मध्य प्रदेश: क्या कांग्रेस मालवांचल में विधानसभा चुनाव में मिली सफलता दोहरा पाएगी?

मध्य प्रदेश के मालवांचल की आठ सीटों- देवास, धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, मंदसौर, रतलाम और उज्जैन पर 19 मई को मतदान है. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ये सभी सीटें जीतकर इतिहास रचा था, लेकिन विधानसभा चुनावों में पार्टी को इस क्षेत्र से ज़ोरदार झटका लगा था.

Chitrakoot: Congress President Rahul Gandhi with MPCC President Kamal Nath (2nd L), party MP Jyotiraditya Scindia (3rd R) and other leaders during a public meeting in Chitrakoot, Thursday, Sept 27, 2018. (AICC Photo via PTI) (PTI9_27_2018_000139B)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया. (फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश के मालवांचल की आठ सीटों- देवास, धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, मंदसौर, रतलाम और उज्जैन पर 19 मई को मतदान है. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ये सभी सीटें जीतकर इतिहास रचा था, लेकिन विधानसभा चुनावों में पार्टी को इस क्षेत्र से ज़ोरदार झटका लगा था.

Chitrakoot: Congress President Rahul Gandhi with MPCC President Kamal Nath (2nd L), party MP Jyotiraditya Scindia (3rd R) and other leaders during a public meeting in Chitrakoot, Thursday, Sept 27, 2018. (AICC Photo via PTI) (PTI9_27_2018_000139B)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया. (फोटो: पीटीआई)

मालवांचल भौगोलिक ही नहीं, राजनीतिक दृष्टि से भी मध्य प्रदेश का एक अहम हिस्सा है. कहते हैं कि प्रदेश की सत्ता मालवांचल से होकर ही निकलती है. जिसे मालवांचल में बढ़त मिलती है, सत्ता के सिंहासन पर ताजपोशी उसी की होती है.

इसका कारण यह भी है कि छह भागों में विभाजित मध्य प्रदेश की सबसे अधिक विधानसभा और लोकसभा सीटें इसी अंचल से आती हैं.

लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण में हैं. प्रदेश में भी तीन दौर का मतदान हो चुका है. आखिरी दौर का मतदान मालवांचल की ही आठ सीटों पर होना है. देवास, धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, मंदसौर, रतलाम और उज्जैन सीटों पर 19 मई को मतदान है.

2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ये सभी सीटें जीतकर इतिहास रचा था. लेकिन इस बार प्रदेश की राजनीति के समीकरण बदले हुए हैं. कांग्रेस सत्ता में है. विधानसभा चुनावों में भाजपा को मालवांचल से जोरदार झटका मिला है.

2014 में वह ये सभी सीटें कम से कम एक लाख से अधिक मतों से जीती थी. पर अब आठ में से चार सीटों पर पिछड़ गई है और बाकी चार पर भी बढ़त का अंतर कम हुआ है. मतलब कि मुकाबला 4-4 की बराबरी पर है.

देवास में 39871, धार में 220070, खरगोन में 9572 और रतलाम में 29190 मतों से भाजपा पिछड़ गई है. जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में यही सीटें उसने क्रमश: 260313, 104328, 257879 और 108447 मतों के अंतर से जीती थीं.

इंदौर, खंडवा, मंदसौर और उज्जैन में भाजपा बढ़त में तो रही है लेकिन नुकसान यहां भी उठाना पड़ा है. 2014 में 466901 मतों से जीती इंदौर सीट पर अब उसकी बढ़त घटकर 95130 रह गई है. इसी तरह खंडवा में 259714 से घटकर 72537, मंदसौर में 303649 से 77593 और उज्जैन में 309663 से घटकर 69922 रह गई है.

लेकिन यदि विधानसभा सीटों की जीत की गणना के हिसाब से देखें तो कांग्रेस बढ़त में दिखती है. एक लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभाएं हैं. धार (6-2), खंडवा (4-3), खरगोन (6-1), रतलाम (5-3) और उज्जैन (5-3) में कांग्रेस आगे है. देवास (4-4) और इंदौर (4-4) में मुकाबला बराबरी का है. केवल एक मंदसौर में भाजपा 7-1 से आगे है. कुल मिलाकर यह समीकरण तो कांग्रेस के पक्ष में हैं.

