‘सरकार हमें पानी-गंदगी की समस्याओं से आगे बढ़ने दे तो शिक्षा या दूसरी चीज़ों के बारे में सोचें’

ग्राउंड रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मीडिया के मुद्दे भले ही हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद आदि के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में दक्षिणी दिल्ली की संजय कॉलोनी के रहवासी रोज़ाना पानी की जद्दोजहद, सीवर व्यवस्था और बस्ती में साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए ही लड़ रहे हैं.

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संजय कॉलोनी (फोटो: मोहम्मद मेहरोज/द वायर)

ग्राउंड रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मीडिया के मुद्दे भले ही हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद आदि के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में दक्षिणी दिल्ली की संजय कॉलोनी के रहवासी रोज़ाना पानी की जद्दोजहद, सीवर व्यवस्था और बस्ती में साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए ही लड़ रहे हैं.

संजय कॉलोनी (फोटो: मोहम्मद मेहरोज/द वायर)
संजय कॉलोनी (फोटो: मोहम्मद महरोज़/द वायर)

वर्तमान चुनावों के संदर्भ में टीवी चैनलों के लिए भले ही हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, चौकीदार आदि सबसे ज़रूरी मुद्दे हों, पर देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसा इलाक़ा भी है जहां के क़रीब 70 हज़ार लोग पीने के पानी, गंदगी आदि से जुड़ी बुनियादी समस्याओं से आए दिन जूझ रहे हैं. यह इलाका संजय कॉलोनी है, जो दक्षिणी दिल्ली में आने वाले ओखला इंडस्ट्रियल एरिया का हिस्सा है.

1977 में बसी ये कॉलोनी दक्षिणी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में आती है. इस कॉलोनी के अंदर दाखिल होते ही एक ऐसी तस्वीर सामने आ जाती है, जो दक्षिण दिल्ली की धनाढ्य और संभ्रांत छवि से बिल्कुल उलट है.

दरअसल इस कॉलोनी के बाशिंदों के लिए चुनाव में क्या मुद्दे होंगे, इसे समझने के लिए किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं महसूस होती है, इसके लिए एक बार इस कॉलोनी की संकरी गलियों में दाख़िल होना ही काफी है. यहां गलियां इतनी तंग हैं कि एक साथ दो लोगों का चलना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है.

गलियों के बीच से बहती गंदी नालियां, नालियों पर भिनभिनाती मक्खियां और उससे सटकर बैठे लोग, खेलते बच्चे, जगह-जगह कचरे के ढेर, चारों तरफ फैली दुर्गंध… ये ऐसे दृश्य हैं जिन्हें एक बार देखने के बाद भुलाना बहुत मुश्किल है.

संजय कालोनी (फोटो मोहम्मद मेहरोज़ द वायर में इंटर्न)
(फोटो: मोहम्मद महरोज़/द वायर)

मकान इतने छोटे-छोटे और एक-दूसरे से इतने सटे हुए हैं कि कभी कोई हादसा होने की सूरत में इनमें रहने वाले लोगों का बच पाना असंभव-सा लगता है. यहां के ज़्यादातर लोग कतरन का काम करते हैं. यानी विभिन्न प्रकार के कपड़ों के कतरन थोक में लाकर उनकी सिलाई करते हैं.

इस बस्ती में हमारी मुलाक़ात बिरजू नायक से हुई, जो दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी नाम के एक छोटे-से दल की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं. वो इस कॉलोनी की समस्याओं पर सालों से आवाज़ उठाते रहे हैं.

उनका कहना है कि यहां के लोगों की सबसी बड़ी समस्याएं हैं पानी और गंदगी. उनका सीधा सवाल है कि ‘क्या हम ज़िंदगी भर पानी ही ढोते रहें’?

वे कहते हैं, ‘यहां बहुत सारी बुनियादी समस्याएं हैं जैसे पानी, सीवर, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि. संजय कॉलोनी को 1977 के आसपास बसाया गया था. हम रॉकेट उड़ाने की टेक्नोलॉजी और साइंस की बातें करते हैं लेकिन आप देशवासियों को पीने का पानी तक नहीं दिलवा सकते. मैं समझता हूं कि ये बहुत ही नाइंसाफी है.’

