दहेज उत्पीड़न के एक फैसले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता.
तीन तलाक़ पर पूरे देश में बहस जारी है. प्रधानमंत्री से लेकर कोर्ट भी मुस्लिम महिलाओं के साथ खड़े हैं.
पिछले महीने दहेज उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहबाद हाई कोर्ट ने कहा, ‘पर्सनल लॉ संविधान के तहत ही काम कर सकते हैं. ऐसा कोई फ़तवा मान्य नहीं होगा जो किसी के अधिकारों के ख़िलाफ़ हो.’
तीन तलाक़ पर बोलते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं सहित नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मिले मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं जा सकता. मुस्लिम पुरुष इस तरह से तलाक़ नहीं दे सकते जो समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ हो. तीन तलाक़ संविधान का हनन है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता उसे सभ्य समाज नहीं कह सकते.
Muslim men can't gv divorce in this way,it's agnst right of equality;personal law can only be implemented undr the constitution:Allahabad HC
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 9, 2017
यह मामला वाराणसी की सुमालिया का था. सुमालिया ने अपने पति के ख़िलाफ़ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवाया था, जिस पर उसके पति अकील ने कोर्ट से कहा कि वो सुमालिया को तलाक़ दे चुका है और उसके पास आगरा की दारुल इफ्ता जामा मस्जिद का फ़तवा भी है. इसलिए उस पर दायर यह मुकदमा ख़ारिज होना चाहिए. कोर्ट ने अकील की यह दलील ख़ारिज करते हुए कहा, ‘फतवे का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है, इसलिए इसे ज़बर्दस्ती थोपा नहीं जा सकता. अगर कोई इसे लागू करता है तो यह ग़ैर-क़ानूनी है.’
इस मामले की सुनवाई 19 अप्रैल को हुई थी, पर फैसले की जानकारी मंगलवार को सार्वजानिक की गई.
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में इलाहबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक़ को ‘असंवैधानिक’ बताया था. तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ आई अर्ज़ियों पर 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की ज़िम्मेदारी 5 जजों की एक बेंच को सौंपी है, जो 11 मई को इस पर सुनवाई करेगी.