एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी रैली में व्यापमं घोटाले की जांच कराने की बात करते हैं, तो दूसरी ओर पार्टी ने इंदौर लोकसभा सीट से उन पंकज संघवी को प्रत्याशी बनाया है जिन पर घोटाले में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं.
व्यापमं घोटाले की नए सिरे से जांच होगी, जिसमें भाजपा नेताओं ने लाखों बेरोजगारों की जेब से पैसा निकाला है.’ 1 मई 2019 को मध्य प्रदेश की होशंगाबाद-नरसिंहपुर लोकसभा सीट पर एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह बात कही थी.
यह पहला मौका नहीं था जब प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस ने व्यापमं घोटाले को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर हमला करने का हथियार बनाया हो. 2013 से लगातार वह भाजपा पर व्यापमं घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाती रही है.
2018 के विधानसभा चुनावों से पहले भी कांग्रेस ने एक वचन-पत्रन जारी किया था. जिसमें एक बिंदु यह भी था कि सत्ता में आने के बाद पार्टी भाजपा के शासनकाल में हुए व्यापमं घोटाले की जांच जन आयोग बनाकर नए सिरे से कराएगी और दोषियों के खिलाफ न्यायालय में केस दर्ज कराकर दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करेगी.
हालांकि, सरकार बनने के पांच माह बाद भी इस संदर्भ में उसकी ओर से कोई कदम तो नहीं उठाया गया, उल्टा व्यापमं घोटाले को लेकर पार्टी की कथनी और करनी में अंतर सामने आने लगे हैं.
एक ओर तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ जनता के सामने व्यापमं घोटाले में जांच और कार्रवाई की बात करते हैं, तो दूसरी ओर पार्टी व्यापमं घोटाले में जांच के दायरे में आए अपनी ही पार्टी के नेताओं को उपकृत किए जा रही है.
इंदौर लोकसभा क्षेत्र से पार्टी ने उन पंकज संघवी को अपना उम्मीदवार बनाया है जिनके ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन ऑफ गुजराती समाज ट्रस्ट के तहत चलने वाले पांच स्कूल-कॉलेजों में व्यापमं घोटाले के तहत सामूहिक नकल के मामले पकड़ में आए थे.
व्यापमं घोटाले के व्हिसल ब्लोअर डॉ. आनंद राय के मुताबिक, 2015 में सीबीआई ने उनके स्कूल-कॉलेजों में हुए इस गड़बड़झाले को जांच के दायरे में लिया था. करीब डेढ़-दो साल पहले पंकज संघवी और उनके स्कूल-कॉलेजों के प्रधानाध्यापकों को सीबीआई ने पूछताछ के लिए दो दिन हिरासत में भी रखा था. उनके इन पांच स्कूल-कॉलेजों के 37 पर्यवेक्षक घोटाले में आरोपी बनाए गए और जमानत पर बाहर हैं.
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी वर्ष 2013 की परीक्षाओं में हुई अनियमितताओं की जांच के दौरान सामने आया था कि धांधली उससे पहले की परीक्षाओं में भी हुई थी. इंजन-बोगी की तर्ज पर परीक्षार्थी और सॉल्वरों को रोल नंबर आवंटन होता था.
इसमें संघवी के गुजराती समाज ट्रस्ट के तहत चलने वाले श्री केबी पटेल गुजराती कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल, पीएमबी गुजराती साइंस कॉलेज और आरआरएमबी गुजराती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय समेत उनके पांच स्कूल-कॉलेज जांच के दायरे में आए थे जहां कि परीक्षा केंद्र बनाए गए थे.
आनंद राय के अनुसार, ‘सीबीआई को दिए बयान में संघवी ने स्वयं स्वीकारा है कि वे घोटाले के मुख्य सरगना डॉ. जगदीश सागर से मिले थे. हालांकि उनका कहना है कि परीक्षाओं में धांधली करने को लेकर उनकी डॉ. सागर से कोई सेटिंग नहीं हुई थी. अब अगर कोई सेटिंग नहीं हुई थी तो सवाल उठता है कि इस दौरान गलत तरीके से जो उम्मीदवार प्रदेश भर में चुने गए उनमें से तीन चौथाई संघवी के स्कूल-कॉलेजों के कैसे रहे? क्यों उनके स्कूल-कॉलेजों के 37 शिक्षक जो कि पर्यवेक्षक बनाए गए थे, व्यापमं घोटाले की जांच के दायरे में हैं और जमानत पर बाहर हैं?’
वे आगे कहते हैं, ‘सत्यता तो यह है कि अपने रसूख के चलते संघवी बच गए और पर्यवेक्षकों पर गुनाह मढ़ दिया गया. वरना बताइए कि उन 37 पर्यवेक्षकों के ऊपर कोई तो चेहरा होगा जो उन्हे लीड कर रहा होगा. किसी एक आदमी के इशारे पर तो काम कर रहे होंगे न वे सब? वो चेहरा और वो आदमी संघवी ही थे. इन पर्यवेक्षकों की जमानत कराने वे स्वयं भोपाल गए थे. इनके साथ अदालतों में खड़े देखे गए थे.’
