सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने जस्टिस एसए बोबडे की जांच समिति को पत्र लिखकर कहा कि मुझे रिपोर्ट पाने का अधिकार है. जिस तरह से सीजेआई को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में रिपोर्ट की एक कॉपी दी गई उसी तरह से मुझे भी एक कॉपी पाने का अधिकार है.
नई दिल्ली: सीजेआई यौन उत्पीड़न मामले की शिकायतकर्ता ने जस्टिस एसए बोबडे की जांच समिति को पत्र लिखकर सीजेआई रंजन गोगोई को क्लीनचिट देने वाली जांच रिपोर्ट की कॉपी की मांग की है.
लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने लिखा, ‘मुझे रिपोर्ट पाने का अधिकार है. उसके साथ ही अगर समिति ने किसी गवाह या व्यक्ति का बयान दर्ज किया है या किसी अन्य सबूत पर विचार किया है तो मुझे उसे भी पाने का अधिकार है. इसके अलावा मीडिया द्वारा की गई रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह से सीजेआई को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में रिपोर्ट की एक कॉपी दी गई उसी तरह से किसी भी हालात में मुझे भी एक कॉपी पाने का अधिकार है.’
उन्होंने लिखा, ‘कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निवेष एवं निवारण) अधिनियम 2013 की धारा 13 के तहत दोनों पक्षों को रिपोर्ट की कॉपी पाने का अधिकार है.’
शिकायतकर्ता ने लिखा, ‘इसके साथ ही फैसले में 2003 के जिस इंदिरा जयसिंह बनाम भारत सरकार के फैसले को आधार बनाया गया है वह सूचना के अधिकार कानून के पहले का है. वहीं संपत्ति की घोषणा मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की फुल बेंच के आदेश के अनुसार भी ऐसी रिपोर्ट देश के किसी भी नागरिक के लिए आरटीआई के तहत उपलब्ध होनी चाहिए.’
उन्होंने लिखा, ‘इन परिस्थितियों में मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि मुझे रिपोर्ट की एक कॉपी उपलब्ध करवाई जाए क्योंकि मुझे जानने का अधिकार है कि कैसे, क्यों और किस आधार पर आप माननीयों ने मेरी शिकायत में कोई दम नहीं पाया.’
इससे पहले शिकायतकर्ता ने न्यायालय की आंतरिक समिति द्वारा सोमवार को सीजेआई को क्लीनचिट दिए जाने पर कहा था कि वह बेहद निराश और हताश हैं.
उन्होंने कहा था कि भारत की एक महिला नागरिक के तौर पर उनके साथ घोर अन्याय हुआ है और उनका सबसे बड़ा डर सच हो गया तथा देश की सर्वोच्च अदालत से न्याय की उनकी उम्मीदें पूरी तरह खत्म हो गई हैं.
महिला ने प्रेस के लिए एक बयान जारी कर कहा था कि वह अपने वकील से परामर्श कर आगे के कदम के बारे में फैसला करेंगी. उन्होंने कहा था, ‘आज, मैं कमजोर और निरीह लोगों को न्याय देने की हमारी व्यवस्था की क्षमता पर विश्वास खोने के कगार पर हूं….’
महिला ने कहा था कि समिति ने वकील को उनके साथ आने देने और कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग वाली उनकी याचिका को भी खारिज कर दिया था.
उन्होंने कहा था कि उन्हें मीडिया से पता चला कि प्रधान न्यायाधीश अपना बयान दर्ज कराने के लिये समिति के समक्ष पेश हुए लेकिन इस बात की जानकारी नहीं है कि आरोपों से अवगत अन्य लोगों को समिति के समक्ष बुलाया गया या नहीं.
वहीं इस पर 300 से अधिक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने यौन उत्पीड़न के आरोपों पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई क्लीनचिट देने के फैसले की आलोचना की और इसे खारिज कर दिया.
कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को सर्वोच्च संवैधानिक संस्था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सत्ता का घृणित दुरुपयोग करार दिया.
एक प्रेस रिलीज में कार्यकर्ताओं ने लिखा, ‘आज हम सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता के अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं. मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत से निपटने में, अदालत शिकायतकर्ता की निष्पक्ष सुनवाई करने में विफल रही है.’
वहीं इस मामले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को दी गई क्लीनचिट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के बाहर इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को मंगलवार को हिरासत में ले लिया गया.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कुल 52 महिलाओं और तीन पुरुषों को सुबह 10.45 बजे से हिरासत में लिया गया है और पुलिस ने बताया है कि उन्हें ‘ऊपर से आदेश’ आने के बाद रिहा किया जाएगा.
एनी राजा, अंजलि भारद्वाज, मायाराव, गौतम मोदी, नंदिनी राव, नंदिनी सुंदर, वाणी जैसे कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया है. विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के बाहर घारा 144 लगा दिया गया है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था.
35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं. उनका कहना है कि चीफ जस्टिस द्वारा उनके साथ किए ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ का विरोध करने के बाद से ही उन्हें, उनके पति और परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
(महिला शिकायतकर्ता केपूरे पत्र को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)