मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: इस अभियान का मुख्य उद्देश्य गांवों में सामाजिक सद्भावना को बढ़ाना, फसल बीमा योजना, मृदा कार्ड आदि के बारे में जानकारी देकर कृषि को बढ़ावा देना था.
नई दिल्ली: कभी ‘शाइनिंग इंडिया’ के नाम पर एक सरकार ने सिर्फ विज्ञापन पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए थे? अब इंडिया शाइनिंग हुआ या नहीं, कहना मुश्किल है.
लेकिन, मोदी सरकार ने कुछ उसी तर्ज पर ग्राम उदय से भारत उदय नाम का अभियान शुरू किया, जिसका वास्तव में न तो ग्राम उदय से और न भारत उदय से कोई लेना देना था. यह अभियान असल में सरकार के प्रचार का एक अनोखा तंत्र बन गया. कैसे? आइए इस पर चर्चा करते हैं.
14 अप्रैल 2016 को डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्यक्रम की शुरुआत मध्य प्रदेश के महू से की.
इस अभियान का मूल उद्देश्य था, आंबेडकर की दृष्टि से प्रेरित होकर गांवों में सामाजिक सद्भावना को बढ़ाना, फसल बीमा योजना, मृदा कार्ड आदि के बारे में जानकारी देकर कृषि को बढ़ावा देना, ग्राम सभा की बैठकों का प्रबंधन करना ताकि क्षेत्रीय विकास योजनाओं के लिए पैसे का सही उपयोग हो सके, इत्यादि.
अब, गांवों में सामाजिक सद्भाव की हालत क्या है, इससे हम सब वाकिफ हैं. जातीय और वर्गीय संघर्ष का स्वरूप देश की गांवों में कैसा है, इसे भी हम देख ही रहे हैं.
हम यह भी देख रहे हैं कि फसल बीमा योजना से किसानों का कितना फायदा हुआ. हमने इस पूरे अभियान की सच्चाई जानने के लिए आरटीआई का सहारा लिया. सूचना पाने के लिए हमें केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा, क्योंकि इस सूचना को देने से कई मंत्रालयों ने इनकार कर दिया था.
25 अक्टूबर 2018 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक पत्र से हमें यह पता चला कि यह अभियान पंचायती राज मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय एवं सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मिलकर चलाया था.
मंत्रालय ने 8.53 करोड़ रुपये पोस्टर ,पम्फलेट आदि छापने में लगा दिए. 12 नवंबर 2018 को दिए गए एक जवाब के अनुसार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विज्ञापनों और संबंधित प्रक्रियाओं पर 5.46 करोड़ रुपये का खर्च किया.
नौ नवंबर 2018 को प्राप्त जवाब के मुताबिक, पंचायती राज मंत्रालय ने 30.47 लाख रुपये रेडियो और टीवी के विज्ञापनों पर खर्च किए. 24 सितंबर 2018 के जवाब के अनुसार, पंचायती राज मंत्रालय ने समाचार पत्रों के विज्ञापनों के लिए 4.38 करोड़ और विभिन्न सामग्रियों की छपाई के लिए 4.58 लाख का खर्च किया है.
इसके अलावा, मंत्रालय ने 24 अप्रैल 2016 को जमशेदपुर में इस अभियान के समापन समारोह का आयोजन करने के लिए झारखंड सरकार को 96.6 लाख रुपये दिए हैं.
चूंकि, पंचायती राज मंत्रालय ने अन्य मंत्रालयों द्वारा किए गए खर्चों का विवरण देने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष जिम्मेदारी ली थी, लेकिन आज तक न तो कृषि मंत्रालय और न ही पेयजल मंत्रालय ने इस संबंध में सूचना दी है.
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर किए गए खर्चों का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए, हमने डीएवीपी में एक आरटीआई दायर की. वहां से मिले जवाब के अनुसार, इस अभियान के प्रचार के लिए लगभग 9.64 करोड़ रुपये रेडियो और टेलीविजन विज्ञापन पर खर्च किए गए.
कुल मिलाकर, हम यह मान सकते हैं कि लगभग 35 से 40 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किए गए. तो सवाल है कि इस खर्च का परिणाम या उपलब्धियां क्या हैं?
क्या आपको नहीं लगता है कि यह करदाताओं के पैसे का व्यर्थ खर्च था? क्या इस अभियान पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी ग्राम उदय हो सका?
(मोदी सरकार की प्रमुख योजनाओं का मूल्यांकन करती किताब वादा-फ़रामोशी का अंश विशेष अनुमति के साथ प्रकाशित. आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर यह किताब संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने लिखी है.)
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