इसीलिए अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. नतीजतन आठ में से छह सीटों पर पार्टी ने नए चेहरे दिए हैं. मौजूदा दो ही सांसदों को दोहराया गया है.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ खंडवा से भाजपा उम्मीदवार नंदकुमार सिंह चौहान. (फोटो साभार: फेसबुक)
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ खंडवा से भाजपा उम्मीदवार नंदकुमार सिंह चौहान. (फोटो साभार: फेसबुक)

अंतिम दौर के इस चुनाव में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और कांतिलाल भूरिया और यूपीए सरकार में मंत्री रहीं मीनाक्षी नटराजन जैसे बड़े नामों का भविष्य दांव पर है.

2009 के लोकसभा चुनावों में मालवा की इन 8 सीटों में से 6 कांग्रेस ने जीती थीं. इसलिए 2018 के विधानसभा चुनावों में मालवा में मिली बढ़त से कांग्रेस को वही प्रदर्शन फिर से दोहराने की उम्मीद है.

गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन से पूरी बाजी ही पलट दी थी. 2013 के विधानसभा चुनावों में उसे 66 में से केवल 9 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 55 सीटें. 2018 में कांग्रेस को सीधा 26 सीटों का फायदा हुआ और उसकी संख्या 35 पर पहुंच गई. जबकि भाजपा खिसक कर 28 पर आ गई थी.

इन आठ में से पांच आरक्षित सीटें हैं. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान मालवांचल की जिन चार सीटों पर बढ़त बनाई है, वे चारों ही आरक्षित हैं.

वहीं, अगर इन सीटों पर किसी पार्टी के दीर्घकालीन प्रभाव पर बात करें तो इंदौर सीट 1989 से भाजपा के पास है. इस दौरान 8 लोकसभा चुनाव हुए हैं.

मंदसौर सीट पर भी 1989 से हुए 8 चुनावों में 7 बार भाजपा जीती है केवल 2009 में कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन ने जीत दर्ज की थी. कुछ ऐसा ही हाल उज्जैन का है.

1989 से अब तक केवल 2009 में ही भाजपा हारी थी. वहीं, खरगोन और खंडवा भी भाजपा के प्रभाव वाली सीटें हैं. खरगोन में 1989 से 9 चुनाव हुए, 7 भाजपा जीती और खंडवा में इस दौरान 8 चुनाव हुए, 6 में भाजपा जीती है.

इस तरह पांच सीटें भाजपा के प्रभाव क्षेत्र वाली हैं जिनमें इंदौर उसका सबसे मजबूत किला है. वहीं, रतलाम कांग्रेस का सबसे मजबूत किला है जिसे वह 1980 से फतह करती आ रही है.

इस दौरान हुए 11 में से 10 चुनाव उसने जीते हैं. 2014 में उसे भाजपा से हार भी मिली तो इसलिए क्योंकि उसके पांच बार के सांसद दिलीप सिंह भूरिया बगावत करके भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे.

धार भी कांग्रेस के लिए सुकून वाले नतीजा देता रहा है. 1980 से हुए 10 चुनावों में 7 उसने जीते हैं. हालांकि 2004 से अब तक हुए 3 चुनावों में दो में उसे हार मिली है.
बची देवास की सीट, तो वर्ष 1962 के बाद यह 2009 में अस्तित्व में आई.

इंदौर सीट पर भाजपा ने आठ बार से सांसद रहीं सुमित्रा महाजन की जगह शंकर लालवानी को टिकट दिया है. (फोटो साभार: फेसबुक)
इंदौर सीट पर भाजपा ने आठ बार से सांसद रहीं सुमित्रा महाजन की जगह शंकर लालवानी को टिकट दिया है. (फोटो साभार: फेसबुक)

2009 में यहां कांग्रेस जीती तो 2014 में भाजपा. हालांकि, 2008 में परिसीमन के पहले तक इस सीट को शाजापुर-देवास के नाम से जाना जाता था. उसे समय 1989 से 2004 तक हुए 6 चुनावों में भाजपा ही जीती थी.

इस तरह इन 8 में से 5 सीटों का इतिहास भाजपा के पक्ष में रहा है जबकि 2 सीटें कांग्रेस के प्रभाव वाली हैं. लेकिन इंदौर को छोड़ दें तो कांग्रेस 2009 में भाजपा के दबाव वाली चार सीटों को भी जीत चुकी है. बाकी एक सीट खरगोन को उसने 2007 के उपचुनाव में जीता था.

