कभी-कभी सांस लेने में तकलीफ होने लगी. इस सर्दी में उसे भी कई दिनों तक स्कूल से छुट्टी लेनी पढ़ी थी.
दोनों बच्चे दिल्ली अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले परिवार से हैं, पर दोनों ही एक ही प्रकार की समस्या का सामना कर रहे है, सांस लेने में परेशानी या अस्थमा. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले पांच वर्षों में भारत में अस्थमा की दवाई की बिक्री में लगभग पचास प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
आज विश्व का हर दसवां अस्थमा का मरीज भारत से है. अस्थमा जैसी बीमारियां बच्चों में तेजी से फैल रही है. एक अध्ययन के अनुसार 90% बच्चों और 5०% वयस्कों में अस्थमा का मुख्य कारण वायु प्रदूषण है.
वायु प्रदूषण आज भारत में महामारी की तरह फैल चुका है. विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित दस शहरों में से सात शहर भारत से हैं. भारत का हर शहर आज विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य के लिए तय वायु प्रदूषण के सुरक्षित मानदंड से बाहर है.
ऐसा नहीं है कि यह स्थिति सिर्फ शहरों की है, हमारे गांव की भी हवा में प्रदूषण का जहर बढ़ता जा रहा है, विशेषकर वह गांव जो शहर के पास हैं. हाल ही में प्रकाशित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (HEI) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण लगभग सात लाख लोग समय से पहले मृत्यु को प्राप्त हो गए.
एक वर्ष में सात लाख लोगों का सिर्फ एक ही कारण से मृत्यु को प्राप्त होना अत्यधिक चिंतनीय है. अगर हम सभी समय रहते नहीं जागे तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है.
एक सामान्य आदमी होने के नाते कभी-कभी हमें अखबारों में आए इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं होता है. सात लाख मौतें काफी बड़ा आंकड़ा है और हमने कभी अपने आस-पास यह नहीं सुना होता कि किसी की मौत वायु प्रदूषण से हो गई.
यही सबसे बड़ा कारण भी है जिसकी वजह से हम वायु प्रदूषण जैसे चिंतनीय विषय पर गंभीर नहीं है. हमें यहां समझाना जरूरी है कि वायु प्रदूषण कारक है जिसके कारण बीमारियां होती है और वही बीमारियां मौत का कारण बनती है.
यह किसी सड़क दुर्घटना की तरह है, जैसे दुर्घटना के कारण चोट लगती है और चोट मौत का कारण बनती है. पर चूंकि दुर्घटना हमारे सामने होती है और उसका समय भी काफी कम होता है तो हमें लगता है कि मौत का कारण दुर्घटना है.
वायु प्रदूषण भी ठीक उसी दुर्घटना की तरह है, फर्क सिर्फ इतना है कि सड़क पर हुई दुर्घटना का समय कुछ पल था जबकि यहां समय ज्यादा होता है कुछ महीने या वर्ष. यह एक ऐसा धीमा जहर है जो धीरे-धीरे आपको बीमार कर सकता है और जानलेवा भी हो सकता है.
वायु प्रदूषण का छोटे बच्चों पर प्रभाव सबसे ज्यादा होता है, चूंकि उनका श्वसन तंत्र पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता. इसी तरह घर के बूढ़ों और अस्थमा पीड़ित लोगों के लिए वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक होता है.
वायु प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों में दिल की बीमारी, हृदयाघात, फेफड़ों का कैंसर और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (फेफड़ों से संबंधित रोगों का एक समूह, जो सांस को अवरुद्ध करता है और इससे सांस लेने में मुश्किल होती है) जैसी बीमारी होने की संभावना ज्यादा होती है.
वायु प्रदूषण इतना भयावह है तो हमारे लिए यह समझना जरूरी है कि आखिर वायु प्रदूषण क्या है? वायु प्रदूषण का अर्थ है किसी अनचाहे तत्व का हमारी हवा में घुल जाना. जब हम सांस लेते है, तो वे अनचाहे तत्व हवा के साथ हमारे फेफड़ों और रक्त में जाने लगते हैं, जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियां होती हैं.
ये अनचाहे तत्व कुछ भी हो सकते हैं. ये गैस भी हो सकते हैं या अत्यधिक छोटे कण जो हमें खुली आंखों से दिखाई नहीं देते. इन तत्वों में महत्वपूर्ण तत्व होते हैं अत्यधिक छोटे कण, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में पार्टिकुलेट मेटर या पीएम 2.5 भी कहते हैं.
पीएम 2.5 का आकार 2.5 माइक्रो मीटर से कम होता हैं. माइक्रॉन, इंच, सेंटीमीटर और मीटर की तरह लंबाई मापने की एक इकाई होती हैं. एक इंच में लगभग 25,000 माइक्रॉन होते हैं. एक पीएम 2.5 के कण का आकार हमारे सिर के बाल की गोलाई से लगभग 30 गुना कम होता है.
पीएम 2.5 तथा अन्य वायु प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हवा में किसी भी प्रकार के पदार्थ को जलाने से निकलने वाले धुएं से आते हैं. वाहनों के इंजन में पेट्रोल और डीजल के जलने से धुआं निकलता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व होते हैं, जिनमें पीएम 2.5 भी एक है.
लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, मिट्टी का तेल तथा कचरा जलाने, फैक्ट्री, सिगरेट से निकलने वाले धुएं में पीएम 2.5 की मात्रा अत्यधिक होती है. अगर आप इनमें से किसी भी तरह के धुएं के संपर्क में आते हैं और आपको अचानक छींक, खांसी, आंख-नाक-गले और फेफड़ों में जलन होने लगे, तो इसके पीछे कारण पीएम 2.5 भी हो सकता है.
भारत में शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या दिनबदिन बढ़ती जा रही है. वाहनों, फैक्ट्री तथा कचरा जलाने से निकलने वाला धुआं शहरों में पीएम 2.5 का मुख्य स्रोत है.
ऐसा नहीं हैं कि शहर के ही लोग ही पीएम 2.5 से प्रभावित हो रहे हैं और गांवों में रहने वाले इससे सुरक्षित हैं. गांव में कई घरों में आज भी खाना लकड़ी, गोबर के उपलों या कचरे को जलाकर बनता है, जो पीएम 2.5 का बहुत बड़ा स्रोत है.
सरकार व अन्य संस्थाएं वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अपने स्तर पर प्रयासरत हैं. पर हम सभी द्वारा किए गए थोड़े बहुत प्रयास पीएम 2.5 के प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकते हैं. यदि हमें खुद को और अपने बच्चों को स्वस्थ देखना है, तो हमें हर स्तर अपने आसपास की हवा को सुरक्षित करने का प्रयास करना होगा.
(डॉ. अजय सिंह नागपुरे, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के वायु प्रदूषण विभाग के प्रमुख हैं.)