अक्षय कुमार के साथ प्रधानमंत्री मोदी के ग़ैर-राजनीतिक इंटरव्यू की तैयारी ज़ी न्यूज़ की संपादकीय टीम ने कराई. ज़ी की टीम ने शूट और पोस्ट प्रोडक्शन यानी एडिटिंग की. यह सीधा-सीधा पॉलिटिकल प्रोपेगैंडा है. ज़ी न्यूज़ के तैयार कंटेंट को एएनआई से जारी करवाकर सारे चैनलों पर चलवाया गया. क्या इन चैनलों को नहीं बताना था कि यह कटेंट किसका है?
अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया. लेकिन इंटरव्यू के लिए कैमरा किसका था? तकनीकी सहयोग किसका था? क्या इंंटरव्यू के अंत में किसी प्रोडक्शन कंपनी का क्रेडिट रोल आपने देखा?
इन सवालों पर बात नहीं हो रही है. क्योंकि इन पर बात होगी तो जवाबदेही तय होगी. सोचिए ग़ैर राजनीति के नाम आप दर्शकों के भरोसे के साथ इतनी बड़ी राजनीति हो गई.
क्विंट वेबसाइट ने सूत्रों के आधार पर लिखा है कि अक्षय कुमार से प्रधानमंत्री मोदी के गैर-राजनीतिक इंटरव्यू की तैयारी ज़ी न्यूज़ की संपादकीय टीम ने कराई. ज़ी की टीम ने शूट किया और पोस्ट प्रोडक्शन किया यानी एडिटिंग की.
जब सामग्री तैयार हो गई तो न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने जारी कर दिया, जिसे सारे चैनलों पर दिखाया गया. क्विंट की स्टोरी में ज़ी और एएनआई का पक्ष नहीं है.
यह सीधा-सीधा पॉलिटिकल प्रोपेगैंडा है. ज़ी न्यूज़ के तैयार कंटेंट को एएनआई से जारी करवाकर सारे चैनलों पर चलवाया गया. क्या सारे चैनलों को नहीं बताना था कि यह कटेंट किसका है? क्या एएनआई का है, जो इसे जारी कर रहा है?
अगर आप मीडिया के इतिहास से वाक़िफ़ हैं तो इन बातों से सतर्क हो जाना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी के घोर समर्थक हैं, तब तो आपको और भी सतर्क होना चाहिए.
क्या आप मोदी का सपोर्ट इसलिए करते हैं कि मीडिया आपकी आंखों में धूल झोंके. सपोर्ट आप करते हैं, मीडिया क्यों खेल करता है. इस देश में दूरदर्शन की काबिल टीम है. उसने क्यों नहीं शूट और एडिट किया? प्रधानमंत्री को सरकारी संस्थानों में भरोसा नहीं है?
वैसे एक पेशेवर के नाते बताना चाहूंगा कि अक्षय कुमार का बाल नरेंद्र का वीडियो वर्जन बहुत ही ख़राब शूट हुआ था. प्रधानमंत्री जहां बैठे हैं, उनके पीछे शीशे में टेक्निकल स्टाफ की छाया आ रही थी. बीच में कभी किसी का सिर, तो कभी किसी का हाथ आ जाता था.
इससे अच्छा तो दूरदर्शन के कैमरामैन शूट कर देते. कोई पूछने वाला नहीं है. विपक्ष में नैतिक बल नहीं है. डरपोक और कामचोर विपक्ष है. इस इंटरव्यू से संबंधित मूल सवाल उठने चाहिए थे.
क्या वाकई इसे ज़ी न्यूज़ की टीम ने शूट किया और इसकी एडिटिंग की? तो फिर यह ज़ी का प्रोग्राम हुआ. फिर यह बात क्यों नहीं ज़ाहिर की गई. क्या अंधेरे में रखकर सारे चैनलों को ज़ी न्यूज़ के बनाए कटेंट को दिखाने के लिए मजबूर किया गया?
