छत्तीसगढ़ में सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में राज्य के आदिवासियों की स्थिति, मानवाधिकार हनन और नक्सल समस्या को लेकर सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे.
छत्तीसगढ़ सरकार ने रायपुर केंद्रीय कारागार की सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे को निलंबित कर दिया है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक डोंगरे को अनुशासनहीनता के चलते निलंबित कर दिया गया है. गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले डोंगरे की एक कथित फेसबुक पोस्ट पर विवाद हो गया था.
Raipur Central Jail deputy jailer Varsha Dongre suspended for indiscipline after her FB post on alleged police torture of minor tribal girls
— ANI (@ANI) May 6, 2017
डोंगरे ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में राज्य के आदिवासियों की स्थिति, मानवाधिकार हनन और नक्सल समस्या को लेकर सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे.
जेल विभाग के उप महानिरीक्षक केके गुप्ता ने बताया कि जेल विभाग ने केंद्रीय जेल रायपुर में पदस्थ सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे को निलंबित कर दिया है.
गुप्ता ने बताया, डोंगरे बगैर अनुमति लिए कार्यस्थल से गैरहाजिर है. वहीं फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के मामले में उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसका जवाब उन्होंने अभी तक नहीं दिया है. राज्य शासन ने सरकारी कर्मचारियों द्वारा सोशल मीडिया में पोस्ट करने को लेकर दिशा निर्देश जारी किया था, डोंगरे ने इन निर्देशों का भी पालन नहीं किया है.
जेल विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनके विभाग को जानकारी मिली थी कि डोंगरे ने सोशल मीडिया पर नक्सली समस्या को लेकर कथित रूप से आपत्तिजनक पोस्ट किया है. जानकारी मिलने के बाद जेल विभाग ने उप जेल अधीक्षक आर आर राय को मामले की जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी.
उन्होंने बताया कि जांच अधिकारी ने महिला जेल अधिकारी को नोटिस जारी कर दो दिन में स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन डोंगरे ने इस मामले में कोई जवाब नहीं दिया और बगैर छुट्टी लिए कार्यस्थल से गैरहाजिर हैं.
गुप्ता ने बताया कि जेल नियमावली के तहत कोई भी कर्मचारी सक्षम प्राधिकारी को बगैर सूचना दिए गैरहाजिर नहीं रह सकता है.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में हाल ही में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के दल पर हमला कर दिया था. इस हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे.
बताया जाता है कि जेल अधिकारी डोंगरे ने इसके बाद फेसबुक में नक्सली समस्या को लेकर कथित रूप से पोस्ट किया था. हालांकि बाद में उन्होंने अपना पोस्ट हटा लिया था.
वर्षा डोंगरे का फेसबुक पोस्ट:
मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जाएगी. घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं. भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है.
लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना, उनको जल, जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाएं नक्सली हैं या नहीं, इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है.
टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान अनुसार 5वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता, आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन को हड़पने का. आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है, नक्सलवाद खत्म करने के लिए..? लगता नहीं.
सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं, जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है.
आदिवासी जल, जंगल, जमीन खाली नहीं करेंगे, क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं. लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी मामलों में चारदीवारी में सड़ने भेजा जा रहा है, तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाएं?
ये सब मैं नहीं कह रही सीबीआई रिपोर्ट कहती है, सुप्रीम कोर्ट कहती है, जमीनी हकीकत कहती है, जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार, उन्हें फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है.
अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है, तो सरकार इतना डरती क्यों है, ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता.
मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था, उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था, जिसके निशान मैंने स्वयं देखे, मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किसलिए. मैंने डॉक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा.
हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें, इसलिए सभी को जागना होगा. राज्य में 5वीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जाए.
आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं, हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक, पूंजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझें. किसान जवान सब भाई-भाई हैं, अतः एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है, इसलिए न्याय सबके साथ हो.
हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई, प्रलोभन रिश्वत का ऑफर भी दिया गया, वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छग के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का पैरा 69 स्वयं देख सकते हैं. लेकिन हमने इनके सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई, आगे भी होगी.
अब भी समय है, सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इंसानियत ही खत्म कर देंगे, ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे, जय संविधान, जय भारत.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)