पूर्वी उत्तर प्रदेश की आम्बेडकरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद हरिओम पांडेय का टिकट काटकर प्रदेश सरकार में मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को प्रत्याशी बनाया है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश की आम्बेडकरनगर लोकसभा सीट प्रदेश की उन कुछ सीटों में से एक है, जिन पर भाजपा राम लहर में भी कमल नहीं खिला पाई थी. 1991 में राम लहर के रथ पर सवार होने के बावजूद उसके प्रत्याशी बेचनराम जनता दल के रामअवध से बेहद मामूली अंतर से हार गए थे.
यही कारण है कि 2014 में मोदी लहर ने जब अपना यह अरमान पूरा किया तो उसे दलितों व पिछड़ों के इस गढ़ में उसके बड़े चमत्कार के रूप में देखा गया. ऐसा इसलिए क्योंकि क्षेत्र का जातीय समीकरण तक उसके प्रत्याशी हरिओम पांडेय के अनुकूल नहीं था.
अब 2019 में इस क्षेत्र में बार-बार एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि बदली हुई परिस्थितियों में यहां फिर कमल खिल सकेगा क्या?
आम लोगों के लिए इसका जवाब हां में देना इसलिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि 2014 में जीते भाजपा प्रत्याशी हरिओम पांडेय खुद को पार्टी की अंदरूनी राजनीति में फिट नहीं कर पाए तो उसने इस चुनाव में उनका टिकट काटकर प्रदेश सरकार के मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को थमा दिया है.
मुकुट बिहारी दूर बहराइच जिले के यानी बाहरी हैं और भाजपा ने जातीय समीकरणों के तहत उन्हें इस सीट से उतारा तो एक तरह से मान लिया कि जिस मोदी लहर, जिसके बूते 2014 में उसने हरिओम पांडेय की जीत पक्की कर ली थी, थम गई है और सामान्य हालात में जातीय समीकरण टूटेंगे नहीं.
ऐसे में मुकुट बिहारी के स्वजातीय कुर्मी मतदाता बहुत काम आएंगे और वे सपा-बसपा गठबंधन के बसपाई प्रतिद्वंद्वी रितेश पांडेय पर भारी पड़ेंगे.
इसे लेकर गठबंधन के नेता कह रहे हैं कि भाजपा ने तो मैदान में उतरने से पहले ही हार स्वीकार कर ली है. वे कहते हैं कि एक तो चमत्कार रोज़-रोज़ नहीं होते और दूसरे भाजपा की 2014 वाली काठ की हांडी दोबारा नहीं चढ़ने वाली.
भाजपा के पांच साल के मोदी-योगी राज में आम्बेडकरनगरवासी लगातार खुद को छला हुआ महसूस करते रहे हैं. लेकिन भाजपा ने मायावती की सरकार में मंत्री रहे कद्दावर बसपा नेता धर्मराज निषाद को अपने पाले में लाकर अपने समर्थकों का उत्साह बढ़ा दिया है.
क्षेत्र में ग्रामीण मतदाताओं की बहुतायत है और प्रचार की अवधि ख़त्म हो जाने के बावजूद उन्होंने अपना मन नहीं खोला है. इससे दोनों प्रतिद्वंद्वी खेमों में बेचैनी है.
वैसे कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के पर्चा खारिज हो जाने के कारण उनके मुकाबले से बाहर होने के बाद मुख्य मुकाबला गठबंधन प्रत्याशी रितेश पांडेय व भाजपा प्रत्याशी मुकुट बिहारी वर्मा के बीच ही है.
पिछले चुनाव में सपा व बसपा प्रत्याशियों को मिले वोटों के जोड़ के आधार पर गठबंधन के लोग अपनी जीत पक्की मान रहे हैं.
बता दें कि पिछले चुनाव में यहां बसपा के राकेश पांडेय को 2,92,675 और सपा के राममूर्ति वर्मा को 2,34,467 वोट मिले थे जबकि भाजपा के हरिओम पांडेय 4,32,104 वोट पाकर जीते थे.
दूसरी ओर भाजपा कहती है कि चुनाव आंकड़ों से नहीं, उत्साह से जीते जाते हैं. उसका दावा है कि यहां अंदर ही अंदर सपा के स्थानीय नेता ही नहीं चाहते कि बसपा के रितेश पांडेय जीतें.
वे जीते और गठबंधन ने लंबी उम्र पाई तो इन नेताओं को अपने राजनीतिक भविष्य के अंधेरे में गुम हो जाने का अंदेशा है. लेकिन भाजपा के इस दावे के विपरीत जमीन पर सपा के वोटों के बसपा प्रत्याशी को ट्रांसफर होने में कोई बाधा नहीं दिखाई दे रही.
चौराहों की बहसों में गठबंधन समर्थक नोटबंदी, जीएसटी व राफेल आदि की चर्चा कर रहे हैं, तो भाजपा समर्थकों का कहना है कि केंद्र में सपा-बसपा या रालोद की सरकार नहीं बननी. उनके प्रत्याशी जीत भी जाएं तो पिछलग्गू बनकर ही रहेंगे. आम्बेडकरनगर की जनता ऐसे पिछलग्गुओं को नहीं चुनने वाली.
प्रसंगवश, यह लोकसभा सीट सपा के राजनीतिक आराध्य डाॅ. राम मनोहर लोहिया की जन्मभूमि तो है ही, अरसे तक बसपा सुप्रीमो मायावती की कर्मभूमि रही है.
2009 के लोकसभा चुनाव के पहले, जब इसका नाम अकबरपुर था और यह अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित थी, मायावती 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों में इसका प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.
इस सीट ने 29 सितम्बर, 1995 को आम्बेडकरनगर जिले के गठन के बाद उसके नामकरण को लेकर सपाइयों-बसपाइयों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी देखी गई है. दरअसल, तब सपाई इसका नाम डाॅ. लोहिया के नाम पर रखना चाहते थे, लेकिन मायावती ने इसे आम्बेडकरनगर नाम से जिला बनाया था. 2008 में हुए नए परिसीमन के बाद 2009 के चुनाव से यह आम्बेडकरनगर नाम से सामान्य सीट हो गई है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)