संजय कालोनी (फोटो संतोषी मरकाम)
(फोटो: संतोषी मरकाम/द वायर)

यहां एक पत्रकार लोकेश कुमार से भी मुलाकात हुई. वे ‘मजदूर एकता लहर’ नाम की एक पत्रिका के लिए लिखते रहते हैं. उन्होंने हमें बताया कि यहां हर चीज़ के लिए लड़ना पड़ता है.

वे कहते हैं, ‘यहां सुधार बोर्ड का एक शौचालय था जिसे 2006 में बंद कर दिया. उसका रखरखाव बहुत ही खराब था. उस समय हम शौचालय की मांग को लेकर तत्कालीन भाजपा विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी के पास गए थे. उन्होंने हमारा पर्चा फाड़कर फेंक दिया था और हमारे साथ रही करीब 20 महिलाओं के साथ बहुत ही अभद्र तरीके से बात की थी.’

उन्होंने आगे बताया, ‘उसके बाद 2006 से 2015 तक शौचालय के लिए हमने लगातार आंदोलन किया. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल तक को चिट्ठी लिखनी पड़ी. यहां की आबादी 60-70 हजार के करीब है. किसी के पास शौचालय नहीं था. महिलाएं पास में जो जंगल था वहां शौच के लिए जाती थीं. अभी यहां सिर्फ एक ही पब्लिक टॉयलेट है. अब भी लोग शौच के लिए खुले में जाने को मजबूर हैं. पास में एक और कॉलोनी है जहां 7-8 हज़ार की आबादी है, वहां पर भी एक ही पब्लिक टॉयलेट है.’

उनका आरोप है, ‘सत्ता में जो भी बैठे हों, वो इंसान को इंसान नहीं समझते, सिर्फ वोट बैंक समझते हैं. हम यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह जी रहे हैं.’

इस बस्ती में एक सरकारी स्कूल भी है, जिसे हमने देखना चाहा, लेकिन वहां के शिक्षकों ने कोई बात करने से मना कर दिया. यहां बच्चे नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे थे. बस हमें इतना बताया गया कि ये स्कूल दिल्ली सरकार के तहत नहीं आता है, बल्कि एमसीडी के तहत आता है.

स्थानीय लोगों से पता चला कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए टॉयलेट ज़रूर बनाया गया है लेकिन उसमें कभी पानी नहीं आता है क्योंकि टैंकर से ढोकर पानी लाना पड़ता है.

संजय कालोनी का सरकारी स्कूल (फोटो संतोषी मरकाम)
संजय कॉलोनी का सरकारी स्कूल (फोटो: संतोषी मरकाम/द वायर)

कॉलोनी में एक गंदी नाली के ठीक बगल में पानी भर रही रेखा ने बताया, ‘पानी नहीं आता, सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है. इतनी गंदगी फैली रहती है कि पैर रखने के लिए जगह नहीं होती. बच्चे बाहर नहीं आ सकते. हमेशा बीमार पड़ते रहते हैं.’

रेखा के घर में टॉयलेट है लेकिन पानी की व्यवस्था नहीं है. टैंकर से जो पानी आता है वही पानी भरकर टॉयलेट, नहाने-धोने, पीने और अन्य ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल करना पड़ता है.

यहां पर कतरन का काम करने वाले मोहम्मद यूसुफ़ ने बताया, ‘अगर कोई बीमार पड़ता है तो यहां कोई व्यवस्था नहीं है. दिल्ली सरकार मोहल्ला क्लीनिक चला तो रही है लेकिन यहां पर कोई मोहल्ला क्लीनिक नहीं है. छोटे-छोटे कमरों में ही काम और रहना सब चलता है.’

वे भी लोकेश की बात दोहराते से दिखते हैं, ‘यहां हर चीज़ के लिए रोज़ शिकायत करनी पड़ती है. अगर कोई जानवर भी मर जाता है तो उसके लिए लड़ना पड़ता है. तब जाकर कई दिनों बाद आकर उसे उठाते हैं. हमने यहां की समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखा, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता है.’

संजय कॉलोनी (फोटो मोहम्मद मेहरोज़))
(फोटो: मोहम्मद महरोज़/द वायर)

पिंटू कुमार यहां एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं, उनका कहना है, ‘हमारी दुकान के ठीक सामने कचरे का ढेर लगा रहता है. बेहद बदबू आती है. मैं रोज कचरा उठाने वालों से शिकायत करता हूं. इसके बाद अगर कभी कचरा उठाते भी हैं तो पूरा नहीं उठाते. हमें बहुत दिक्कत होती है. इसके अलावा स्वच्छता ऐप पर भी शिकायत करता हूं, लेकिन उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती. गलत लोकेशन की फोटो बताकर उसे ब्लॉक कर दिया जाता है.’