कांग्रेस इसी उम्मीद में है कि वह अपना वही प्रदर्शन इस बार भी दोहराए. यहां तक कि सुमित्रा महाजन के इंदौर से चुनाव न लड़ने से कांग्रेस को इंदौर सीट भी जीतने की आस बंध गई है.

इंदौर सीट पर सुमित्रा महाजन लगातार आठ बार से भाजपा को जीत दिलाती रहीं. लेकिन भाजपा के 75 उम्र पार वाले नेताओं को टिकट न देने के चलते मजबूरन उन्हें उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी.

काफी जद्दोजहद के बाद अंत समय में महाजन समर्थक शंकर लालवानी के नाम पर पार्टी में सहमति बनी. लालवानी का चुनावी अनुभव बस तीन बार पार्षद का चुनाव जीतना है. उनके सामने कांग्रेस की ओर से पंकज संघवी उम्मीदवार हैं. संघवी 1998 में लोकसभा, 2009 में महापौर और 2013 में विधानसभा चुनाव लड़े और सबमें हारे हैं.

इंदौर में जैन मतदाताओं की संख्या काफी है. संघवी भी इसी समुदाय से आते हैं जो इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीद लगाने का एक और कारण है.

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उज्जैन सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद चिंतामणि मालवीय का टिकट काटकर पूर्व विधायक डॉ. अनिल फिरोजिया को दिया है. वे तराना सीट पर विधानसभा चुनाव हारे गए थे. कांग्रेस ने भी तराना के ही पूर्व विधायक व दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे बाबूलाल मालवीय पर दांव खेला है.

विधानसभा चुनाव के नतीजे यहां दिलचस्प रहे थे. क्षेत्र की कुल आठ में से 5 विधानसभा सीटें कांग्रेस जीती, जबकि भाजपा के खाते में तीन गईं. लेकिन कुल वोट भाजपा को ज्यादा मिले थे. हालांकि, तब भी भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों की अपेक्षा करीब दो लाख चालीस हजार मतों का नुकसान उठाना पड़ा था.

मंदसौर में भाजपा ने मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता पर ही भरोसा जताया है. भरोसे का कारण यह भी हो सकता है कि प्रदेश के बहुचर्चित मंदसौर किसान गोलीकांड के बाद भी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में यहां कांग्रेस को बुरी पटखनी दी है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंदसौर से पार्टी उम्मीदवार मीनाक्षी नटराजन. (फोटो साभार: फेसबुक)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मंदसौर से पार्टी उम्मीदवार मीनाक्षी नटराजन. (फोटो साभार: फेसबुक)

कांग्रेस की प्रत्याशी मीनाक्षी नटराजन हैं. तीन दशक में कांग्रेस यह सीट केवल एक बार (2009) में जीती है और वो मीनाक्षी ने ही जिताई थी. कांग्रेस के लिए केवल सुखद यह है कि वह केवल 77593 मतों से पिछड़ी है और 2014 की अपेक्षा करीब सवा दो लाख मतों के फायदे में है.

धार में भाजपा ने सांसद सावित्री ठाकुर का टिकट काटा और दो बार के पूर्व सांसद छतरसिंह दरबार को थमा दिया. ठाकुर तब से ही नाराज हैं. वहीं, कांग्रेस ने दिनेश गिरवाल को मैदान में उतारा है. जिनका स्थानीय कांग्रेसी ही इस आधार पर विरोध कर रहे हैं कि वे भील जाति के हैं जबकि क्षेत्र से हमेशा भिलाला जाति का ही उम्मीदवार चुनाव जीतता है.

साथ ही साथ तीन बार के पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी का नाम भी दावेदारों की लिस्ट में था लेकिन गिरवाल को टिकट मिलने से राजूखेड़ी भी नाराज बताए जा रहे हैं.

जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) का भी इस क्षेत्र में काफी प्रभाव है. जयस संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा भी इसी लोकसभा क्षेत्र की मनावर सीट से कांग्रेस विधायक हैं.

