मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: आरटीआई के ज़रिये रेल मंत्रालय ने बताया है कि 2014-15 के दौरान जहां 3591 रेलगाड़ियों को रद्द किया गया था, वहीं 2017-18 के दौरान इसमें छह गुना की बढ़ोतरी हुई. इस दौरान 21,053 ट्रेनों को रद्द किया गया था.
नई दिल्ली: भारतीय रेल भारत की जीवन रेखा है. 81 मिलियन यानी कि 8.1 करोड़ यात्रियों को ढोने वाली भारतीय रेलवे चीन के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है. जाहिर है, भारतीय रेलवे का यह नेटवर्क कोई पांच साल में नहीं बना है.
भारतीय रेलवे के विकास की एक सतत प्रक्रिया रही है. मोदी सरकार ने रेलवे विकास को लेकर बहुत सारे दावे किए हैं. आइए, देखते है कि उन दावों की सच्चाई क्या है?
साल 2014-15 के दौरान भारतीय रेल में 135 दुर्घटनाएं हुईं. लेकिन धीरे-धीरे साल 2017-18 तक यह संख्या घटकर 73 हो गई, जैसा कि मंत्रालय द्वारा 28 नवंबर 2018 को दिए आरटीआई जवाब से पता चलता है.
तो क्या दुर्घटनाओं की संख्या में इसलिए कमी आई क्योंकि मोदी सरकार ने अपने प्रयासों से दुर्घटनाओं को रोक दिया या बेहतर तकनीक का इस्तेमाल हुआ? नहीं. दुर्घटनाओं की संख्या में आई कमी के पीछे एक अद्भुत बाजीगरी है.
ट्रेन कैंसिल, दुर्घटनाओं में कमी
26 दिसंबर 2018 को भारतीय रेलवे से मिली सूचना के मुताबिक, 2014-15 के दौरान जहां 3591 रेलगाड़ियों को रद्द (कैंसिल) किया गया था, वहीं 2017-18 के दौरान इसमें छह गुना की बढ़ोतरी हुई.
यानी 2017-18 के दौरान कैंसिल ट्रेनों की संख्या 21053 हो गई. इसका मतलब ये है कि यदि आप ट्रैक पर ट्रेन ही नहीं चलाते हैं, तो जाहिर है कि कोई दुर्घटना नहीं होगी. ये आंकड़े 26 दिसंबर 2018 को लोकसभा में राज्य मंत्री (रेलवे) राजेन गोहेन द्वारा दिए गए थे.
एक लिखित जवाब में उन्होंने संसद को बताया कि 2013-14 के दौरान भारतीय रेल में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या 8317 मिलियन यानी कि 831.7 करोड़ थी जो 2016-17 में घटकर 811.6 करोड़ हो गई है.
यानी, केवल तीन साल की अवधि में 20.1 करोड़ यात्रियों की कमी आई. इतना ही नहीं, द इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, 2017-18 में लगभग 30 फीसदी ट्रेनें देरी से चल रही थीं और यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है.
रेल ट्रैक नवीनीकरण का क्या हुआ
सरकार यह कह सकती है कि यात्री सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की वजह से ट्रेनें कैंसिल हुईं या देरी हुई. ऐसे में एक अलग किस्म का सवाल सामने आता है. रेल ट्रैक का नवीनीकरण रेलवे सिस्टम की सुरक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
लेकिन 4 फरवरी 2019 के आरटीआई जवाब से हमें एक निराशाजनक आंकड़ा मिलता है. हमारे रेलवे सिस्टम के बहुत महत्वपूर्ण हिस्से, रेल के नवीनीकरण का काम शुरू करने में तीन साल लगा दिए.
केवल वित्त वर्ष 2017-18 में भारतीय रेलवे ने 2009-10 मुकाबले ट्रैक नवीनीकरण का आंकड़ा पार किया. याद रहे कि भारतीय रेलवे के पास 117 लाख किलोमीटर से अधिक का नेटवर्क है. इसमें से कुछ काफी पुराने हो गए हैं, कुछ कमजोर हो गए हैं.
लेकिन मोदी सरकार ने उस दिशा में बहुत कम काम किया है. इसलिए अगर हम एक साल में 4000 किलोमीटर का नवीनीकरण करते हैं, तो यह कुल ट्रैक लंबाई का केवल 3.5 फीसदी है.
