पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ईवीएम सुरक्षा की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की है, उसे यह सुनिश्चित करते हुए इस बारे में उठ रहे सवालों पर विराम लगाना चाहिए.
नई दिल्ली: ईवीएम की आवाजाही और कथित छेड़छाड़ की ख़बरों के बीच पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चुनाव आयोग से उसकी संस्थागत विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की अपील की है.
ट्विटर पर जारी अपने बयान में उन्होंने कहा कि वे ईवीएम की सुरक्षा को लेकर आ रही ख़बरों को लेकर चिंतित हैं.
उन्होंने कहा, ‘चुनाव आयोग की कस्टडी में जो ईवीएम हैं, उनकी सुरक्षा आयोग की जिम्मेदारी है. लोकतंत्र को चुनौती देने वाली अटकलों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. जनता का फैसला सबसे ऊपर है और इसे लेकर रत्ती भर संदेह नहीं होना चाहिए.’
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— Pranab Mukherjee Legacy Foundation- PMLF (@CitiznMukherjee) May 21, 2019
उन्होंने आगे लिखा कि वे देश के संस्थानों पर विश्वास करते हैं और मानते हैं कि संस्थान कैसे काम करते हैं, यह फैसला वहां काम करने वालों का ही होता है. इस मामले में संस्थागत विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है. उन्हें ऐसा करना चाहिए और इस तरह की सारी अटकलों पर विराम लगाना चाहिए.
इससे पहले मुखर्जी ने चुनाव आयोग की सराहना करते हुए कहा था कि 2019 का लोकसभा चुनाव शानदार तरीके से संपन्न कराया गया.
एक पुस्तक के विमोचन के मौके पर नई दिल्ली में उन्होंने कहा था कि पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के समय से लेकर मौजूदा चुनाव आयुक्तों तक संस्थान ने बहुत अच्छे से काम किया है.
उन्होंने कहा कि कार्यपालिका तीनों आयुक्तों को नियुक्त करती है और वे अपना काम अच्छे से कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘आप उनकी आलोचना नहीं कर सकते हैं, यह चुनाव का सही रवैया है.’
मुखर्जी ने एनडीटीवी की सोनिया सिंह की पुस्तक ‘डिफाइनिंग इंडिया: थ्रू देयर आइज़’ के विमोचन के मौके पर कहा, ‘यदि लोकतंत्र सफल हुआ है, यह मुख्यत: सुकुमार सेन से लेकर मौजूदा चुनाव आयुक्तों द्वारा अच्छे से चुनाव संपन्न कराने के कारण है.’
मुखर्जी का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्षी दल लगातार चुनाव आयोग को निशाना बना रहे हैं.
मुखर्जी की इस टिप्पणी से एक दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष चुनाव आयोग का आत्मसमर्पण स्वाभाविक है और चुनाव आयोग अब निष्पक्ष या सम्मानित नहीं रह गया है.
विपक्षी दल चुनाव आयोग के कथित तौर पर भाजपा के प्रति झुकाव रखने को लेकर आयोग की आलोचना करते रहे हैं.
इतना नहीं चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष के ख़िलाफ़ आचार संहिता के उल्लंघन की सही शिकायतों को ख़ारिज कर दिया था.
यहां तक की चुनाव आयुक्त अशोक लवासा भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित कई शिकायतों में क्लीनचिट देने के आयोग के फैसलों पर सवाल उठा चुके हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दिए गए क्लीनचिट का विरोध करने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर कड़ा रुख अपनाए जाने के बाद उन्होंने ‘पारदर्शी और समय सीमा’ के अंदर इन मामलों के निपटारे की मांग की थी.
बता दें कि केंद्रीय चुनाव आयोग की तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य अशोक लवासा आयोग के फैसलों में अलग मत और असंतोष जताने वाले फैसलों को शामिल नहीं किए जाने से नाराज हैं. अपनी इस नाराजगी के कारण लवासा ने 4 मई से ही चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली सभी बैठकों से खुद को अलग कर लिया है.
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा है कि वे चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली सभी बैठकों में केवल तभी शामिल होंगे जब अलग मत रखने वाले और असंतोष जताने वाले फैसलों को भी आयोग के आदेशों में शामिल किया जाएगा.
बता दें कि चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव आयोग ने कई मामलों में क्लीनचिट दे दी थी. हालांकि मोदी और शाह को क्लीनचिट के कुछ मामलों में लवासा ने अलग राय रखी थी और आयोग ने फैसला 2-1 के बहुमत से किया था. कई मामलों में लवासा चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को नोटिस भेजा जाए.
चुनाव आयोग में उपजे मतभेद की खबरों को मुख्य चुनाव अधिकारी सुनील अरोड़ा ने खारिज किया था. बीते 18 मई को सुनील अरोड़ा ने कहा थाकि चुनाव आयुक्तों से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वे एक-दूसरे क्लोन बन जाएं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)