जयस ने महेंद्र कन्नौज को यहां से उतारा था लेकिन वे नामांकन के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. इस तरह कांग्रेस ने जयस का विरोध तो दबा दिया लेकिन संगठन का एक गुट अभी भी नाराज बना हुआ है. धार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है.

खंडवा में भी उज्जैन जैसी दिलचस्प स्थिति है. विधानसभा चुनावों में कुल मतों के मामले में भाजपा आगे रही है लेकिन सीटों के लिहाज से कांग्रेस ने बाजी मारी है. क्षेत्र में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पांच बार के सांसद नंदकुमार सिंह चौहान कांग्रेस के सामने एक चुनौती हैं. कांग्रेस ने उनके सामने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को उतारा है. 1996 से लगातार जीतते आ रहे चौहान को अरुण 2009 में हरा चुके हैं.

हालांकि स्थानीय स्तर पर अरुण का पार्टी के अंदर ही विरोध हुआ है. स्थानीय कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अरुण क्षेत्र में बाहरी हैं.

कांग्रेस की परंपरागत रतलाम-झाबुआ सीट से पांच बार के सांसद कांतिलाल भूरिया फिर से मैदान में हैं. (फोटो साभार: फेसबुक)
कांग्रेस की परंपरागत रतलाम-झाबुआ सीट से पांच बार के सांसद कांतिलाल भूरिया फिर से मैदान में हैं. (फोटो साभार: फेसबुक)

ये चुनाव अरुण के राजनीतिक भविष्य को भी तय करने वाले हैं. 2014 में वे यहीं से चुनाव हारे. फिर प्रदेश में हालिया विधानसभा चुनावों के पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए. उसके बाद विधानसभा चुनावों में बुदनी में शिवराज के सामने उतरे तो वहां भी हारे.

भाजपा का मजबूत गढ़ अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित खरगोन सीट पर भाजपा ने मौजूदा सांसद सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल को थमाया है. गजेंद्र 2013 का विधानसभा चुनाव क्षेत्र की भगवानपुरा सीट से हार चुके हैं. यहां भी मौजूदा सांसद की नाराजगी किसी से छिपी नहीं. वे चुनाव प्रचार अभियान से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं.

कांग्रेस ने डॉ. गोविंद मुजाल्दा पर दांव खेला है. पेशे से रेडियोलॉजिस्ट मुजाल्दा का भी पार्टी में स्थानीय स्तर पर विरोध हुआ. खरगोन सीट के ही अंतर्गत आने वाले बड़वानी जिले के पूर्व जिलाध्यक्ष ने उन्हें पैराशूट उम्मीदवार ठहराकर पार्टी से बगावत करके निर्दलीय पर्चा भर दिया था. लेकिन अंत समय में पार्टी ने उन्हें मना लिया.

भाजपा यह सीट दो बार से सांसदों के टिकट काटकर जीत रही है, इसलिए इस बार भी उसे उम्मीद है कि अपने खिलाफ बने माहौल से वह प्रत्याशी बदलकर निपट लेगी.

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कांग्रेस की परंपरागत रतलाम-झाबुआ सीट से पांच बार के सांसद कांतिलाल भूरिया फिर से मैदान में हैं. पिछले 11 चुनाव में भाजपा यहां केवल एक बार 2014 में जीती थी. वो भी इसलिए क्योंकि कांग्रेस से पांच बार सांसद रहे दिलीप सिंह भूरिया भाजपा के उम्मीदवार थे. दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया फिर जीत गए.

इस सीट से न के बराबर उम्मीदें पाली भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए झाबुआ विधायक जीएस डामोर को उतारा है. डामोर ने विधानसभा चुनाव में कांतिलाल के बेटे विक्रांत भूरिया को हराया था.

भाजपा ने विधायकों को टिकट न देने की अपनी नीति तोड़कर डामोर को बेटे के बाद पिता को भी हराने का जिम्मा दिया है.

देवास में भाजपा-कांग्रेस दोनों ने ही चौंकाने वाले नाम दिए हैं जिनका राजनीति से पिछला कोई खास वास्ता नहीं रहा है.

भाजपा उम्मीदवार महेंद्र सिंह सोलंकी पेशे से न्यायाधीश हैं. सेवानिवृत्ति लेकर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी पद्मश्री सम्मानित लोक गायक प्रहलाद सिंह टिपानिया हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)