क्या अब आगे भी सबको ज़ी न्यूज़ ही कटेंट सप्लाई करेगा? क्या यह इंटरव्यू पेड न्यूज़ के दायरे में नहीं आता है? ज़ी न्यूज़ के कई बिजनेस हैं. वह क्यों सारे चैनलों के लिए फ्री में कटेंट तैयार करेगा? क्या चुनाव बाद इसका लाभ मिलेगा
अक्षय कुमार अपनी टीम लेकर आते तो कोई बात नहीं थी. क्विंट की साइट पर ज़ी न्यूज़ की टीम की तस्वीर है. एक प्राइवेट चैनल के साथ मिलकर शूटिंग प्लान किया गया और एक दूसरी एजेंसी से सारे चैनलों के लिए जारी किया गया, मेरे हिसाब से यह अपराध है. नैतिक अपराध है.
भारत के प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि यह इंटरव्यू किसका था. ज़ी न्यूज़ का या एएनआई का. क्या सारे चैनलों ने एएनआई से पूछा कि इसे किसने शूट किया है? क्या ज़ी न्यूज़ प्रोपेगैंडा शूट कर, एडिट कर, सारे चैनलों को बांटेगा और सारे चैनल इसे चलाएंगे? क्या चैनलों में इतने भोले लोग काम करते हैं?
चुनाव आयोग स्वायत्त और निर्भीक संस्था की तरह काम नहीं कर रहा है. इस आयोग से उम्मीद बेकार है वरना पेड न्यूज़ का यह मामला बनता है. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और संपादकों का समूह चुप है. निंदा ही करता है. ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन का संगठन (एनबीएसए) है, उससे शिकायत कीजिए. वहां भी कुछ नहीं होगा.
भारत की बड़ी समाचार एजेंसी एएनआई का थॉमसन रॉयटर्स से करार है. सेना के अलग-अलग अंगों से रिटायर हुए अफसरों ने रॉयटर्स को पत्र लिखा है. बताया है कि उनकी भारतीय सहयोगी एएनआई ने सेना के राजनीतिकरण के खिलाफ़ बोलने की उनकी मंशा को बदनाम करने का प्रयास किया है.
उन्होने लिखा है कि हम मानते हैं कि एएनआई ने भारत की सत्ताधारी पार्टी की तरफ से उनके बयानों को गलत संदर्भ में पेश किया है. एएनआई ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है. 12 अप्रैल को 150 से अधिक सेना के अफसरों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा था. कहा था कि लोकसभा के चुनाव में सेना का राजनीतिकरण हो रहा है.
उस दिन एएनआई ने कहा कि इस पर हस्ताक्षर करने वाले दो पूर्व अफसर- पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल सुनीथ फ्रांसिस रोड्रिग्स और पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एनसी सूरी ने दस्तख़त से इनकार किया है और कहा है कि उनकी सहमति नहीं ली गई. यह ख़बर हर जगह छपी और दिखाई गई.
थॉमसन रॉयटर्स से पूछा गया है कि वह अपने साझीदार के संपादकीय आचरणों का मूल्यांकन कैसे करेंगे. स्क्रॉल पर इस न्यूज़ को विस्तार से पढ़ सकते हैं.
मीडिया में जो हो रहा है उसे आप भाजपा समर्थक या विरोधी के नाते खारिज मत कीजिए. मीडिया मोदी को चुनाव जितवाने में ही मदद नहीं कर रहा बल्कि चुनाव के बाद आपकी हार का इंतज़ाम कर रहा है.
मीडिया और अपने राजनीतिक समर्थन को अलग रखिए. आपकी आंखों के सामने जो बर्बाद हो रहा है, उस चमन को आखिरी बार ठीक से देख लो यारों. यह इतना भी मुश्किल सवाल नहीं कि आप पूछ न सकें. आपका यह डर भारत की जनता की हार है.
(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)