पीएमओ द्वारा रफाल सौदे की निगरानी को दख़ल के तौर पर नहीं देखा जा सकता: केंद्र

रफाल सौदे को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका के संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफ़नामा दायर कर कहा गया कि अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट्स से सौदे पर पुनर्विचार करने का आधार नहीं बनता.

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Bengaluru: French aircraft Rafale manoeuvres during the inauguration of the 12th edition of AERO India 2019 air show at Yelahanka airbase in Bengaluru, Wednesday, Feb 20, 2019. (PTI Photo/Shailendra Bhojak) (PTI2_20_2019_000068B)
रफाल विमान. (फोटो: पीटीआई)

रफाल सौदे को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका के संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफ़नामा दायर कर कहा गया कि अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट्स से सौदे पर पुनर्विचार करने का आधार नहीं बनता.

Bengaluru: French aircraft Rafale manoeuvres during the inauguration of the 12th edition of AERO India 2019 air show at Yelahanka airbase in Bengaluru, Wednesday, Feb 20, 2019. (PTI Photo/Shailendra Bhojak) (PTI2_20_2019_000068B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: रफाल सौदे के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफ़नामा दाख़िल कर केंद्र की मोदी सरकार ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा सौदे की निगरानी को समानांतर बातचीत या दख़ल के तौर पर नहीं देखा जा सकता.

बीते साल 14 दिसंबर को रफाल सौदे के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर एक पुनर्विचार याचिका पर शनिवार को सुनवाई हुई. बीते 14 दिसंबर को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रफाल सौदे में जांच की मांग वाली सभी याचिकाएं ख़ारिज कर दी थीं और कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को भी ठुकरा दी थी.

इसके बाद बीते 21 फरवरी को रफाल सौदे को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया था. रफाल सौदे की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली अपनी याचिका खारिज होने के बाद, पूर्व मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ-साथ वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले की समीक्षा की मांग की थी.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार के हफलनामे को पढ़ते हुए कहा, ‘पीएमओ द्वारा रफाल सौदे की निगरानी को उसमें हस्तक्षेप या समानांतर बातचीत नहीं कही जा सकती है. उस समय के रक्षामंत्री ने फाइल में रिकॉर्ड किया था कि ऐसा लगता है कि पीएमओ और फ्रांसीसी राष्ट्रपति कार्यालय उन मुद्दों की प्रगति की निगरानी कर रहे थे, जो एक बैठक का नतीजा थी.’

पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ में सीजेआई रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ भी शामिल हैं.

केंद्र की ओर से यह भी दावा किया गया है कि फ्रांस से 36 रफाल विमानों की ख़रीद को बरक़रार रखने का शीर्ष अदालत का फैसला सही था. यह भी कहा गया कि अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट्स और आंतरिक फाइल में दर्ज बातों को एक ख़ास तरीके से सामने रखने से सौदे पर पुनर्विचार करने का आधार नहीं बनता.

सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में अगली सुनवाई छह मई को करेगी.

बता दें कि ‘द हिंदू’ अख़बार ने बीते फरवरी माह में दावा किया था कि फ्रांस की सरकार के साथ रफाल समझौते को लेकर रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ पीएमओ भी समानांतर बातचीत कर रहा था.

रिपोर्ट के अनुसार, 24 नवंबर, 2015 के रक्षा मंत्रालय के एक पत्र के ज़रिये इस घटनाक्रम को तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के संज्ञान में लाया गया था. इस पत्र में कहा गया, ‘हमें पीएमओ को सलाह देनी चाहिए कि कोई भी अधिकारी जो इस सौदे के लिए भारत की ओर से वार्ताकार टीम का हिस्सा नहीं है, उसे फ्रांस सरकार के अधिकारियों के साथ समानांतर वार्ता से दूरी बनाए रखनी चाहिए.’

रक्षा मंत्रालय के नोट के मुताबिक, पीएमओ की ओर से यह समानांतर बातचीत फ्रांस की वार्ताकार टीम के प्रमुख जनरल स्टीफन रेब के 23 अक्टूबर 2015 को लिखे पत्र से सामने आई.

मालूम हो कि सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे. इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. 26 जनवरी 2016 को जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत आए थे तब इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे.

आरोप लगे हैं कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया.

यह विवाद इस साल सितंबर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि रफाल करार में भारतीय कंपनी (रिलायंस डिफेंस) का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.