मोदी सरकार भले गतिमान, तेजस और वन्दे भारत एक्सप्रेस के नाम से ब्रांडिंग कर रही हो लेकिन ये सभी प्रीमियम ब्रांडेड ट्रेनें हैं. अधिकतम रद्द ट्रेनें पैसेंजर ट्रेनों की श्रेणी में आते हैं.
कितने नए ट्रैक बिछाए गए
एक अन्य कारक को रेलवे विकास का एक संकेत माना जा सकता है. केवल 2017-18 के दौरान ही लगभग 4087 किलोमीटर रेल ट्रैक का विद्युतीकरण किया गया और सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले तीन साल बर्बाद कर दिए.
रेल विकास का महत्वपूर्ण बिंदु नई रेल लाइनें बिछाना है. भारतीय रेलवे के पास एकल ट्रैक का एक विशाल नेटवर्क है. इसलिए, इसका दोहरीकरण करना एक मुख्य काम है.
लेकिन, मोदी सरकार ने इस दिशा में भी कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं की. 2016-17 में जहां इस सरकार ने 953 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई, वहीं यह आंकड़ा 2017-18 में घटकर 409 किलोमीटर रह गया.
अब मोदी शासन में प्रतिदिन औसतन 1.75 किलोमीटर ट्रैक बिछाने का दावा कोई बड़ी उपलब्धि तो नहीं मानी जा सकती है.
एलआईसी का निवेश कहां है?
पैसे के बिना कुछ नहीं हो सकता. तो सवाल है कि भारतीय रेल के विकास के लिए मोदी सरकार ने कहां से कितना पैसा जुटाया?
11 मार्च 2015 को प्रेस सूचना ब्यूरो, भारत सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि एलआईसी भारतीय रेलवे में अब तक का उच्चतम निवेश, 1.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने जा रही है और यह निवेश पांच वर्षों के भीतर होगा.
27 अक्टूबर 2015 को रेल मंत्रालय ने एलआईसी से 2000 करोड़ रुपये की पहली किस्त प्राप्त करने की बात स्वीकार की. इतने महत्वपूर्ण निवेश की वर्तमान स्थिति जानने के लिए हमने एक आरटीआई डाली.
27 फरवरी 2019 को हमें आईआरएफसी से जवाब मिला कि एलआईसी से अब तक इसे केवल 16200 करोड़ रुपये ही मिले हैं और 2018-19 के दौरान एलआईसी द्वारा एक भी रुपया जारी नहीं किया गया है.
यानी तय राशि का अब तक केवल 10.5 फीसदी ही जारी किया गया है. यहां पर एक बार फिर से मोदी सरकार के दावे की सच्चाई सामने आती है. प्रचार और जमीनी वास्तविकता के बीच एक बड़ा अंतर देखा जा सकता है.
विदेशी सहयोग कितना मिला?
मोदी सरकार ने रेलवे विकास के लिए कई देशों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. क्या उन समझौतों से अब तक कोई फायदा मिल पाया है?
अप्रैल 2015 में पीएम ने फ्रांस यात्रा के दौरान, फ्रांसीसी राष्ट्रीय रेलवे और भारतीय रेल मंत्रालय के बीच सेमी हाई स्पीड रेल और स्टेशन नवीकरण में सहयोग लेने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया.
हमने आज तक क्या हासिल किया है, इस पर मंत्रालय ने बताया कि उनके पास इसकी जानकारी नहीं है. मई 2015 में चीन की अपनी यात्रा के दौरान, मोदी जी ने भारतीय रेल मंत्रालय और चीन के बीच विशिष्ट सहयोग गतिविधियों को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.
हमने आज तक उस एमओयू से क्या हासिल किया है, कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. आज तक रेलवे विश्वविद्यालय, वडोदरा में एक अस्थायी व्यवस्था में चल रहा है.
(मोदी सरकार की प्रमुख योजनाओं का मूल्यांकन करती किताब वादा-फ़रामोशी का अंश विशेष अनुमति के साथ प्रकाशित. आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर यह किताब संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने लिखी है.)
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