आदिवासी बच्चों के लिए खुले एकलव्य स्कूलों की स्थिति बदहाल, कई राज्यों में शुरू भी नहीं हुए

मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: साल 2000-01 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने आदिवासी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय योजना शुरू की थी. हालांकि आरटीआई के ज़रिये खुलासा हुआ है कि कई राज्यों ने पैसे जारी होने के बाद भी अभी तक स्कूल चालू नहीं किया है.

(फोटो: फेसबुक)

मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: साल 2000-01 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने आदिवासी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय योजना शुरू की थी. हालांकि आरटीआई के ज़रिये खुलासा हुआ है कि कई राज्यों ने पैसे जारी होने के बाद भी अभी तक स्कूल चालू नहीं किया है.

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(फोटो: फेसबुक)

नई दिल्ली: सबका साथ, सबका विकास… प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का ये मूलमंत्र रहा है. लेकिन, क्या सचमुच ऐसा हुआ? मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं का विश्लेषण किया जाए तो यही पता चलता है कि नारों के शोर में विकास कहीं गुम हो गया है.

मसलन, इस एक खबर पर पहले नजर डालिए. इकोनॉमिक टाइम्स में 18 अप्रैल 2016 को प्रकाशित एक लेख में बताया गया कि देश भर के राजकीय आवासीय स्कूलों में 882 आदिवासी बच्चों की मौत हो गई. इस खबर के मायने क्या है?

इस खबर का एक महत्वपूर्ण अर्थ ये है कि विकास के पायदान पर सबसे पिछड़ा वर्ग, आदिवासी, सदियों से उत्पीड़न, धोखा, दगाबाजी का शिकार होता रहा है.

ये अलग बात है कि आदिवासियों के नाम पर अरबों रुपये की योजना बनाई जाती रही है, लेकिन उसका फायदा शायद ही कभी ग्राउंड लेवल तक पहुंचा हो. इसका एक शानदार उदाहरण है एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय.

यह केंद्र सरकार की योजना है. आइए, जानते हैं कि इस योजना के तहत पिछले पांच सालों में क्या-क्या हुआ, ताकि आप समझ सकें कि सबका साथ, सबका विकास जैसे नारों का असल मतलब इस देश के लिए और इस देश की राजनीति के लिए क्या है?

साल 2000-01 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने देश भर में विशेष रूप से भारत की जनजातीय आबादी (आदिवासी बच्चों) के लिए एक योजना शुरू की. इसके तहत, आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाने थे.

योजना का मकसद ये था कि जो आदिवासी हाशिये पर हैं और पिछड़ रहे हैं उन्हें एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय जैसे गुणवत्तापूर्ण स्कूल में पढ़ने का अवसर मिलेगा ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.

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कमोबेश ये स्कूल केंद्र सरकार के जवाहर नवोदय विद्यालय की तर्ज पर स्थापित किए गए. यह विद्यालय केंद्र सरकार द्वारा 100 फीसदी वित्त पोषित यानी कि पूरा पैसा केंद्र सरकार से जारी होता है.

हमने सूचना का अधिकार कानून के तहत एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की स्थिति को लेकर कुछ सवाल पूछे. मसलन, हमने पूछा कि केंद्र सरकार द्वारा उन स्कूलों की जमीनी हकीकत जानने के लिए कितनी नियमित या सरप्राइज दौरे किए गए.

अब देखिए कि इस सवाल का जवाब क्या मिलता है? साल 2018 तक, इस तरह का केवल एक निरीक्षण किया गया है और वह भी मध्य प्रदेश के सिंजोरा से प्राप्त भ्रष्टाचार की एक विशिष्ट शिकायत पर.

मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भी एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की स्थापना से संबंधित सूचना जुटाकर जब हमने आरटीआई के तहत जानकारी निकाली तो जो सूचनाएं मिलीं, वह आदिवासी समुदाय के प्रति सरकारों की उदासीनता का कच्चा-चिट्ठा साबित होता है. हम आपको राज्यवार इसकी जानकारी देते है:

अरुणाचल प्रदेश: मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, पांच ऐसे विद्यालय (ईएमआरएस) की मंजूरी मिली. 2017-18 तक 48.68 करोड़ रुपये जारी भी हुए, लेकिन अभी तक उनमें से किसी एक विद्यालय को भी कार्यशील यानी कि पढ़ने लायक नहीं बनाया जा सका है.

आंध्र प्रदेश: इस राज्य को पिछले पांच वर्षों के दौरान एक भी स्कूल नहीं मिला है. प्रदेश को 2012-13 के दौरान 10 स्कूल मिले थे, जो इस समय काम कर रहे हैं.

असम: पिछले पांच वर्षों के दौरान (मोदी सरकार के दौरान) तीन स्कूलों को मंजूरी दी गई और मार्च 2018 तक 12 करोड़ की राशि का वितरण किया गया, लेकिन इसमें से एक भी स्कूल आज तक शुरू नहीं हुआ है.

बिहार: 2014-15 के दौरान बिहार को दो स्कूल मिले. इस स्कूलों को स्थापित करने के लिए 32 करोड़ रुपये जारी किए गए, लेकिन एक भी स्कूल कार्यशील नहीं हो सका है.

गोवा: इस राज्य को केवल एक स्कूल की मंजूरी दी गई थी और चार करोड़ रुपये दिए गए थे. लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से परियोजना को वापस ले लिया गया था.

गुजरात: नरेंद्र मोदी के राज्य को पिछले पांच वर्षों में पांच नए स्कूलों की स्वीकृति मिली. सभी को कार्यात्मक दिखाया गया है. इसके लिए 40.4 करोड़ की राशि का वितरण किया गया है. लेकिन इन पांच स्कूलों में छात्रों की संख्या सिर्फ 299 है.

जम्मू कश्मीर: इस राज्य को योजना के तहत कुल छह स्कूल मिले हैं, लेकिन एक भी स्कूल अभी तक शुरू नहीं किया गया है.

झारखंड: यहां 13 स्कूलों को मंजूरी दी गई है. मार्च 2018 तक 130 करोड़ से अधिक की राशि का वितरण किया जा चुका है, लेकिन राज्य में भाजपा सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए एक भी स्कूल को कार्यात्मक नहीं बनाया जा सका है.

ओडिशा: इस राज्य को 11 स्कूलों की स्वीकृति मिली. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक मार्च 2018 तक कोई भी स्कूल कार्यशील नहीं था. लेकिन जनवरी 2019 में, यह बताया गया कि उनमें से पांच स्कूल अब कार्यशील हैं. हालांकि उन्हें राज्य के ईएमआरएस वेबसाइट पर तब तक दिखाया नहीं जा सका था.

कर्नाटक और केरल: यहां भी वही दुखद कहानी है. कर्नाटक के लिए आवंटित एक और केरल के लिए आवंटित दो स्कूल अभी शुरू नहीं हुए हैं.

इसी तरह, किसी भी उत्तर-पूर्वी राज्य ने एक भी एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय को कार्यशील बनाने में सफलता नहीं पाई है. बहरहाल, अकेले यह एक योजना सरकार की नीति और नीयत बताने के लिए काफी है, जिससे आप सबका साथ, सबका विकास जैसे नारो की सच्चाई को समझ सकें.

(मोदी सरकार की प्रमुख योजनाओं का मूल्यांकन करती किताब वादा-फ़रामोशी का अंश विशेष अनुमति के साथ प्रकाशित. आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर यह किताब संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने लिखी है.)

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