गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन संकट के आरोप में निलंबित किए गए डॉ. कफ़ील ख़ान का कहना है कि बच्चों की मौत के जिम्मेदार लोग खुले घूम रहे हैं. असली दोषी वे अधिकारी हैं जो बकाया भुगतान के लिए आपूर्तिकर्ताओं से पत्र की मांग कर रहे थे. डॉ. कफ़ील ने मामले को उत्तर प्रदेश के बाहर स्थानांतरित किए जाने की भी मांग की है.
पटना: साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मौत के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा निलंबित किए गए डॉ. कफ़ील ख़ान ने मंगलवार को इस मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की.
डॉ कफ़ील ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ अभियान के सिलसिले में बिहार आए हुए थे. वह बेगूसराय में सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार के पक्ष में प्रचार करने के बाद मंगलवार को पटना आए थे.
उन्होंने यहां पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं बीआरडी में बच्चों की मौत की सीबीआई जांच कराए जाने के साथ इस मामले को उत्तर प्रदेश के बाहर स्थानांतरित किए जाने की भी मांग करता हूं. इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोग खुले घूम रहे हैं. विभागीय जांच पिछले 18 महीनों से चल रही है जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मार्च 2018 में आदेश दिया था कि इसे तीन महीने के भीतर पूरा किया जाए.’
डॉ कफ़ील ने दावा किया, ‘हाईकोर्ट ने भी कहा कि मैं किसी भी चिकित्सा लापरवाही या भ्रष्टाचार का दोषी नहीं था और न ही मैं किसी भी तरह से निविदा प्रक्रिया में शामिल था. एक आरटीआई जांच ने यह भी स्थापित किया है कि सिलेंडर की कमी 54 घंटों तक जारी रही थी और मैंने अपने बच्चों को बचाने के लिए खुद ही सिलेंडर की व्यवस्था की थी.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे उस त्रासदी के लिए बलि का बकरा बनाया गया जो कि आपूर्तिकर्ता को बकाया भुगतान न करने के कारण ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति में कमी के कारण हुई थी. मैं मानता हूं कि असली दोषी वे अधिकारी हैं जो बकाया भुगतान के लिए आपूर्तिकर्ताओं से पत्र की मांग कर रहे थे.’
डॉ कफ़ील ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि जीडीपी का कम से कम तीन फीसदी स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया जाए.
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मौजूदा रिक्तियां लगभग 1.5 लाख होने की उम्मीद है और इसे शीघ्रता से भरने की जरूरत है.
बता दें कि साल 2017 के अगस्त महीने में गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के चलते 60 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी. हालांकि प्रशासन ने इस बात को स्वीकार नहीं किया कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन सिलेंडरों की वजह से हुई. उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि सात अगस्त (2017) से 60 बच्चों की मौत विभिन्न बीमारियों से हुई, इनमें से किसी भी बच्चे की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई.
मालूम हो कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 अगस्त की रात लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई थी जो 13 अगस्त की अल सुबह बहाल हो पायी. इस दौरान 10, 11 और 12 अगस्त को क्रमशः 23, 11 व 12 बच्चों की की मौत हुई.
हालांकि प्रदेश की योगी सरकार ने शुरू से ही ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत होने से इनकार किया.
सरकार का कहना था कि लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई जरूर बाधित हुई थी लेकिन जम्बो ऑक्सीजन सिलेण्डर की पर्याप्त व्यवस्था थी जिसके कारण किसी मरीज की मौत नहीं हुई. सरकार द्वारा गठित जांच समितियों ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में सरकार की ही बात तस्दीक की है.
इस मामले में डीएम द्वारा गठित जांच समिति और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित जांच समिति की संस्तुतियों के आधार पर ऑक्सीजन कांड के लिए पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र, नोडल अधिकारी एनएचएम 100 बेड इंसेफेलाइटिस वॉर्ड डॉ. कफ़ील ख़ान, एचओडी एनस्थीसिया विभाग एवं ऑक्सीजन प्रभारी डॉ. सतीश कुमार, चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल, सहायक लेखा अनुभाग उदय प्रताप शर्मा, लेखा लिपिक लेखा अनुभाग संजय कुमार त्रिपाठी, सहायक लेखाकार सुधीर कुमार पांडेय, ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनीष भंडारी और पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र की पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला को दोषी ठहराया गया था.
साल 2017 में 23 अगस्त को मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट आई जिसमें ऑक्सीजन संकट का ज़िक्र तक नहीं था.
मुख्य सचिव की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्रवाई की संस्तुति भी कर दी थी. कार्रवाई की ज़द में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य व उनकी पत्नी, दो चिकित्सक, एक चीफ फार्मासिस्ट और प्राचार्य कार्यालय के तीन बाबू और लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड आए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)