बहरहाल, जिस व्यापमं घोटाले की जांच कराने का वादा करके कांग्रेस पार्टी प्रदेश की सत्ता में आई हो, जिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोटाले की जांच नए सिरे से कराने की बात करते हों, जब वही पार्टी एक ऐसे शख्स को जिसकी भूमिका मामले में संदिग्ध हो और उसकी संलिप्तता को लेकर जांच की मांग की जाती रही हो, अपने टिकट पर संसद का चुनाव लड़ाती है तो उसकी कथनी और करनी के अंतर में स्पष्टता साफ देखी जा सकती है.
साथ ही सवाल उठता है कि घोटाले की फिर से जांच किसके लिए कराई जाएगी जबकि जिनके खिलाफ जांच कराए जाने की मांग उठ रही हो, उन्हें तो पार्टी गले लगा रही है. वहीं, पंकज संघवी ऐसे इकलौते नहीं जिन पर व्यापमं घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे हों और कांग्रेस ने उन्हें गले लगाया हो.
एक अन्य नाम संजीव सक्सेना का भी है. बीते विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी व्यापमं घोटाले में जेल काट कर आए संजीव को भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट से चुनाव लड़ाने के फिराक में थी. लेकिन उनके नाम के कयास लगते ही व्यापमं के व्हिसल ब्लोअर्स सक्रिय हो गए थे.
पार्टी का जनता के बीच व्यापमं को लेकर स्टैंड कमजोर न पड़े इसलिए संजीव को समझा-बुझाकर बैठा दिया गया था. लेकिन चुनाव समाप्ति के कुछ ही दिन बाद उन्हें पार्टी के प्रदेश संगठन में महासचिव पद पर नियुक्ति दे दी गई.
कुछ ऐसा ही डॉ. गुलाब सिंह किरार के मामले में भी हुआ था. घोटाले में आरोपी किरार एक समय भाजपा से जुड़े हुए थे और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबियों में शुमार होते थे व उनकी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा रखते थे.
उन्हें स्वयं राहुल गांधी ने 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी की सदस्यता दिलाई थी. चर्चा तब यह भी थी कि पार्टी उन्हें पोहरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने वाली थी. लेकिन जब हर ओर इसका विरोध हुआ तो पार्टी अपनी घोषणा से पलट गयी और डॉ. किरार के पार्टी में शामिल होने को झूठी खबर बताया.
बहरहाल, पिछले दिनों उन्हीं डॉ. किरार को पार्टी ने लोकसभा चुनावों के लिए अपने स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया था
आनंद राय कहते हैं, ‘व्यापमं के गुनाहगारों के साथ गलबहियां करने वाली कांग्रेस पार्टी इस घोटाले को मुद्दा बनाने या इस पर बोलने का नैतिक अधिकार ही नहीं रखती.’
बात सही भी जान पड़ती है. जब पार्टी व्यापमं घोटाले की जन आयोग बनाकर जांच कराने की बात करती है तो उसका स्पष्ट मतलब निकलता है कि कहीं न कहीं घोटाले की अब तक की एसटीएफ और सीबीआई द्वारा की गई जांच से वह संतुष्ट नहीं है. पार्टी का कहना भी है कि जांच में रसूखदार लोगों को बचाया गया है.
लेकिन जांच में जिन रसूखदारों को बचाने के आरोप लगते हैं, उन्हें खुद कांग्रेस बढ़ावा दे रही हो तो जांच आखिर किसके खिलाफ की जाएगी? या फिर वह जांच मात्र अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंदी भाजपा को निशाने पर रख कर की जाएगी?
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता रवि सक्सेना पार्टी के बचाव में तर्क देते हैं, ‘चुनाव के समय बहुत सारी चीजें बहुत अलग-अलग एंगल से देखी जाती हैं. चाहे संजीव सक्सेना का मामला या पंकज संघवी या और दीगर नेता का मामला हो, क्योंकि उन्हें अदालत से जमानत मिली हुई है, उनके ऊपर जो आरोप लगे थे, वो आरोप साबित नहीं हुए हैं. इसलिए उनको पद दिए गए हैं.’
वे आगे डॉ. आनंद राय पर ही सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘डॉ. आनंद राय स्वयं इंदौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. पार्टी ने टिकट नहीं दिया. उनका दुख हम समझते हैं.’
बहरहाल, इंदौर सीट पर 19 मई को मतदान होना है, जहां पंकज संघवी के सामने भाजपा के उम्मीदवार शंकर ललवानी हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)