वे आगे कहते हैं, ‘यहां पिछले पांच साल से कच्ची नालियां हैं अगर थोड़ा बहुत भी बरसात आ जाए तो घरों में पानी घुस जाता है. इसकी कोई व्यवस्था नहीं है. सरकार हमें पानी और गंदगी से आगे बढ़ने ही नहीं देती कि हम शिक्षा के बारे में सोच सकें. सुबह उठते ही पानी के लिए लाइन में लगना पड़ता है. पहले पानी, फिर उसके बाद ही आगे के काम के बारे में सोचते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यहां के सांसद, विधायक या पार्षद ने कभी इस इलाके का दौरा नहीं किया. सिर्फ चुनाव के दौरान ही आना-जाना करते हैं. हम हाथ-पैर जोड़ते हैं लेकिन कोई हमारी बात नहीं सुनता.’

1987 से यहां रह रहे एक बुजुर्ग नागेश्वर सिंह, जिन्हें वहां के लोग ‘फाइटर मैन’ कह रहे थे, सुबह से पानी के लिए वहां बैठे हुए थे. उनका कहना है कि जब से वे यहां रह रहे हैं तब से यहां पानी और गंदगी की समस्या बनी हुई है, बल्कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘बिरजू नायक के नेतृत्व में सालों तक आंदोलन करने के बाद ढाई साल पहले घरों में सिर्फ पानी का पाइप बिछा दिया गया है लेकिन उसमें आज तक एक बूंद पानी नहीं आया. दिल्ली के किसी नेता ने आज तक हमें पानी नहीं दिया. जब भी हम मांगने जाते हैं तो कुछ न कुछ बहाना करते हैं.’

वे आगे कहते हैं, ‘इस कॉलोनी में आज तक डॉक्टर की सुविधा नहीं है. अगर कभी किसी को इमरजेंसी में अस्पताल ले जाने की ज़रूरत पड़े तो नहीं ले जा पाएंगे क्योंकि कचरा-कबाड़ के कारण सड़क पूरा बंद रहता है. बारिश में गंदा पानी भरा रहता है, कोई आ-जा नहीं सकता. ऐसे में क्या करें? हमें अस्पताल जाना होता है तो कालकाजी रोड तक पैदल जाना पड़ता है. अगर यहां कोई हादसा या आगजनी जैसी कोई दुर्घटना हो जाए तो दमकल के आने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है.’

उन्होंने बताया कि मेट्रो बनने से पहले उस इलाके में थोड़ा बहुत जंगल था, जहां लोग शौच के लिए जाते थे लेकिन अब उन्हें शौच के लिए बहुत दिक्कत हो रही है. इसके अलावा कुछ लोगों ने अपने घरों में टॉयलेट बनवा तो लिया लेकिन सीवर लाइन न होने की वजह से खुली गंदी नाली से उन्हें जोड़ दिया.

संजय कॉलोनी (फोटो संतोषी मरकाम)
(फोटो: संतोषी मरकाम/द वायर)

नागेश्वर सिंह ने बताया, ‘पीने के पानी के लिए हम 2005 से आंदोलन कर रहे हैं. टैंकर में पानी लाने की व्यवस्था खत्म हो जानी चाहिए क्योंकि इसमें बहुत सारी राजनीति होती है. आरटीआई से जो आंकड़े निकाले थे उसके मुताबिक सिर्फ संजय कॉलोनी को पानी आपूर्ति करने में हर साल 49.09 लाख रुपये खर्च होता है. हमारी मांग है कि जो खर्च टैंकर पर कर रहे हैं उसी पैसे से हमारे घरों में पाइप लाकर पानी दे सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दिन में एक ही बार टैंकर से पानी लाकर दिया जाता है. उस समय हजारों लोग सड़क पर जमा हो जाते हैं. तीन-चार घंटे लोग परेशान होते हैं. पानी के लिए लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं. इसे लेकर हम शीला दीक्षित से मिले, अरविंद केजरीवाल से मिले, लेकिन अभी तक इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई.’